भारतीय बैंकों को अबतक सिर्फ नीरव मोदी ने ही नहीं बल्कि कई कंपनियों समेत अन्य लोगों ने भी लगभग 1 लाख करोड़ से ज्यादा का चूना लगाया है। ये ऐसे लोग है जो जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाना चाहते हैं जिन्हें विलफुल डिफॉल्टर्स भी कहते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया के विश्लेषण के मुताबिक, 9,000 से ज्यादा ऐसे अकाउंट है जिनसे कर्ज वसूली के लिए बैंकों ने मुकदमा दायर किया है और टॉप 11 ऋणदाताओं के समूह में प्रत्येक के पास 1000 करोड़ रूपये से ज्यादा का कर्ज है।
कुल मिलाकर सभी बैंको का 26,000 करोड़ रुपये का कर्ज ऋणदाताओं के पास है।
सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि 25 लाख रुपये से अधिक के विलफुल डिफॉल्टर्स पर मुकदमा दायर है।
ये आंकड़े बताते हैं कि जतिन मेहता की कंपनियों विनसम डायमंड्स ऐंड जूलरी लि. और फॉरएवर प्रेसस जूलरी ऐंड डायमंड्स लि. ने विभिन्न बैंकों के 5,500 करोड़ रुपये नहीं चुकाए हैं। बताया जाता है कि जतिन महेता सैंट किट्स और नेविस की नागरिकता ले चुका है जिनके साथ भारत का प्रत्यर्पण संधि नहीं है।
मेहता की भारत वापसी की उम्मीद फिलहाल नहीं के बराबर है।
दूसरा नंबर शराब कारोबारी विजय माल्या का है जिन्होंने कुल मिलाकर बैंकों से 3,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज उधार है।
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आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि बैंकों के फंसे कर्जों की रकम में बहुत तेज बढोत्तरी हुई है। मसलन, पिछले एक साल में बैंकों का बैड लोन 27% बढ़ गया है। उससे तीन साल पहले तक यह आंकड़ा क्रमशः 38%, 67% और 35% रहा था।
इसी तरह सितंबर 2013 और सितंबर 2017 के बीच फंसे कर्ज की रकम 28,417 करोड़ रुपये से बढ़कर करीब चार गुना यानी 1.1 लाख करोड़ रुपये हो गई है। इसका कुछ हिस्सा हर साल बढ़ रहे ब्याज का तो हो सकता है, लेकिन इतना बड़ा इजाफा सिर्फ ब्याज की वजह से ही नहीं हो सकता।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने विलफुल डिफॉल्टर्स को परिभाषित करते हुए कहा कि विलफुल डिफॉल्टर्स वही होते है जो कर्ज चुकाने में सक्षम है लेकिन जानबूझ कर वापस नहीं करना चाहते हैं। ऐसे में बैंक उनके नाम को विलफुल डिफॉल्टर्स की लिस्ट में डाल देते हैं। वैसे कर्जदार जो लोन की सिक्योरिटी के रूप में रखी संपत्तियों को बैंक को बताए बिना बेच देते हैं, उन्हें भी इसी श्रेणी में रखा जाता है।
250 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम दबाए बैठी 50 से ज्यादा कंपनियों या समूहों के पास बैंकों के कुल 48,000 करोड़ रुपये फंसे हैं। यह रकम इस बार के बजट 2018-19 में स्वास्थ्य क्षेत्र को आवंटित 52,800 करोड़ रुपये से कुछ ही कम है।
आंकड़ों का बैंक वार विश्लेषण करने पर पता चला कि फंसी हुई रकम में सरकारी बैंकों का 60% हिस्सा है। इनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) और इसके सहयोगी बैंक शामिल नहीं हैं।
हालांकि, कुल फंसी रकम का एक चौथाई यानी 25% हिस्सा सिर्फ एसबीआई और इनके सहयोगी बैंकों का ही है। विलफुल डिफॉलटर्स ने प्राइवेट बैंकों को भी 14,000 करोड़ रुपये की चपत लगा रखी है।
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Source : News Nation Bureau