भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की प्रतिबंध समितियों की आलोचना करते हुए एक तरह से इस सर्वाधिक प्रतिष्ठित इंटरनैशनल फोरम को आईना दिखाने का काम किया है. दरअसल भारत ने इशारों-इशारों में पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी की सूची में डालने के उसके प्रयासों के संयुक्त राष्ट्र समिति के सामने रोके जाने के संदर्भ में अपनी बात रखी है.
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की प्रतिबंध समितियों की यह कहते हुए आलोचना की है वे अस्पष्ट हैं और उनमें जवाबदेही का अभाव है. इसके अलावा, ये आतंकवादियों पर प्रतिबंध लगाने के अनुरोध को स्वीकार नहीं करने की वजह भी कभी नहीं बताया करती हैं.
इससे पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी संयुक्त राष्ट्र में बोलते समय पाकिस्तान को घेरा था, साथ ही संयुक्त राष्ट्र को भी नसीहत दी थी. उन्होंने कहा था कि मूलभूत सुधारों के अभाव में संयुक्त राष्ट्र के अप्रासंगिक हो जाने का खतरा है.
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बहुपक्षवाद को मजबूत करने और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका पर शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक परिचर्चा में भारत के स्थायी दूत (संयुक्त राष्ट्र में) सैयद अकबरूद्दीन ने कहा कि परिषद ने कई अधीनस्थ संस्थान बना रखे हैं लेकिन इन संस्थानों का कामकाज काफी जटिल बन गया है.
उन्होंने कहा कि एक ऐसे युग में जब हम जागरूक लोग लोक संस्थाओं से पारदर्शिता की मांग बढ़ाते जा रहे हैं. प्रतिबंध समितियां अपनी स्पष्टता के मामले में सबसे खराब उदाहरण हैं और उनमें जवाबदेही का अभाव है.
अकबरूद्दीन ने कहा कि प्रतिबंध समितियां जाहिर तौर पर समूचे संयुक्त राष्ट्र की ओर से काम करती हैं. फिर भी वे हमें (आम सदस्यों को) सूचित नहीं करतीं. हालांकि, उन्होंने किसी देश का नाम नहीं लिया.
बता दें कि यह जगजाहिर है कि सुरक्षा परिषद में वीटो की शक्ति रखने वाले चीन ने आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को सुरक्षा परिषद की अल-कायदा प्रतिबंध समिति के तहत आतंकवादी नामित कराने के भारत के कदम को बार-बार बाधित किया है जबकि भारत को अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन प्राप्त था.
अजहर की ओर से स्थापित आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की संयुक्त राष्ट्र की सूची में पहले से शामिल है.
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अकबरूद्दीन ने कहा कि यह स्पष्ट है कि सुरक्षा परिषद कार्य निष्पादन, विश्वसनीयता, औचित्य और प्रासंगिकता के संकट का सामना कर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि परिषद की सदस्यता वैश्विक शक्ति के वितरण के अनुरूप नहीं है और यह मौजूदा जरूरत को पूरा नहीं करती है.
उन्होंने सुरक्षा परिषद में सुधार करने की अपील करते हुए चेतावनी दी कि ऐसा नहीं होने पर हम एक शांतिपूर्ण विश्व नहीं होंगे, बल्कि हमारी विश्व व्यवस्था टुकड़ों में बंटी होगी.
गौरतलब है कि सुषमा स्वराज ने संयुक्त राष्ट्र में कहा था कि यूएन को अनिवार्य रूप से स्वीकार करना चाहिए कि मूलभूत सुधारों की जरूरत है. उन्होंने कहा था, 'सुधार सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होना चाहिए. हमें संस्थान के दिलोदिमाग में बदलाव करने की जरूरत है, जिससे यह समसामयिक वास्तविकता के अनुकूल हो जाए.'
बता दें कि भारत लंबे समय से ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था में स्थाई सदस्यता के लिए यह चारों राष्ट्र एक-दूसरे की दावेदारी का समर्थन करते हैं.
Source : News Nation Bureau