भारतीय सेना चीन से लगी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से लगभग 100 किमी की दूर और 14 हजार फीट की ऊंचाई पर अब तक का सबसे सुनियोजित युद्धभ्यास शुरू करने जा रही है, जिसे हिमविजय नाम दिया गया है. युद्धाभ्यास 24 अक्टूबर तक चलेगा. न्यूज़ नेशन को सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, इसके दो महत्वपूर्ण फेज होंगे, जिसमे एक 7 से 10 अक्टूबर और दूसरा 20 से 24 अक्टूबर तक चलेगा. युद्धभ्यास में भौगोलिक चुनौतियों से पार पाते हुए सेना जल्द से जल्द कैसे एक से दूसरी जगह पहुंचें, बेहतर कम्युनिकेशन हो और कोऑर्डिनेशन कैसे बहेतर बनाया जाए. इन सब पर खास जोर दिया जाएगा.
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युद्धभ्यास में 3 बैटल ग्रुप 4-4 हजार की सैन्य क्षमता से लैश होंगे. सैन्य जमावड़ा, हवाई युद्ध और पहाड़ों पर युद्ध कौशल को यह अंजाम तक पहुंचाएंगे. इसके लिए लिए आर्मी और एयर फोर्स के हेलीकॉप्टर 15 हजार फीट की ऊंचाई पर सैन्य जमावड़े के साथ-साथ उन्हें सैन्य साजो-सामान पहुंचाने में मदद करेंगे.
सूत्रों के मुताबिक, यह नए बनाए गए इंटिग्रेटेड बैटल ग्रुप यानी आईबीजी का पहला परीक्षण है. अब तक आर्मी की एक कोर के अंदर डिविजन और फिर डिविजन के अंडर ब्रिगेड आती हैं, लेकिन आईबीजी में कोर से सीधे 8 से 10 ब्रिगेड को निर्देश मिल सकेगा. यानी ऑपरेशन हो या युद्ध कमांड में कोई बाधा या बीच का लेयर नहीं होगा.
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युद्ध अभ्यास में देखा जा रहा है कि मल्टीपल लेयर को समाप्त कर सिस्टम कितनी सफलता से काम कर सकता है. इस युद्धभ्यास में तीन बैटल ग्रुप हिस्सा ले रहे हैं, जिसमें माउंटेन असॉल्ट, मोबलाइजेशन और एयर असॉल्ट शामिल हैं. साथ ही स्पेशल फोर्स पैराट्रूपर्स भी इसका हिस्सा होंगे.
शी जिंगपिंग की यात्रा के बावजूद और यात्रा के दौरान भी सेना का अरुणाचल में युद्धाभ्यास जारी रहेगा. जाहिर है न्यू इंडिया अरुणाचल से चीन को साफ संदेश देगा कि इसकी सुरक्षा व्यवस्था से किसी भी तरह का समझौता नही होने वाला. दिलचस्प बात ये है कि यह युद्धाभ्यास अक्टूबर के उसी महीने में हो रहा है, जिस महीने में चीन ने 1962 में अरुणाचल पर धावा बोला था.
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न्यूज़ नेशन को मिली जानकारी के अनुसार, पहले इस एक्सरसाइज को निचले इलाकों में करने की प्लानिंग थी, लेकिन फिर यह देखा गया कि आईबीजी को जब युद्ध की स्थिति में 15 हजार से ऊंची चोटियों पर लड़ना होगा तो फिर इस युद्धाभ्यास को धरातल पर करने का क्या फायदा! परिस्थितियों में युद्ध की नई रणनीति का परीक्षण होना चाहिए. इसके बाद अभ्यास के लिए अरुणाचल के चुनौती भरे हिमालय के गगनचुम्बी चोटियों को चुना गया.
Source : मधुरेन्द्र कुमार