भारत ने पाकिस्तान को ‘सिंधु जल संधि’ के तहत लंबित मुद्दों पर चर्चा कोरोना वायरस महामारी के चलते वीडियो कांफ्रेंस के जरिये करने का सुझाव दिया है, लेकिन इस्लामाबाद अटारी सीमा चौकी (चेक पोस्ट) पर बाचतीत करने पर जोर दे रहा है. सूत्रों ने रविवार को यह जानकारी दी. पिछले हफ्ते एक पत्र में भारत के सिंधु आयुक्त ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष से कहा था कि महामारी के कारण अटारी संयुक्त चौकी पर बैठक करना उपयुक्त नहीं होगा.
सिंधु जल संधि के तहत लंबित मुद्दे पर चर्चा के लिये पाकिस्तान के अनुरोध पर मार्च के अंतिम सप्ताह में एक बैठक का कार्यक्रम निर्धारित किया गया था. लेकिन महामारी फैलने के कारण इसे टाल दिया गया. सूत्रों ने बताया कि स्थिति के सामान्य होने में और अंतरराष्ट्रीय यात्रा बहाल होने में कुछ वक्त लग सकने पर गौर करते हुए भारतीय आयुक्त ने, जुलाई के प्रथम सप्ताह में, वीडियो कांफ्रेंस या किसी अन्य वैकल्पिक माध्यम से बैठक आयोजित करने का प्रस्ताव दिया था.
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वहीं, इसके जवाब में पाकिस्तान के आयुक्त ने जुलाई के अंतिम सप्ताह में लिखे अपने पत्र में पारंपरिक बैठक अटारी संयुक्त चौकी पर करने पर जोर दिया. एक सूत्र ने बताया, ‘‘भारतीय आयुक्त ने इसका यह कहते हुए जवाब दिया कि उसके (भारत के) शिष्टमंडल की यात्रा के लिये और अटारी संयुक्त चौकी पर बैठक करने के लिये भारत में स्थिति अब भी अनुकूल नहीं है तथा पाकिस्तान की इच्छा के मुताबिक अटारी संयुक्त चौकी पर इस तरह की बैठक की अनुमति देने में कुछ वक्त लग सकता है. ’’
सूत्रों ने बताया कि भारतीय आयुक्त ने पाकिस्तानी पक्ष से लंबित मुद्दों और नये मुद्दों पर एक व्यवहार्य विकल्प के तौर पर डिजिटल बैठक करने पर भी विचार करने को कहा. उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि यहां तक कि अन्य देशों के साथ राजनयिक वार्ता डिजिटल बैठकों के माध्यम से हो रही हैं और सिंधु बैठक इसी तरह से हो सकती है. अभी दोनों पक्षों के बीच एक लंबित मुद्दा किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं को लेकर असहमति है.
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किशनगंगा परियेाजना 2018 से ऑपरेशन में है जबकि रातले पर काम 2014 से रूका हुआ है क्योंकि जम्मू कश्मीर सरकार और ठेकेदार के बीच एक अनुबंध विवाद है. लंबी बातचीत के बाद भारत ने 2016 में इस मुद्दे के हल के लिये एक निष्पक्ष विशेषज्ञ नियुक्त करने की मांग की थी जबकि पाक ने मध्यस्थता अदालत नियुक्त किये जाने का अनुरोध किया था.
आगे की राह तलाशने के लिये नवंबर 2019 में जल शक्ति मंत्रालय के सचिव के नेतृत्व में विश्व बैंक के साथ एक बैठक के बाद यह सहमति बनी थी कि संधि के प्रावधानों के मुताबिक दोनों आयुक्त इस विषय पर चर्चा करेंगे ताकि समाधान के माध्यम -- मध्यस्थता अदालत या निष्पक्ष विशेषज्ञ--पर निर्णय हो सके.
विश्व बैंक ने शुरूआत में दोनों माध्यमों पर आगे बढ़ने की कोशिश की लेकिन बाद में दिसंबर 2016 में इसने दोनों प्रक्रियाओं को अस्थायी रूप से रोक दिया ताकि दोनों पक्ष द्विपक्षीय तरीके से एक विकल्प चुन सकें. संधि के तहत विश्व बैंक की भूमिका सिर्फ कार्यप्रणालीगत है और इस बारे में इस वैश्विक वित्तीय संस्था के कोई स्वतंत्र फैसला लेने का कोई प्रावधान नहीं है. सूत्रों ने बताया कि विश्व बैंक की अस्थायी भूमिका अब भी जारी है. अगस्त एवं सितंबर 2017 में वाशिंगटन में विश्व बैंक कार्यालय में सचिव स्तर की दो त्रिपक्षीय बैठक हुई.
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नवंबर की वार्ता के बाद भारतीय आयुक्त ने अपने पाकिस्तानी समकक्ष को फरवरी 2020 में स्थायी सिंधु आयोग की बैठक करने के लिये आमंत्रित किया. यह बैठक मार्च में होने का कार्यक्रम था लेकिन महामारी के चलते इसे टाल दिया गया. सिंधु जल संधि के तहत गठित स्थायी सिंधु आयोग पर 1960 में दोनों देशों ने हस्ताक्षर किये थे. यह संधि दोनों आयुक्तों के हर साल कम से कम एक बार मिलने का प्रावधान करती है.
यह बैठक दोनों देशों में क्रमवार रूप से होंगी. संधि के मुताबिक रावी, व्यास और सतलुज का जल विशेष रूप से भारत के लिये होगा जबकि सिंधु, चेनाब और झेलम नदियों के जल के उपयोग का अधिकार पाकिस्तान के पास होगा. उसे कृषि, नौवहन, घरेलू उपयोग और पनबिजली परियोजनाएं विकसित करने पर निर्बाध अधिकार दिये गये हैं.
Source : Bhasha