केंद्र सरकार ने हालांकि लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के साथ भारत-चीन के तनातनी को एक जीत के रूप में करार दिया है, लेकिन सेना के दिग्गज लेफ्टिनेंट जनरल एचएस पनाग (सेवानिवृत्त) ने इसे बीजिंग के 1959 के दावे को व्यावहारिक स्वीकृति बताया. आईएएनएस के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, जनरल पनाग ने दावा किया कि पीछे हटने की प्रक्रिया चीन की 1959 के दावे के अनुसार ही है. हालांकि, उन्होंने कहा कि यह दीर्घकालिक शांति के लिए अच्छा कदम है. क्योंकि लद्दाख में पीछे हटना दोनों देशों के बीच सीमा विवादों के निपटारे की व्यापक योजना का एक हिस्सा है.
1959 में, चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू को प्रस्ताव दिया था कि दोनों देश की सेनाएं पूर्व में मैकमोहन रेखा से 20 किलोमीटर दूर हो जाएं और उस रेखा तक चले जाए, जहां से दोनों सेनाएं पश्चिम में वास्तविक नियंत्रण रेखा मानती है. पनाग के अनुसार, मई में अपनी घुसपैठ के माध्यम से, चीन पहले ही डेपसांग और पैंगोंग त्सो के उत्तर में 1959 की दावा रेखा तक पहुंच चुका है.
उन्होंने कहा कि अगर हम उन क्षेत्रों को वापस लाने का प्रयास करते हैं, तो चीनी 1959 के क्लेम लाइन कंफिगेरेशन के द्वारा, कुछ क्षेत्रों को बंद कर सकते हैं और हमारे क्षेत्र के अधिक भाग को ले सकते हैं. उदाहरण के लिए, पैंगोंग त्सो के उत्तर में जहां से हमारे सभी मार्ग हॉट स्प्रिंग्स और गोगला की ओर जाते हैं, यहां से पैगॉन्ग के उत्तरी किनारे और कोंकाला पास की दूरी 100 किलोमीटर है. उन्होंने फिंगर 4 तक का क्षेत्र ले लिया है और अगर वे आगे और 30 से 40 किलोमीटर तक आते हैं तो, यह 100 किलोमीटर भी हमारा चला जाएगा.
अनुभवी रक्षा विश्लेषक ने कहा कि लद्दाख के दक्षिणी हिस्से में, भारत ने 59 क्लेम लाइन को पार किया था और गश्त किया करते थे, लेकिन अब उन्होंने हमें गश्त लगाने से रोक दिया है. इसलिए अब वे 59 क्लेम लाइन तक पहुंच गए हैं और सेना के माध्यम से हम उसे खाली कराने की स्थिति में नहीं हैं. पनाग ने कुछ महीने पहले दावा किया था कि एलएसी को पार करके, चीनी ने सब कुछ हासिल कर लिया है और भारत ने सब कुछ खो दिया है. उन्होंने यह भी भविष्यवाणी की थी कि भारत कैलाश रेंज की कमांडिंग हाइट्स भी खो देगा.
पनान ने वर्तमान स्थिति पर कहा कि यह एक अच्छा दांव है अगर यह हमें अगले 30 वर्षों के लिए शांति की ओर ले जाता है. दोनों एशियाई दिग्गजों के बीच 27 साल बाद तनाव बढ़ गया , जब आखिरी बार वे 1993 में इस तरह के समझौते पर सहमत हुए थे. हमारे पास क्षमता होती तो, चीन ने ऐसा कभी नहीं किया होता। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि वे हमारी कमजोरी जानते थे.
Source : IANS