भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता पर विदेश मंत्रालय ने कहा है कि यह द्विपक्षीय मुद्दा है और तकनीकी सवालों और मतभेदों को आपस में ही सुलझाया जाना चाहिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने कहा, 'ऐसे उदाहरण उपलब्ध हैं जब ऐसे मामले स्थायी सिंधु आयोग के दायरे में सफलतापूर्वक सुलझाए गए हैं। उदाहरण के तौर पर किशन गंगा परियोजना में फ्रीबोर्ड की ऊंचाई का मुद्दा जिस तरह से सुलझाया गया था या दोनों सरकार के बीच सालाल जल विद्युत परियोजना का मुद्दा 1978 में सुलझाया गया था।'
इससे पहले विश्व बैंक समूह ने भारत और पाकिस्तान के बीच अपनी मतभेदों को सुलझाने के लिए वैकल्पिक व्यवस्था पर विचार करने के लिए अलग-अलग प्रक्रियाओं पर रोक की घोषणा की। इसी समूह ने 1960 में सिंधु जल समझौते की मध्यस्थता की थी।
विश्व बैंक से जारी एक बयान के अनुसार, भारत के आग्रह पर अस्थाई रूप से तटस्थ विशेषज्ञ और पाकिस्तान के आग्रह के अनुसार पंचाट अध्यक्ष की नियुक्ति पर रोक लगाई जाता है ताकि भारत द्वारा सिंधु नदी प्रणाली पर बनाए जा रहे दो विद्युत संयंत्रों का मुद्दा सुलझाया जा सके।
जम्मू एवं कश्मीर के उड़ी में 18 सितंबर को सेना के शिविर पर हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते की समीक्षा करने की बात कही थी। उड़ी हमले में 19 जवान शहीद हुए थे। भारत ने इसके लिए पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद पर आरोप लगाया था।
इस समझौते के तहत भारत का तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलज पर नियंत्रण है जो पंजाब से बहती हैं और सिंधु, चेनाब और झेलम जम्मू एवं कश्मीर से बहती हैं, उन पर पाकिस्तान का नियंत्रण है।
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जम्मू एवं कश्मीर इस समझौते की समीक्षा करने की मांग करता है क्योंकि यह समझौता इन नदियों के जल के इस्तेमाल के राज्य के अधिकार को छीन लेता है। फिलहाल किशनगंगा (330 मेगावाट) और रताल (850 मेगावाट) जल विद्युत संयंत्र भारत क्रमश: किशनगंगा और चेनाब नदी पर बना रहा है।
Source : News Nation Bureau