अगर विरोध-प्रदर्शन जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की पहचान है तो विश्वविद्यालय के साथ हिंसा का आंतरिक संबंध भी है. हालांकि अनेक लोगों को मानना है कि सीएए (नागरिकता संशोधन कानून) पर सरकार के कड़े रुख के कारण अचानक पैदा हुआ यह भावना का ज्वार है जो विचलित होकर उपद्रव करने पर उतारू हो गया है. हालांकि अतीत में जेएनयू में इससे भी ज्यादा हिंसा हुई थी, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को इसे 46 दिनों के लिए बंद करने पर बाध्य होना पड़ा.
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1980 में हुआ था बड़ा बवाल
घटनाओं का इतिहास बताता है कि अगर पेरियार होस्टल के भीतर 2019 में हुई हिंसा खौफनाक थी, तो 1980 जैसा बवाल पहले कभी नहीं देखा गया था. इसकी स्थापना के 12 साल बाद गांधी को इसे 16 नवंबर 1980 से लेकर तीन जनवरी 1981 तक बंद करना पड़ा था. हालात पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए जेएनयू स्टूडेंट यूनियन (जेएनयूएसयू) प्रेसीडेंट राजन जी. जेम्स को हिरासत में लेना पड़ा था. राजीव गांधी के जीवनी लेखक मिन्हाज मर्चेट कहते हैं, 'जेएनयू का वामपंथ द्वारा उकसाई हिंसा का लंबा इतिहास है. इसे नवंबर 1980 से लेकर जनवरी 1981 के दौरान भी छात्रों की हिंसा के कारण बंद कर दिया गया था.'
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हालांकि तस्वीर का दूसरा पहलू भी
दूसरी तरफ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) पोलित ब्यूरो नेता सलीम का मानना है कि 46 दिनों की वह बंदी 2020 के मुकाबले कम खतरनाक था. इस पर सवाल किए जाने पर सलीम ने बताया, 'किसी ने सीताराम येचूरी को उस तरह नहीं पीटा था जिस तरह आईशी घोष की पिटाई की गई है. इंदिरा गांधी ने उस समय दिल्ली पुलिस का उपयोग नहीं किया था, जिस प्रकार आज मौजूदा सरकार कर रही है.' हालांकि वामदल नेता मौजूदा राजनीतिक बाध्यता से प्रेरित हैं क्योंकि 1980 में न सिर्फ तत्कालीन जेएनयू प्रेसीडेंट को पुलिस ने हिरासत में लिया बल्कि व्यापक पैमाने पर शिकंजा कसा गया था.
HIGHLIGHTS
- हिंसा के कारण इंदिरा गांधी को 46 दिन बंद रखना पड़ा था जेएनयू.
- जेएनयू का वामपंथ द्वारा उकसाई हिंसा का लंबा इतिहास है.
- हालांकि अन्य वामपंथी नेता मानते हैं कि आज स्थिति खतरनाक.
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