रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बाद भी रूस से नजदीकी संबंध रखने से नाराज अमेरिका संग कल यानी सोमवार को 2+2 यानी रक्षा और विदेश मंत्री स्तर पर वार्ता होगी. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के राज में यह भारत और अमेरिका के बीच पहली 2+2 वार्ता है. यह वार्ता 2020 से टल रही थी. मई 2022 में जापान में होने वाली क्वॉड शिखर बैठक, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति बाइडन मिलेंगे, उसके पहले हो रही यह 2+2 बैठक अहम है. रक्षा और विदेश मंत्रियों की यह बातचीत ऐसे समय पर हो रही है, जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण भारत और अमेरिका के रिश्तों में तनाव उभरा है. अमेरिका के डिप्टी एनएसए दलीप सिंह और अन्य अधिकारियों की तरफ से आए बयानों में इसकी तस्दीक भी हुई है. इसके अलावा, अमेरिका रुपए-रूबल में विनिमय कारोबार, रूस से तेल खरीद समेत भारत के कई फैसलों पर अपनी चिंता जता चुका है.
बैठक से पहले अमेरिका नरम पड़े तेवर
हालांकि, इस अहम वार्ता से ठीक पहले व्हाइट हाउस प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि भारत के साझेदारी अमेरिका की सबसे अहम साझेदारी है. बाइडन प्रशासन इसको बहुत अहम मानता है. साकी ने कहा कि राष्ट्रपति बाइडन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच द्विपक्षीय संवाद से लेकर क्वॉड शिखर सम्मेलन में भी बात हुई है. रक्षा और विदेश मंत्री स्तर की इस बातचीत में हम अपने साझा हितों और स्वतंत्र व मुक्त हिन्द प्रशांत क्षेत्र के विजन को आगे बढ़ाएंगे. इस बैठक में जहां भारत की तरफ से रूस को लेकर अपने रूख को स्पष्ट करने की कोशिश होगी. वहीं रूस पर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों पर भी बात होगी. अपना पक्ष रखने के साथ साथ भारत की कोशिश होगी कि इन प्रतिबंधों से अपने कारोबारी हितों और रणनीतिक सहयोग परियोजनाओं को सुरक्षित रखा जा सके.
भारत को अपने पाले में लाने के लिए अमेरिका दे सकता खास ऑफर
रूस से करीबी संबंध रखने वाले भारत को साधने के लिए अमेरिका की तरफ से कई ऑफर दिए जाने की संभावना जता जा रही है. खबरों के मुताबिक, ड्रोन तकनीक, साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी नई प्रौद्योगिकी के साथ ही नए हथियारों का प्रस्ताव दिए सकते हैं. गौरतलब है कि अब से कुछ दिन पहले ही अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने अमेरिका कांग्रेस के आगे बजट प्रस्तावों पर हुई सुनवाई के दौरान कहा था कि भारत को रूसी सैन्य साजो-समान पर अधिक निवेश की बजाए बेहतर अमेरिकी हथियारों की खरीद पर ध्यान देना चाहिए. ताकि दोनों देशों के बीच बेहतर सैन्य तालमेल बन सके. वहीं, अमेरिका की ओर से इस बात पर ज़ोर होगा कि अगर भारत जैसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला अहम देश रूस को बचाव का गलियारा देता है तो इससे मॉस्को को उसकी गलती का एहसास दिलाने वाले प्रतिबंध बेअसर हो जाएंगे. ऐसे में भारत का साथ आना महत्वपूर्ण है.
जो बाइडेन और पीएम मोदी की मुलाकात के लिए तैयार होगी रणनीति
भारत और अमेरिका के बीच चौथे दौर की 2+2 वार्ता 11 अप्रैल को वाशिंगटन में होगी. इस वार्ता के बाद 13-15 अप्रैल के बीच भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ अमेरिकी रक्षा विभाग की हवाई के सैन्य ठिकानों पर भी बैठकें होंगी. अमेरिका की इंडो पैसिफिक कमांड का मुख्यालय हवाई में ही है और हिन्द-प्रशांत को लेकर साझा रणनीति के लिहाज़ से अहम केंद्र है. इसके अलावा, 12 से 15 अप्रैल के बीच विदेश मंत्री जयशंकर जहां अमेरिकी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ द्विपक्षीय मुलाकातें करेंगे. इसके साथ ही राष्ट्रपति जो बाइडेन से उन की शिष्टाचार मुलाकात होने की भी संभावना है. इसके अलावा डॉ जयशंकर न्यूयॉर्क भी जाएंगे, जो इस वक्त रूस-यूक्रेन युद्ध संकट के मद्देनजर विश्व राजनीति का बड़ा केंद्र बना हुआ है. गौरतलब है कि इस वर्ष के अंत में एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता भारत के पास होगी. इसके मद्देनजर भी डॉ जयशंकर न्यूयॉर्क में बैठक करेंगे.
दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच 2+2 यानी रक्षा और विदेश मंत्री स्तर की संयुक्त बैठक की व्यवस्था है. दोनों देशों के बीच यह रणनीतिक वार्ता का एक अहम तंत्र है. गौरतलब है कि भारत इस तरह की व्यवस्था के साथ कुछ चुनिंदा रणनीतिक सहयोगी देशों के साथ ही बात करता है. इसमें जापान, ऑस्ट्रेलिया जैसे क्वॉड सहयोगियों के अलावा रूस भी शामिल है. इस बैठक में खास तौर से भारत और अमेरिका साझा रणनीतिक हितों जैसे चीन से उभरते खतरे से मुकाबले की तैयारी, भविष्य की चुनौतियां, मौजूदा क्षेत्रीय और वैश्विक चिंताओं पर मंथन करते हैं. इसके साथ ही इस बैठक में भारत की रक्षा और रणनीतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक अमेरिकी मदद पर भी बात होती है. इस वक्त इस बातचीत का एक अहम मुद्दा मौजूदा रूस-यूक्रेन युद्ध संकट और उससे उभरे हालात भी होंगे.
HIGHLIGHTS
- रुपए-रूबल में कारोबार और तेल खरीद से भड़का है अमेरिका
- भारत को रूस से दूर रखने की अमेरिका कर सकता है प्रयास
- नई प्रौद्योगिकी के साथ ही नए हथियारों का मिल सकता है प्रस्ताव