भारत में घोटालों का इतिहास काफी लंबा है. विजय माल्या, नीरव मोदी से पहले भी कई कारोबारी भारत को चूना लगा चुके हैं, इसी में एक नाम धर्म तेजा का भी है. बताया जाता है कि जयंती शिपिंग कंपनी शुरू करने के लिए 1960 में उसने 22 करोड़ रुपए का लोन लिया था. इस राशि को वो देश के बाहर भेज दिया था.
सरकारी पैसों के घोटाले के आरोप में कोर्ट ने तेजा धर्मा को 19 अक्टूबर 1972 को तीन साल की सजा हुआ और 14 लाख का जुर्माना हुआ. जुर्माना नहीं चुकाने के एवज में तीन साल की और अतिरिक्त सजा काटनी थी. लेकिन तीन साल के बाद धर्म तेजा जेल से निकल आया वो भी बिना जुर्माना दिए.
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कहा जाता है कि जनता पार्टी शासन काल में उसकी पहुंच बेहद ही मजबूत थी. सत्ता के गलियारे में उसकी पहुंच किस कदर थी इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता था कि सजा काटने के तुरंत बाद उसका पासपोर्ट जारी हो गया. नियम के मुताबिक 2 साल या उससे अधिक की सजा होने पर सजायाफ्ता को अगले 5 साल तक पासपोर्ट नहीं मिलता है, लेकिन इसके बावजूद जब वो 1975 में बाहर निकला और 1977 में वो विदेश चला गया.
एक वेबसाइट के मुताबिक इस बाबत तत्कालीन पीएम मोरारजी देसाई ने कहा था कि धर्म तेजा ने जितना सरकार से लिया है उससे अधिक दिया है. इसलिए वो कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र है. ये भी कांग्रेस के नेता ने आरोप लगाया था कि धर्म तेजा का प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव वी शंकर से अच्छा साठगांठ थी. धर्मा तेजा उस जमाने का 'माल्या' था ऐसा कहना गलत नहीं होगा.
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Source : News Nation Bureau