केंद्र सरकार के तीन नए कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान के बाद माना जा रहा था कि किसानों का मुद्दा पूरी तरफ सुलझा लिया गया है लेकिन फिलहाल बीजेपी की परेशानी कम होती नहीं दिख रही है. पीएम नरेन्द्र मोदी के ऐलान के बाद भी प्रदर्शनकारी किसानों ने घर लौटने से इनकार कर दिया है तो वहीं यूपी में जाट आरक्षण की मांग एक बार फिर तेज हो गई है. अगर चुनाव से पहले यह मामला तूल पकड़ता है तो फिर जाट बिरादरी का समर्थन हासिल करना बीजेपी के लिए मुश्किल भरा हो सकता है. मामला मंगलवार को उस समय और बढ़ गया जब अखिल भारतीय जाट आरक्षण संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष यशपाल मलिक ने मंगलवार को कहा है कि जाट आरक्षण की लड़ाई सड़कों पर नहीं वोट से होगी.
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जाट आरक्षण का पुराना है मुद्दा
ऐसा नहीं है कि जाट आरक्षण को लेकर पहली बार चुनावी मुद्दा बनाया जा रहा है. यशपाल मलिक ने कहा कि मोदी सरकार ने 2015-2017 में आरक्षण का वादा किया था. इस वादे को निभाना पड़ेगा. उन्होंने कहा कि अब जाट समाज अब आरक्षण के लिए राजनीतिक संघर्ष के लिए तैयार हो गया है. यह मुद्दा किसान आंदोलन से भी बड़ा है. 2017 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह के आवास पर आरक्षण का भरोसा दिलाया गया था. मलिक ने कहा कि पिछले लोकसभा चुनाव से पहले भी जाट समुदाय से कई वादे किए गए थे. उन्होंने कहा कि इस अभियान को अब तेज किया जाएगा. अलग अलग जिलों और मंडल में समिति की बैठक आयोजिक की जाएगी. 1 दिसंबर को जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जयंती पर अभियान भी चलाया जाएगा.
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7 मंडल की 124 सीटों पर पड़ता है असर
जाट समुदाय का असर उत्तर प्रदेश के सात मंडलों की 124 सीटों पर पड़ता है. कई सीटों पर जाट समुदाय निर्णायक भूमिका में रहते हैं. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अगर मामला तूल पकड़ता है तो यह बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी कर सकता है. हालांकि पीएम मोदी ने प्रकाश पर्व के मौके पर तीन कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान से बड़ा राजनीतिक उलफेर किया है लेकिन अभी उसकी राह आसान नजर नहीं आ रही है.
HIGHLIGHTS
- अगले साल यूपी में होने हैं विधानसभा चुनाव
- 124 सीटों पर जाट समुदाय का खासा प्रभाव
- जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह की जयंती पर चलेगा अभियान
Source : News Nation Bureau