महाराष्ट्र में हुए स्थानीय चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन खासा अच्छा रहा है। नोटबंदी को विपक्ष ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था और कहा था कि देश की जनता को इस फैसले से परेशानी हुई है और चुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ सकता है। नोटबंदी के फैसले की तो बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार में शामिल शिवसेना ने सबसे ज्यादा आलोचना की थी। शिवसेना ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आए दिन हमला करती रही है।
लेकिन महाराष्ट्र ही नहीं नोटबंदी के तुरंत बाद कई राज्यों में स्थानीय चुनाव हुए और बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है। ऐसे में क्या ये माना जा सकता है कि जनता ने मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले पर मुहर लगा दी है।
महाराष्ट्र में स्थानीय चुनाव में बीजेपी ने निकाय चुनावों में 470, शिवसेना 215, एनसीपी 108, कांग्रेस 99, एमएनएस 16 और अन्य 61 सीटों पर जीत हासिल की है।
बीएमसी चुनाव में शिवसेना 84 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। बीजेपी 82 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर है वहीं कांग्रेस 31 सीटों पर सफलता हासिल की है। एनसीपी 9, एमएनएस 7, एमआईएम 3, एबीएस 1 और अन्य 4 सीटें जीती है।
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बीजेपी की जीत पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा, ''यह बीजेपी की अभूतपूर्ण जीत है। ये जनता का आशीर्वाद है।''
विपक्ष के आरोपों के कारण बीजेपी भी आक्रामक मुद्रा में आ गई थी। नोटबंदी को बीजेपी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई करार दिया और चुनावों में विपक्ष के सवालों का जवाब देने की कोशिश की। लेकिन सवाल ये हैं क्या बीजेपी जनता को नोटबंदी के पीछे की मंशा को समझाने में सफल रही?
देखा जाए तो नोटबंदी के बाद कई राज्यों में स्थानीय चुनाव हए हैं। इन सभी जगहों पर बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है।
हाल ही में बात करें तो ओडिशा में हुए स्थानीय चुनाव में बीजेपी ने यहां भी चौंका दिया। कोई खास जनाधार नहीं होने के बाद भी बीजेपी को यहां 270 सीटों का फायदा हुआ है। बीजेपी को यहां 2012 में 36 सीटें मिली थीं जो अब बढ़कर 306 हो गई हैं।
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इसी तरह चंडीगढ़, गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के स्थानीय और पंचायत चुनावों में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा है।
नोटबंदी के बाद 18 दिसंबर को चंडीगढ़ नगर निकाय के चुनाव हुए। यहां भाजपा को जबर्दस्त बहुमत मिला। इस चुनाव में 26 में से 20 सीट भाजपा की झोली में गई जबकि सहयोगी पार्टी शिरोमणी अकाली दल को एक सीट मिला। कांग्रेस पार्टी का तो सूपड़ा ही साफ हो गया। वह मात्र 4 सीट पर सिमट गई।
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ये सब तब हुआ है जब नोटबंदी को लेकर विपक्षी दलों ने सरकार को संसद से लेकर सड़क तक घेरा और लगातार ये कहते रहे कि इससे किसानों और गरीबों को समस्या हुई है।
लेकिन चुनावों में बीएमसी, चंडीगढ़ ऐसी जगहें हैं जो शहरी इलाके में हैं औऱ नोटबंदी का असर यहां काफी था। ये वही लोग हैं जो वोट डालने जाते हैं। इन्हीं मध्यम और गरीब लोगों की बात विपक्षी दल कर रहे थे वो बातें अब बेमानी लगते नज़र आ रहे हैं।
स्थानीय चुनाव ही नहीं बल्कि उप चुनावो में भी पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहा है।
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हालांकि ये स्थानीय चुनाव हैं और इसमें पार्टी के प्रदर्शन पर जनता का मुहर माना जाए या नहीं ये कहना मुश्किल है। क्योंकि अभी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और उनका परिणाम आना बाकी है। खासकर उत्तर प्रदेश के चुनावों परिणामों ही पता चल पाएगा कि जनता ने नोटबंदी के फैसले को कितना पचा पाई है।
Source : Pradeep Tripathi