इसी साल जुलाई में लुथावानिया में अमेरिका की अगुआई वाले संगठन नाटो की मीटिंग होने वाली है. नाटो ने इस मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए जापान के पीएम फुमियो किशिदा को न्योता भेजा है लेकिन ये बात जापान के पड़ोसी चीन को अखर गई है. चीन ने जापान को इस मीटिंग में हिस्सा ना लेने की हिदायत देते हुए इस इलाके में शांति के खतरे में पड़ने की चेतावनी दी है. कहने को तो ये धमकी जापान के लिए है लेकिन चीन का इशारा भारत के लिए भी है क्योंकि चीन, अमेरिका के साथ बढ़ती भारत की नजदीकियों से टेंशन में है और हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस की एक कमेटी ने भारत को नाटो प्लस का मेंबर बनाने की सिफारिश की है.
दरअसल दूसरे विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ से पश्चिमी यूरोप के देशों को बचाने के लिए अमेरिका समेत 12 देशों ने नाटो संगठन बनाया था जिसमें ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस जैसे मजबूत योरोपीय देश शामिल थे.आज की तारीख में इसमें 30 देश शामिल हो चुके हैं. नाटो के नियम के मुताबिक इनमें से किसी भी देश पर होने वाला हमला सभी देशों पर हमला माना जाता है और नाटो के सभी देश उस जंग में शामिल हो जाते हैं.इन देशों को अमेरिका अपने हथियार मुहैया कराने के साथ-साथ इनकी जमीन पर अपने सैनिक अड्डे भी बनाता है.. एक तरह से कहा जाए तो ये रूस के खिलाफ सुरक्षा की एक गारंटी है.. रूस का आरोप है कि यूक्रेन भी नाटो में शामिल होना चाहता था लेकिन उससे पहले ही रूस ने उसपर हमला कर दिया.
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तो ये थी नाटो और रूस की रंजिश की कहानी
अब आपको बताते हैं चीन को नाटो से क्या परेशानी है. दरअसल अब अमेरिका की निगाहों में चीन भी रूस की तरह ही खटकने लगा है और अमेरिका चाहता है कि जैसे रूस पर नकेल कसने के लिए उसके पड़ोसी यूरोपीय देशों को उसने नाटो की छतरी के नीचे एकत्र किया है, वैसे ही चीन को काबू करने के लिए भी कोई संगठन बनाया जाए.
नाटो का बेस यूरोप में ही है लेकिन अमेरिका ने नाटो प्लस के तौर पर एक और संगठन बनाया है जिसमें उसके अलावा पांच और देश शामिल हैं..ये देश हैं ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान, इज़राइल और दक्षिण कोरिया. हालांकि नाटो प्लस के देशों की बीच नाटो के देशों जैसा समझौता नहीं है लेकिन इन देशों को अमेरिका की बेमिसाल रक्षा टेक्नोलॉजी और खुफिया जानकारी साझा की जाती है. अगर भारत नाटो प्लस में शामिल हो जाता है तो भारत को भी अमेरिका के शानदार हथियार और खुफिया जानकारी हासिल हो सकती है.और यही बात चीन को अखर रही है..
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद कई दशक पुराना है और साल 2020 में तो लद्दाख सेक्टर में दोनों देशों के सैनिकों के बीच गलवान घाटी में खूनी झड़प भी हो चुकी है, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे. सरहद पर तनाव अब भी बरकरार है और बॉर्डर के दोनों ओर अब भी हजारों सैनिक तैनात है.
भारत की विदेश नीति वैसी आजाद रह पाएगी
जाहिर है भारत के साथ चीन के रिश्ते लगातार बिगड़ रहे हैं और अगर भारत नाटो प्लस में शामिल होता है तो चीन के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है क्योंकि ऐसा होने से भारत की सैन्य ताकत में काफी इजाफा हो सकता है. प्रधानमंत्री मोदी अगले महीने अमेरिकी की राजकीय यात्रा पर आएंगे. हो सकता है इस मसले पर कोई सहमति भी बने लेकिन सवाल ये है कि क्या नाटो प्लस में शामि्ल होने से भारत की विदेश नीति वैसी आजाद रह पाएगी जैसी इस वक्त है. क्योंकि अमेरिका और उसके सहयोगी यूरोपीय देशों के तमाम दबाव के बावजूद भारत ने यूक्रेन युद्ध के मसले पर अपने गुटनिरपेक्ष नीति को बरकरार रखते हुए ना तो रूस की आलोचना की और ना ही किसी बडे इंटरनेशनल मंच पर उसके खिलाफ मतदान किया और तो और भारत ने रूस से सस्ते दामों में कच्चा तेल खरीदकर रूस पर लगे पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की हवा निकाल दी.
हालांकि भारत अमेरिका के साथ क्वॉड का हिस्सा भी है. इसके बाकी दो मेंबर जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं. क्वॉड को भी चीन अपने खिलाफ बनाया गया गठबंधन ही मानता है. लेकिन क्वॉड में रहने के बावजूद भारत ने अमेरिका से इतर अपनी विदेश नीति पर अमल किया है. लिहाजा भारत और रूस की दोस्ती भी बरकरार है. ऐसे में अगर भारत अपनी आजाद विदेश नीति का जारी रखते हुए नाटो प्लस का सदस्य बनता है तो चीन लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है.
HIGHLIGHTS
- कांग्रेस की एक कमेटी ने भारत को नाटो प्लस का मेंबर बनाने की सिफारिश की
- चीन, अमेरिका के साथ बढ़ती भारत की नजदीकियों से टेंशन में
रिपोर्ट: (सुमित दूबे)
Source : News Nation Bureau