दुनिया भर में युद्ध और सीमा सुरक्षा से जुड़े पुराने मानक बदल गये हैं. अब सिर्फ सैनिकों की बदौलत सीमा की रक्षा नहीं की जा सकती है. सीमा और सुरक्षा के जुड़े अधिकांश अवयव तकनीक आधारित है. इसलिए भविष्य में किसी भी लड़ाई में उसी की जीत होगी जो तकनीकी रूप से समृद्ध होगा. भारत के सामने चारों तरफ से अपनी सीमा को सुरक्षित रखने की चुनौती है. सबसे अधिक उसे पाकिस्तान और चीन से खतरा रहता है. चीन और पाकिस्तान की दोस्ती का नया चरण भारत के लिए एक और चुनौती है.
दुनिया के तमाम देश ऐसे उपकरण तैयार करने में जुटे हैं जिससे न सिर्फ उनकी लड़ाई लड़ने की क्षमताओं में इज़ाफ़ा हो बल्कि दुश्मन के हर एक गतिविधि का पता भी चलता रहे. चीन (China)भी अपनी चोरी की तकनीक के चलते अपनी ताक़त में इज़ाफ़ा कर रहा है तो भारत अपनी स्वदेशी ताक़त से भारतीय सेना के हाथ मज़बूत करने में जुटा है.
दुनिया में सैटेलाइट प्रक्षेपण का रिकॉर्ड बना चुका भारत अब एक ऐसे सूडो सैटेलाइट तैयार करने में जुटा है जो कि तकनीक की दुनिया में एक मील का पत्थर साबित होगा. ख़ास बात तो ये है कि आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) के मद्देनज़र नए स्टार्टअप के साथ मिलकर एचएएल इस पर काम कर रहा है. इस सूडो सैटेलाइट से ज़रिए न सिर्फ़ निगरानी करना आसान होगा बल्कि ड्रोन से लड़ी जाने वाली लड़ाई में भी ये ज़बरदस्त कारगर साबित होगा.
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हिंदुस्तान एरोनॉटिकल्स लिमिटेड (HAL) इस हाई एल्टीट्यूट सूडो सैटेलाइट पर काम कर रहा है. सूत्रों की मानें तो ये अभी डेवलेपमेंट फेज में है और उम्मीद जताई जा रही है कि अगले 2 साल में इसका पहला प्रोटोटाइप बनकर तैयार हो जाएगा. इसकी ख़ास बात तो ये है कि ये एक बार उड़ान भरने के बाद 24 घंटे में 70 हज़ार फुट की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा और वहां से तक़रीबन 200 किलोमीटर के दायरे में छोटी से छोटी गतिविधियों पर नज़र रख सकेगा. चूंकि ये पूरी तरह से सोलर एनर्जी पर आधारित है तो दिन में सूरज की रोशनी से अपनी उड़ान को जारी रखेगा और रात को दिन भर में सोलर एनर्जी से चार्ज हुई बैटरी के ज़रिए अपने काम को 24 घंटे लगातार कर पाने में सक्षम होगा. इसका कम सिर्फ दुश्मन के गतिविधियों पर ही नज़र रखना नहीं होगा, बल्कि भौगोलिक स्थितियों, जियोलॉजिकल सर्विस, डिजास्टर मैनेजमेंट के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा.
फ़िलहाल जो प्रोटोटाइप तैयार किया जा रहा है उसकी लागत क़रीब 700 से 800 करोड़ के बीच होगी लेकिन एक बार ये प्रोटोटाइप तैयार हो गया और इसके सैन्य और अन्य इस्तेमाल के लिए जब प्रोडक्शन होगा तो इसकी क़ीमत कम हो सकती है. फ़िलहाल इस तकनीक पर भारत समेत सिर्फ़ तीन देश ही काम कर रहे हैं. इसमें एक है अमेरिका और दूसरा है फ्रांस. एचएएल के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक HAPS का पहला प्रोटोटाइप इसकी असल साइज का एक तिहाई ही होगा. प्रोटोटाइप डेवेलमेंट स्टेज में है.
इस सैटेलाइट की पे लोड क्षमता 30-35 किलो की होगी. जबकि फ्रांस और अमेरिका की कंपनी जो प्रोटोटाइप बना रही हैं उसमें पे लोड क्षमता महज 15 किलो है और यह लगातार 3 महीने तक 70 हज़ार फुट पर रह सकता है. ये एक स्टेशनरी सैटेलाइट के तौर पर काम करेगा यानी कि सामान्य सैटेलाइटों की तरह से पृथ्वी के चक्कर नहीं लगाएगा और जहां ज़रूरत होगी इसकी तैनाती की जा सकेगी.
इस प्रोजेक्ट पर एचएएल के साथ बेंगलुरु की एक स्टार्टअप कंपनी काम कर रही है. ये हाई ऑल्टेट्यूड सूडो सैटेलाइट यानी कि HAPS एचएएल के कंबाइंड एयर टीमिंग सिस्टम यानी कि CATS का हिस्सा हैं. HAPS सीधे मदर शिप तक जानकारी भेजेगा और फिर CATS अपने काम को अंजाम देना शुरू कर देगा. CATS सिस्टम तीन अलग-अलग ड्रोन के साथ एक ही फाइटर से ऑपरेट किया जा सकता है.
पहला ड्रोन सिस्टम है कैट्स वॉरियर, दूसरा है कैट्स हंटर और तीसरा है कैट्स अल्फ़ा. कैट्स वॉरियर की बात करें तो जब भी भारतीय फाइटर किसी भी रिस्की मिशन या ऑपरेशन के लिए निकलेगा तो एक फॉरेमेशन के तहत कैंट्स वॉरियर भी उड़ान भरेंगे और इन सभी कैंट्स वॉरियर ड्रोन में हवा से हवा और हवा से जमीन पर मार करने वाले मिसाइल सिस्टम से लैस होगा. अगर पायलट को दुश्मन के इलाके में टारगेट दिख जाता है लेकिन वो सीमा पार नहीं कर सकता. तब इस वॉरियर को लॉन्च किया जाएगा जिसे पायलट अपने कॉकपिट में बैठे ही ऑपरेट करेगा और से वॉरियर दुश्मन के इलाके में जाकर बम को लॉन्च करेगा और वापस आ जाएगा और बम उस निशाने को भेद देगा. इसी ऑपरेशन में फाइटर अपने साथ बाकी दोनों ड्रोन भी साथ लेकर उड़ान भरेगा.
कैट्स अल्फ़ा के अंदर 4 छोटे-छोटे ड्रोन से लैस होगा. तेजस इस तरह के करीब 20 ड्रोन के साथ उड़ान भर सकता है जबकि सुखोई-30 या कोई दूसरा फाइटर जेट हो तो वो 40 ड्रोन को अपने साथ ले जा सकता है. एक बार कैरियर से ड्रोन निकलने के बाद से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से अपने अपने टारगेट तक पहुंचेंगे और उन्हें निशाना बनाएंगे. यानी कि दुश्मन के इलाके में जाने से पहले ही इसे लॉन्च किया जाएगा.
इन स्वॉर्मिंग तकनीक के जरिए सभी ड्रोन को पहले से ही उसका काम समझा दिया जाएगा. ये कुछ रेकी करेंगे, कुछ मैपिंग करेंगे कुछ बम से लैस होंगे और पायलट कॉकपिट में बैठकर इसे ऑपरेट करेगा और बिना किसी रिस्क के दुश्मन के ठिकाने को नेस्तनाबूत कर देगा. और तीसरा है कैट्स हंटर यह तेजस के विंग के नीचे ही लगा होगा ये भी कैट्स वॉरियर की तरह ही मिशन को अंजाम देगा लेकिन यह वॉरियर से साइज में थोड़ा छोटा है. इन तीनों ड्रोन में से सिर्फ कैट्स वॉरियर ही वापस लौटेगा जबकि दूसरे ड्रोन मिशन के बाद वापस नही लौटेंगे. जब भी किसी ऑपरेशन को लॉन्च किया जाता है तो फाइटर जेट कई टीम में जाते हैं लेकिन भविष्य की लड़ाई के लिए जो ये तकनीक बनाई जा रही है उसमें फाइटर जेट के साथ ड्रोन की टीम भी मिशन पर भेजी जा सकती है और सारा जोखिम वाला काम ड्रोन ही निभा सकेंगे.
HIGHLIGHTS
- कैट्स अल्फ़ा के अंदर 4 छोटे-छोटे ड्रोन से लैस होगा
- तेजस इस तरह के करीब 20 ड्रोन के साथ उड़ान भर सकता है
- उड़ान भरने के बाद 24 घंटे में 70 हज़ार फुट की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा