चीन के वरिष्ठ डिप्लोमैट दाई बिंगुओ के तवांग पर दिए गए 'पेशकश' का भारत ने जवाब दे दिया है। दाई बिंगुओ के ऑफर को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया है। भारत ने साफ कर दिया है कि तवांग के बदले अक्साई चिन का ऑफर न तो व्यावहारिक है और नहीं संभव।
बिंगुओ ने कहा था कि अगर भारत बीजिंग के तवांग के बदले अक्साई चिन के ऑफर को मान ले भारत औऱ चीन के बीच सीमा विवाद ख़त्म हो सकता है। दाई बिंगुओ ने 2003-2013 यानि 1 दशक तक भारत और चीन के सीमा विवाद मुद्दे की बैठकों में वार्ताकार की भूमिका निभाई है।
दाई बिंगुओ ने चीनी मीडिया को दिए इंटरव्यू में कहा था कि, 'अगर भारत सरकार बॉर्डर के ईस्टर्न सेक्टर पर चीन की चिंताओं का ख़्याल रखेगी तो चीन भी भारत की चिंताओं का जवाब उसी हिसाब से दूसरी तरफ देगी।'
आखिर तवांग को क्यों अपने कब्जे में लेना चाहता है चीन?
उन्होंने कहा कि, 'भारत-चीन के बीच विवादित ईस्टर्न बॉर्डर, तवांग समेत सांस्कृतिक और प्रशासनिक इतिहास के मुताबिक चीन के तिब्बत का अभिन्न हिस्सा है।' दाई बिंगुओ ने 2003 से 2013 तक के अपने कार्यकाल के दौरान भारत के विभिन्न प्रतिनिधियों के साथ वार्ताकार की भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा कि कॉलोनियल ब्रिटिश सरकार जिसने मैक्मोहन लाइन खींची थी उसमें तवांग पर बीजिंग के कब्जें को स्वीकार किया था। चीन ने मैक्मोहन लाइन को नहीं स्वीकार किया था लेकिन म्यांमार के साथ बॉर्डर विवाद को सुलझाने को स्वीकार किया था।
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उन्होने कहा, 'ब्रिटिश कॉलोनिस्ट जिन्होंने अवैध मैक्मोहन लाइन खींची थी, उन्होंने भी चीन के तवांग की चिंता को स्वीकार किया था और माना था कि तवांग चीन के तिब्बत का हिस्सा है।'
दाई बिंगुओ का यह इंटरव्यू जनवरी के दौरान एक मैगज़ीन में छपा था। यह इंटरव्यू पिछले महीने हुई भारत-चीन के बीच विदेश सचिव एस जयशंकर के साथ हुए स्ट्रेटेजिक डायलॉग से पहले का है।
दाई बिंगुओ को एक चतुर वार्ताकार माना जाता है। उन्होंने 3488 किमी लंबी एक्चुअल लाइन ऑफ कंट्रोल (एलएसी) पर चीन की स्थिति साफ नहीं की है। भारत ने दाई बिंगुओ के इस पेशकश को ठुकराते हुए जवाब दिया है कि यह पेशकश न तो व्यवहारिक है और न ही संभव है।
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Source : News Nation Bureau