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चाहकर भी निर्भया के दोषियों को नहीं दी जा सकती सरेआम फांसी, यहां पढ़ें फांसी से जुड़े A to Z सभी नियम

फांसी जेल परिसर में बने किसी ख़ास जगह या जेल परिसर में ही कहीं भी दी जा सकती है. जेल परिसर के बाहर फांसी नहीं दी जा सकती.

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Sunil Chaurasia
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चाहकर भी निर्भया के दोषियों को नहीं दी जा सकती सरेआम फांसी, यहां पढ़ें फांसी से जुड़े A to Z सभी नियम

सांकेतिक तस्वीर( Photo Credit : https://newschannel9.com/)

सुप्रीम कोर्ट में निर्भया गैंगरेप मामले के दोषी अक्षय ठाकुर की रिव्‍यू पिटीशन खारिज होने के बाद पटियाला हाउस कोर्ट में दोषियों के डेथ वारंट पर सुनवाई शुरू हुई. सुनवाई पूरी होने के बाद पटियाला हाउस कोर्ट ने दोषियों का डेथ वारंट जारी नहीं किया. कोर्ट ने तिहाड़ जेल प्रशासन से कहा कि वे दोषियों को नोटिस भेजकर बोले कि एक सप्‍ताह में सभी कानूनी राहत के विकल्‍प आजमा लें. नोटिस की समयसीमा अभी से शुरु होती है. पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही पब्लिक प्रॉसीक्यूटर ने कहा कि कोर्ट को डेथ वारंट जारी करना चाहिए. केवल इसलिए कि वो दया याचिका दायर करना चाहते हैं, डेथ वारंट रुकना नहीं चाहिए. इस पर कोर्ट ने कहा, जब दोषी की दया याचिका राष्ट्रपति खारिज करेंगे, उसके बाद ही डेथ वारंट जारी किया जा सकता है. बता दें कि केस के दो अन्य दोषी मुकेश और पवन गुप्ता ने दया याचिका दाखिल नहीं की.

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लोगों की मांग है कि निर्भया के दोषियों को सरेआम फांसी दी जानी चाहिए, लेकिन भारत के संविधान और कानून के मुताबिक ऐसा संभव नहीं है. देश के कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसमें दोषियों को सरेआम फांसी की सजा दी जाए. आज हम आपके लिए फांसी को लेकर तमाम नियम और कानूनों की पूरी लिस्ट लेकर आए हैं. कैदी की फांसी से पहले क्या-क्या तैयारियां की जाती हैं, क्यों जेल के बाहर फांसी नहीं दी जा सकती, क्यों कैदी को फांसी की सूली देखने नहीं दिया जाता. फांसी से जुड़ी सभी जानकारियों आप यहां पढ़ सकते हैं.

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फांसी की सजा से जुड़े सभी कानून इस प्रकार हैं-

· मर्सी पिटीशन रिजेक्ट होने के बाद राज्य सरकार फांसी की तारीख तय करती है.

· किसी भी सरकारी छुट्टी के दिन फांसी नहीं दी जा सकती.

· फांसी की तारीख तय होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट क़ैदी के परिजनों को ख़बर देते हैं.

· जेल सुपरिटेंडेंट फांसी का वक़्त तय करते हैं, जिसकी जानकारी आईजी, सेशन जज और सरकार तक पहुंचाई जाती है.

· फांसी के लिए सुबह सवेरे का वक़्त तय किया जाता है, जिसे मौसम के हिसाब से ऊपर नीचे किया जा सकता है.

· एक्ज़ीक्युटिव इंजिनियर सूली की जांच करते हैं.

· मेडिकल ऑफिसर को क़ैदी की फांसी से चार दिन पहले ही ये बताना होता है की फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप कितना होगा.

· आमतौर पर फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 6 से 8 फ़ीट होता है. ये गैप क़ैदी के वज़न और हाइट के मुताबिक़ तय की जाती है.

· अगर क़ैदी का वज़न 45 किलोग्राम से कम है तो फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 8 फ़ीट होगा.

· अगर क़ैदी का वज़न 45 -60 किलोग्राम है तो फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 7 फ़ीट 8 इंच होगा.

· अगर क़ैदी का वज़न 60 किलोग्राम से ज़्यादा है तो फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 7 फ़ीट होगा.

· अगर क़ैदी का वज़न 75 किलोग्राम से ज़्यादा है तो फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 6 फ़ीट 6 इंच होगा.

· अगर क़ैदी का वज़न 91 किलोग्राम से ज़्यादा है तो फांसी के फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच का गैप 6 फ़ीट होगा.

· जिस रस्सी से फांसी दिया जाना है वो कॉटन का बना होना चाहिए, जिसका व्यास 3.81 cms तय किया गया है.

· फांसी के फंदे की लम्बाई.. फंदे पर झूलने के बाद क़ैदी के पैर और ज़मीन के बीच के गैप, क़ैदी के गर्दन की साइज़ के मुताबिक़ तय की जाती है.

· फांसी का फंदा तैयार होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट सूली की जांच करते हैं, फांसी से एक दिन पहले डमी टेस्ट होता है.

· डमी टेस्ट के लिए क़ैदी के वज़न से डेढ़ गुना ज़्यादा वज़न का बैग जिसमें बालू भरा होता है या डमी लटका कर रस्सी की मज़बूती चेक की जाती है.

· एक ही रस्सी का इस्तेमाल एक या एक से ज़्यादा क़ैदियों को फांसी के लिए किया जा सकता है, लेकिन किसी इमरजेंसी का सामना करने के लिए अलग से दो सेट रस्सी का इंतज़ाम भी होता है.

· फांसी की रस्सी की गांठ वाली जगह पर मोम या बटर लगा दी जाती है.

· रस्सी की मज़बूती का टेस्ट होने के बाद रस्सी और दूसरे सामानों को एक स्टील बॉक्स में रखकर सीलबंद कर दिया जाता है और स्टील बॉक्स को जेल के डिप्टी सुपरिटेंडेंट के हवाले कर दिया जाता है.

· फांसी जेल परिसर में बने किसी ख़ास जगह या जेल परिसर में ही कहीं भी दी जा सकती है. जेल परिसर के बाहर फांसी नहीं दी जा सकती.

· फांसी के तय वक़्त से पहले जेल सुपरिटेंडेंट, डेप्युटी सुपरिटेंडेंट, अस्सिस्टेंट सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर, डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट अनिवार्य रूप से मौजूद होते हैं.

· क़ैदी अगर चाहे तो वो अपने मज़हब या विश्वास के मुताबिक़ किसी धर्मगुरु की मांग कर सकता है.

· फांसी के वक़्त क़ैदी के रिश्तेदार या दूसरे क़ैदी को फांसी देखने की इजाज़त नहीं दी जाती, लेकिन जेल सुपरिटेंडेंट अगर चाहे तो सोशल साइंटिस्ट, साइक्लोजिस्ट, साइकिएट्रिस्ट वगैरह जो रिसर्च करते हैं, उन्हें मौजूद रहने की इजाज़त दे सकते हैं.

· फांसी के वक़्त 10 पुलिस कांस्टेबल और 2 हेड कांस्टेबल या 12 प्रिज़न आर्म्ड गार्ड का मौजूद होना ज़रूरी है.

· फांसी से पहले जेल के सभी सेल में सभी क़ैदियों को सेल के अंदर ही लॉक कर दिया जाता है.

· सभी तैयारी पूरी होने पर फांसी से एक घंटे पहले जेल सुपरिटेंडेंट, डेपुटी सुपरिटेंडेंट, एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट और मेडिकल ऑफिसर उस क़ैदी के पास जाते हैं, जिसे फांसी दी जानी है.

· जेल सुपरिटेंडेंट, डेपुटी सुपरिटेंडेंट, एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट दस्तावेज़ के आधार पर ये पुष्टि करते हैं की क्या ये वही क़ैदी है जिसे फांसी दिया जाना है और क़ैदी को उसकी मातृभाषा में वारंट में लिखी बातें पढ़ कर सुनाई जाती है.

· क़ैदी की दस्तावेज़ी पुष्टि होने पर कुछ दस्तावेज़ों में क़ैदी के दस्तखत लिए जाते हैं, जिसके बाद क़ैदी के दोनों हाथ पीछे कर बांध दिए जाते हैं.

· क़ैदी को फांसी की सूली की तरफ लाया जाता है, लेकिन सूली तक पहुंचने से कुछ दूर पहले ही कॉटन कैप से उसके चेहरे को ढंक दिया जाता है क्योंकि फांसी पर लटकने वाले क़ैदी को सूली देखने की इजाज़त नहीं होती.

· क़ैदी को सूली पर चढ़ाया जाता है, क़ैदी के गले में फंदा डाला जाता है. सभी तैयारी पूरी होने के बाद जेल सुपरिटेंडेंट जल्लाद को लीवर खींचने का आदेश देते हैं.

· लीवर खींचने के बाद क़ैदी को अगले 30 मिनट तक फांसी के फंदे पर ही लटकता छोड़ दिया जाता है, इसके बाद मेडिकल ऑफिसर मौत की पुष्टि करते हैं. जिसके बाद क़ैदी के शव को फांसी के फंदे से उतारा जाता है.

· क़ैदी के शव को जेल में ही उसके मज़हब की रीति रिवाज के मुताबिक़ अंतिम संस्कार किया जाता है.

· अगर क़ैदी का कोई रिश्तेदार शव की मांग करता है तो जेल सुपरिटेंडेंट उसे इस शर्त के साथ शव सौंपते हैं की शव का पब्लिक डेमोंस्ट्रेशन नहीं किया जाएगा.

· जेल सुपरिटेंडेंट, मेडिकल ऑफिसर और एक्ज़ीक्युटिव मजिस्ट्रेट का दस्तखत किया वारंट उस कोर्ट को वापस भेजते हैं.

· जेल सुपरिटेंडेंट फांसी की रिपोर्ट आईजी को भेज देते हैं.

Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो

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