प्रशांत महासागर में बदलते सामरिक-रणनीतिक परिदृश्य को देखते हुए भारतीय नौसेना ने कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी (CCS) द्वारा अनुमोदित 30-वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना में बदलाव की मंजूरी के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार से संपर्क साधा है. नौसेना छह पारंपरिक हमले वाले जहाजों को परमाणु संचालित प्लेटफार्मों के साथ बदलना चाहती है. गौरतलब है कि जुलाई 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा 24 डीजल हमले वाली पनडुब्बियों को शामिल करने के लिए 30 वर्षीय पनडुब्बी योजना को मंजूरी दी गई थी. अभी तक भारत के पास रूसी संघ से लीज पर एक अकुला श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस चक्र और एक बैलिस्टिक मिसाइल फायरिंग पनडुब्बी आईएनएस अरिघाट है. दोनों स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड के अधीन हैं.
चीन की तैयारी के मद्देनजर बदलाव जरूरी
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार अब तक भारतीय नौसेना के पास 12 पुरानी पारंपरिक हमला पनडुब्बियां और तीन नई कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां हैं. इनमें से पहली को दिसंबर 2017 में 23,652 करोड़ की परियोजना के हिस्से के रूप में कमीशन किया गया था. आपको बता दें कि 2005 में इसकी स्वीकृति दी गई थी. नौसेना ने 18 पारंपरिक डीजल हमले की पनडुब्बियों की जगह नए पनडुब्बी बल को शामिल करने की अनुमति देने के लिए कैबिनेट की मंजूरी मांगी है. यह परिवर्तन चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी द्वारा परमाणु पनडुब्बी शस्त्रागार की तेज वृद्धि को ध्यान में रखते हुए और हिंद-प्रशांत को भविष्य में विरोधी के वर्चस्व से बचाने के लिए मांगा गया है.
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एसएसबीएन पनडुब्बियां है फिलहाल
अभी तक भारत के पास रूसी संघ से लीज पर एक अकुला श्रेणी की पनडुब्बी आईएनएस चक्र और एक बैलिस्टिक मिसाइल फायरिंग पनडुब्बी आईएनएस अरिघाट है. दोनों स्ट्रेटेजिक फोर्सेज कमांड के अधीन हैं. सभी बैलिस्टिक मिसाइल फायरिंग पनडुब्बियां जिन्हें एसएसबीएन भी कहा जाता है, भारतीय नौसेना के दायरे से बाहर हैं और सामरिक बल कमान के साथ हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों के अनुसार, एक बार जब मोदी सरकार 30 साल पुरानी योजना में बदलाव को मंजूरी दे देती है, तो भारतीय नौसेना संयुक्त विकास के लिए प्रमुख सहयोगियों से प्रस्तावों के लिए निविदा आमंत्रित करने से पहले आवश्यकता की स्वीकृति (एओएन) के लिए रक्षा मंत्रालय का रुख करेगी.
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10 साल लग जाएंगे निर्माण में
आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत छह परमाणु संचालित पनडुब्बियों का निर्माण होगा. भारतीय नौसेना के अनुमान के अनुसार इस परियोजना को पूरा होने में कम से कम 10 साल लगेंगे. नौसेना चाहती थी कि 30 साल की पनडुब्बी बल के स्तर को पूरा करने के लिए छह और एआईपी सुसज्जित डीजल पनडुब्बियों को जोड़ा जाए. राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकारों ने एडमिरल को आश्वस्त किया कि परमाणु हमले वाली पनडुब्बी महीनों तक सतह से नीचे रहने की क्षमता के साथ एक अधिक शक्तिशाली मंच है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन के स्वदेशी रूप से एआईपी तकनीक विकसित करने में सक्षम होने के साथ, सभी आईएनएश कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों को अपग्रेड या मिड-लाइफ रिफिट के दौरान नई तकनीक के साथ फिर से लगाया जाएगा.
HIGHLIGHTS
- 30-वर्षीय पनडुब्बी निर्माण योजना में बदलाव की मांग
- जुलाई 1999 में वाजपेयी सरकार ने दी योजना को मंजूरी
- हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन को टक्कर देने के लिए जरूरी