Exclusive: को-एजुकेशन पर जमीयत उलेमा के बिगड़े बोल- अब बोली यह बात

जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेयूएच) के अध्यक्ष अरशद मदनी ने सभी गैर-मुसलमानों से अपनी बेटियों को अश्लीलता से बचाने के लिए सह-शिक्षा स्कूलों में नहीं भेजने की अपील की है. उन्होंने लड़कियों को उनके लिए बने अलग स्कूलों में ही भेजने पर जोर दिया

author-image
Mohit Sharma
एडिट
New Update
Jamiyat

Jamiat Ulama ( Photo Credit : Jamiat Ulama )

Advertisment

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां भारी अराजकता का माहौल है. तालिबान ने सत्ता में आते शरिया कानून चलाना शुरू कर दिया है. रोजाना नए-नए फरमान जारी किए जा रहे हैं. महिलाओं पर तमाम तरह की बंदिशें लगाई जा रही हैं. गीत संगीत और महिलाओं की आवाज वाले प्रसारण बंद कर दिए गए हैं. मीडिया में महिलाओं की एंट्री बंद कर दी गई है. यहां तक को-एजुकेशन पर भी पांबदी लगा दी गई है. इसका असर भारत में भी तालिबानी सोच रखने वाले कुछ  लोगों पर दिखाई देने लगा है. यही वजह है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद (जेयूएच) के अध्यक्ष अरशद मदनी ने सभी गैर-मुसलमानों से अपनी बेटियों को अश्लीलता से बचाने के लिए सह-शिक्षा स्कूलों में नहीं भेजने की अपील की है. उन्होंने लड़कियों को उनके लिए बने अलग स्कूलों में ही भेजने पर जोर दिया.

यह भी पढ़ें: टोक्यो पैरालंपिक में भारत को मिले एक साथ दो पदक, शरद ने जीता कांस्य, मरियप्पन को मिला रजत

इस बीच जमीयत उलेमा के महासचिव, गुलजार आजमी ने को-एजुकेशन को लेकर विवादित बयान दिया है. न्यूज नेशन के सबसे लोकप्रिय प्रोग्राम देश की बहस में एक सवाल के जवाब में गुलजार आजमी ने कहा कि वह भारत के संविधान से ज्यादा इस्लाम को मानते हैं. गुलजार आजमी यहीं नहीं रुके, उन्होंने को-एजुकेशन को लेकर कहा कि हमारा मतलब है कि जो आज बदमाशी हो रही है, इसलिए लड़के-लड़की अलग-अलग पढ़ें क्योंकि जो चीज जितनी कीमती होती है उसकी उतनी हिफाजत की जाती है. उन्होंने कहा कि हम तालिबान को नहीं जानते हैं,हम तो इस्लाम को जानते हैं और हम जो भी बात करते हैं वो संविधान के तहत करते हैं. गुलजार आजमी ने अपनी बात को बल देते हुए कहा कि हमने संविधान के तहत बात की है.उन्होंने कहा कि हम इस्लाम को मानते हैं, इस्लाम जो कहेगा उसे हम मानेंगे.

यह भी पढ़ें: टोक्यो पैरालिंपिक: सुमित अंतिल ने वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ जीता गोल्ड मेडल

जमीयत उलेमा के महासचिव ने कहा कि हम तालिबान को नहीं, इस्लाम को जानते हैं. बराबरी पर हमने सवाल नहीं उठाया है. हमारे लिए सबसे ऊपर इस्लाम है. उन्होंने कहा कि आर्टिकल 25 और 30 के तहत मुसलमान अपने कुरान को माने और उसके अनुसार चले. कुरान कहता है कि एक मर्द के मुकाबले दो औरत होती हैं. उन्होंने यह भी कहा कि जिसका मन चाहे वह इस्लाम पर अमल करे. जो इस्लाम को ना माने, मुसलमान नहीं. आपको बता दें कि जेयूएच की कार्यसमिति की बैठक के बाद सोमवार को जारी एक प्रेस बयान में मदनी ने कहा, "अनैतिकता और अश्लीलता किसी धर्म की शिक्षा नहीं है. दुनिया के हर धर्म में इसकी निंदा की गई है, क्योंकि यही चीजें हैं जो देश में दुर्व्यवहार फैलाती हैं. इसलिए, हम अपने गैर-मुस्लिम भाइयों से भी कहेंगे कि वे अपनी बेटियों को अनैतिकता और दुर्व्यवहार से दूर रखने के लिए सह-शिक्षा देने से परहेज करें और उनके लिए अलग शिक्षण संस्थान स्थापित करें."

Jamiat Ulama Gulzar Azmi co-education
Advertisment
Advertisment
Advertisment