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भारतीय वायुसेना दिवस: अर्जन सिंह के पायलट ऑफ़िसर से मार्शल बनने की पूरी कहानी

1965 के युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व क्षमता और कार्रवाइयों को देखते हुए भारत सरकार ने अर्जन सिंह को पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

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saketanand gyan
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भारतीय वायुसेना दिवस: अर्जन सिंह के पायलट ऑफ़िसर से मार्शल बनने की पूरी कहानी

मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स अर्जन सिंह (फाइल फोटो)

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भारतीय सैन्य इतिहास का एक अमूल्य योद्धा, भारत- पाक युद्ध का हीरो, मार्शल ऑफ़ इंडियन एयरफ़ोर्स, भारतीय वायुसेना का सबसे बूढ़ा और मजबूत लड़ाका आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन जब भारतीय वायुसेना 85वां सालगिरह मना रही है, तो उस मज़बूत लड़ाके अर्जन सिंह को याद करना लाज़मी है। क्योंकि भारतीय वायुसेना और अर्जन सिंह का इतिहास मौजूदा वक़्त तक समानांतर ही चला है।

8 अक्टूबर 1932 में स्थापित भारतीय वायुसेना आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी और मज़बूत वायुसेना बन पाई है, तो वह अपने जांबाज़ जवानों और अफ़सरों की बदौलत। इसमें 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हीरो रहे अर्जन सिंह की छोड़ी हुई अतुलनीय विरासत और उनका योगदान भी महत्वपूर्ण है।

पिछले महीने 16 सितंबर को ही उनका दिल्ली के आर्मी अस्पताल में 98 साल की उम्र में निधन हो गया था।

अपनी उम्र के मुताबिक ही इन्होंने भारतीय वायुसेना की रीढ़ बनकर अंतिम समय तक देश की सेवा करते रहे। हमारे सैन्य इतिहास के एकमात्र 'मार्शल ऑफ़ एयरफ़ोर्स' अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को पंजाब के लयालपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था।

19 वर्ष की उम्र में उन्होंने रॉयल एयरफ़ोर्स कॉलेज में प्रवेश लिया और पायलट ऑफ़िसर के रूप में ग्रेजुएट हुए। इसके तुरंत बाद ही उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा (मौजूदा म्यांमार) में फ़ाइटर पायलट और कमांडर के रूप में युद्ध लड़ा और साथ ही अंग्रेज़ों के मिशन इंफ़ाल में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। 1944 में उन्हें इसी भयमुक्त और असाधारण सेवा के लिए डीएफ़सी (Distinguished Flying Cross) से सम्मानित किया गया।

15 अगस्त 1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद अर्जन सिंह के नेतृत्व में ही वायुसेना के 100 से ज़्यादा विमानों ने दिल्ली के लाल किले के ऊपर से फ़्लाइंग पास्ट किया था। 1949 में उनकी क़ाबिलियत को देखते हुए भारतीय वायुसेना ने उन्हें पश्चिमी एयर कमांड का एओसी (Air Officer Commanding) एयर कोमोडोर नियुक्त कर दिया। इस पद पर वे 1949-52 और दोबारा 1957-61 तक रहे।

1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद अर्जन सिंह को एयर स्टाफ़ का डिप्टी चीफ़ बनाया गया और 1963 में ही एयर स्टाफ़ के वाइस चीफ़ बन गए। फिर उनकी नेतृत्व क्षमता को देखते हुए वायुसेना ने उन्हें 1 अगस्त 1964 को चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ (CAS) के रूप में नियुक्त कर दिया। जो कि एयर मार्शल के रैंक का अधिकारी होता है।

वायुसेना के इस माहिर और बहादुर अधिकारी ने 1969 में अपने रिटायरमेंट तक 60 अलग- अलग विमानों को उड़ा लिया था। इससे उनकी क्षमता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

भारतीय सैन्य इतिहास के परीक्षा की घड़ी यानि कि 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ अर्जन सिंह ने अपनी बहादुरी का एक अलग ही नमूना पेश किया था। उन्होंने ख़ुद सीमा पार घुसकर पाकिस्तान के कई वायुसेना ठिकानों को गिरा दिया था।

बताया जाता है कि पाकिस्तानी सेना ने टैंकों के साथ जम्मू के अखनूर शहर पर हमला किया, तो रक्षा मंत्रालय ने अर्जन सिंह को तुरंत एक्शन लेने के लिए कहा। इसके बाद सिंह ने पूरी कार्रवाई और सेना को तैयार कराने के लिए सिर्फ़ 1 घंटे का समय मांगा था।

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1965 के युद्ध के दौरान उनके नेतृत्व क्षमता और कार्रवाइयों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया।

साथ ही वायुसेना ने उन्हें पदोन्नति देकर एयर चीफ़ मार्शल बना दिया। इस तरह वे भारतीय वायुसेना के पहले 'एयर चीफ़ मार्शल' बन गए। उनके चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ रहते हुए भारतीय वायुसेना ने सुपरसोनिक फ़ाइटर्स, टैक्टिकल ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ़्ट और आक्रमण करने वाले हेलीकॉप्टर (असॉल्ट हेलिकॉप्टर्स) जैसे कई अत्याधुनिक विमान शामिल किए, जो अभी तक अपनी सेवा दे रहा है।

जुलाई 1969 में सेवानिवृत्त होने के बाद अर्जन सिंह को स्विट्ज़रलैंड में भारतीय राजदूत के रूप में नियुक्त किया गया।

जनवरी 2002 में उनके अद्वितीय योगदानों के कारण भारतीय वायुसेना ने अर्जन सिंह को सम्मान देते हुए मार्शल ऑफ़ इंडियन एयरफ़ोर्स की उपाधि दिया। और वायुसेना के अंदर फ़ाइव स्टार रैंक के अधिकारी के रूप में नियुक्त किया।

भारतीय वायुसेना के इतिहास में अर्जन सिंह के अलावा अब तक कोई भी फ़ाइव स्टार रैंक का अधिकारी नहीं रहा है और न ही किसी को 'मार्शल ऑफ़ इंडियन एयरफ़ोर्स' की उपाधि दी गई।

पिछले साल भारतीय वायुसेना ने अर्जन सिंह की 97वें जन्मदिन पर पश्चिम बंगाल स्थित पानागढ़ एयरबेस का नाम उनके नाम पर रख दिया। वह एकमात्र जीवित सैन्य अधिकारी हैं, जिनके नाम पर किसी एयरबेस का नाम रखा गया।

पानागढ़ एयरबेस का नाम अब अर्जन सिंह वायुसेना स्टेशन के नाम से जाना जाता है। इस तरह भारतीय वायुसेना में एक अतुलनीय विरासत छोड़ने वाले और इस ऐतिहासिक योद्धा की प्रासंगिकता हमेशा के लिए दर्ज हो गई। राष्ट्रीय सुरक्षा का एक मज़बूत स्तंभ भारतीय वायुसेना इनके कामों को भविष्य में आगे बढ़ाकर एक मज़बूत ताक़त बन सकती है।

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HIGHLIGHTS

  • अर्जन सिंह की 97वें जन्मदिन पर पश्चिम बंगाल स्थित पानागढ़ एयरबेस का नाम उनके नाम पर रखा गया
  • 2002 में भारतीय वायुसेना ने अर्जन सिंह को सम्मान देते हुए मार्शल ऑफ़ इंडियन एयरफ़ोर्स की उपाधि दिया
  • पिछले महीने 16 सितंबर को ही उनका दिल्ली के आर्मी अस्पताल में 98 साल की उम्र में निधन हो गया था

Source : News Nation Bureau

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