सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तमिलनाडु के विभिन्न स्थानों पर होने वाले पारंपरिक खेल जल्लीकट्टू, कंबाला और मांजाविरट्टू से जुड़े मामलों पर सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ को सौंप दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं में मवेशियों पर आधारित इन पारंपरिक खेलों को अनुमति देने वाली तमिलनाडु और महाराष्ट्र सरकार के क़ानूनों को चुनौती दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब संवैधानिक पीठ तय करेगी कि इन तीनों खेलों को 'कल्चरल राइट्स' के तहत जारी रखने दिया जा सकता है या नहीं।
दोनो राज्यो ने केंद्र के पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम कानून 1960 में संशोधन कर जल्लीकट्टू, कंबाला और मांजाविरट्टू को अनुमति दी थी। जिसके बाद इन कानूनों की वैधानिकता को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई है।
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अब संविधान बेंच को विचार करना है कि क्या राज्य इस तरह के कानून बना सकते है और क्या यह परम्परा संविधान में सांस्कृतिक अधिकारों के दायरे में आते है।
आपको बता दें कि फसल कटाई के मौके पर तमिलनाडु में चार दिन का पोंगल उत्सव मनाया जाता है जिसमें तीसरा दिन मवेशियों के लिए होता है।
जल्लीकट्टू को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह खेल की परंपरा 2500 साल पुरानी है।
पोंगल उत्सव के दौरान होने वाले इस खेल में परंपरा के अनुसार शुरुआत में तीन बैलों को भड़काकर छोड़ा जाता है। इससे पहले उनकी सींगों पर सिक्कों की थैली बांधी जाती है।
इस खेल में बैलों पर काबू पाने वाले लोगों को इनाम भी दिया जाता है। इस खेल के लिए बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है।
हालांकि इस खेल को जानवरों के साथ ज्यादती मानते हुए इसके खिलाफ कई याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लगाई गई हैं।
यह खेल सांस्कृतिक अधिकार है या नहीं इस पर अब सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच सुनवाई करेगी।
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Source : News Nation Bureau