पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने मंगलवार को राज्य के विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी पर संवैधानिक नियमों की अनदेखी का आरोप लगाया।
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल धनखड़ और विधानसभा अध्यक्ष बनर्जी के बीच चल रहा विवाद मंगलवार को उस समय बेहद निचले स्तर पर पहुंच गया, जब धनखड़ ने बनर्जी पर यह आरोप लगाते हुए कहा कि स्पीकर ने न केवल सभी संवैधानिक मानदंडों और प्रोटोकॉल को तोड़ा है, बल्कि वह ये भी भूल चुके हैं कि क्या बोलना है।
धनखड़ ने कहा, विधानसभा अध्यक्ष सोचते हैं कि उनके पास राज्यपाल के बारे में कुछ भी बोलने का अधिकार है। पश्चिम बंगाल विधानसभा के अध्यक्ष खुद को कानून से ऊपर समझते हैं। मैं इस तरह के अविवेकपूर्ण, असंवैधानिक कार्यों को सहन नहीं करुंगा।
राज्यपाल पिछली दो घटनाओं का जिक्र कर रहे थे, जब विधानसभा में उनके भाषण को ब्लैक आउट कर दिया गया था।
धनखड़ ने गणतंत्र दिवस से पहले विधानसभा परिसर में डॉ. बी. आर. अंबेडकर की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद संवाददाताओं से यह बात कही।
उन्होंने कहा, अध्यक्ष को खुद ही कानून बनने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। वह सोचते हैं कि वह राज्यपाल से ऊपर हैं। क्या वह अनुच्छेद 168 के बारे में जानते हैं। राज्यपाल विधायिका में सबसे ऊपर है, विधानसभा में दूसरे स्थान पर। मैं इस तरह के अविवेकपूर्ण, असंवैधानिक कार्यों को सहन नहीं करुंगा। विधानसभा अध्यक्ष अब से राज्यपाल के अभिभाषण के प्रसारण को नहीं रोकेंगे। अगर वह ऐसा करते हैं तो उन्हें कानून का सामना करना पड़ेगा।
विधानसभा में राज्यपाल के व्यवहार पर हैरान और निराश बनर्जी ने मीडिया से कहा, राज्यपाल ने कहा कि वह पुष्पांजलि देंगे। लेकिन उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। मैं स्तब्ध हूं कि राज्यपाल ने ऐसे महत्वपूर्ण बयान दिए। मुझे लगता है कि यह बेहद अशोभनीय है। यह किसी भी तरह के प्रोटोकॉल और मयार्दा से परे है।
पश्चिम बंगाल में राज भवन और सरकार के बीच फिर से टकराव की स्थिति बन गई है। राज्यपाल धनखड़ ने विधानसभा अध्यक्ष को कड़ी फटकार लगाई है, मगर विधानसभा अध्यक्ष उनके आरोपों को दरनिकार कर रहे हैं।
राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के उन आरोपों को खारिज किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि राजभवन ने कुछ बिलों को अटकाए रखा है।
दिलचस्प बात यह है कि सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने कई बार दावा किया है कि राज्य के विकास में देरी हुई है क्योंकि राज्यपाल ने कई फाइलों पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है, धनखड़ ने खुले तौर पर कहा कि राजभवन के पास कोई फाइल लंबित नहीं है।
राज्यपाल ने कहा, मेरे पास कोई फाइल लंबित नहीं है। मैंने सवाल उठाए हैं (और राज्य सरकार को फाइलें वापस भेज दी हैं)। सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है। जब तक वे मेरे सवालों का जवाब नहीं देते, उनके लिए कठिन समय होगा। अपनी शक्तियों को लागू करने से पहले, मैं हर उत्तर पहले से ही चाहता हूं।
धनखड़ ने सत्ताधारी दल और उसकी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी नहीं बख्शा।
बनर्जी और नौकरशाही पर निशाना साधते हुए राज्यपाल ने कहा, पिछले दो वर्षों से मुख्यमंत्री ने मांगी गई किसी भी जानकारी का जवाब नहीं दिया है। नौकरशाही को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। नौकरशाही राजनीतिक रूप से प्रतिबद्ध है। क्या उन्हें किसी व्यक्ति के फरमान का पालन करना चाहिए?
राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर बोलते हुए, राज्यपाल ने कहा, मतदाताओं को स्वतंत्र रूप से और निडर होकर मताधिकार का प्रयोग करने का अधिकार होना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से पश्चिम बंगाल में ऐसा नहीं है। यहां लोगों को अपने मताधिकार का प्रयोग करने की स्वतंत्रता नहीं है।
धनखड़ ने आरोप लगाया, हमने चुनाव के बाद अभूतपूर्व स्तर की हिंसा देखी है और जिन्होंने अपनी मर्जी से वोट देने की हिम्मत की, उन्हें इसकी कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।
यह कहते हुए कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त एक तथ्य-खोज समिति ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश का पालन करते हुए देखा है कि राज्य में शासक का शासन है, न कि कानून का।
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Source : IANS