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Joshimath 12 दिन में 5.4 सेंटीमीटर धंसा, इसरो ने जारी की सैटेलाइट तस्वीरें

दिसंबर 2020 और जनवरी 2023 के बीच 12 दिनों में जोशीमठ 5.4 सेमी धंस चुका है. गत वर्ष अप्रैल और नवंबर के बीच सात महीनों में भू-धंसाव महज 9 सेमी दर्ज किया गया था. इसका अर्थ यह निकलता है कि जोशीमठ पहले की तुलना में कहीं तेजी से धंस रहा है.

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Nihar Saxena
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Joshimath

इसरो की सैटेलाइट इमेजेज से जोशीमठ का संकट साफ दिख रहा.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने जोशीमठ (Joshimath) शहर की सैटेलाइट तस्वीरें जारी की हैं. जोशीमठ धीरे-धीरे भूमि धंसने के कारण डूब रहा है और पता चला है कि 27 दिसंबर 2022 और 8 जनवरी 2023 के बीच 12 दिनों में 5.4 सेमी का तेजी से भू-धंसाव दर्ज किया गया है.  गत साल अप्रैल और नवंबर के बीच जोशीमठ में 9 सेमी की धीमी धंसावट आंकी गई थी. एनएसआरसी ने कहा कि पिछले सप्ताह दिसंबर और जनवरी के पहले सप्ताह के बीच तेजी से धंसने की घटना शुरू हुई थी. सैटेलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि आर्मी हेलीपैड और नरसिंह मंदिर सहित सेंट्रल जोशीमठ में सबसिडेंस जोन स्थित हैं. भू-धंसाव का केंद्र जोशीमठ-औली रोड के पास 2,180 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.

कई अन्य पहाड़ी शहरों पर भी जोशीमठ सरीखा संकट तारी
जोशीमठ का संकट पहाड़ों के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ लापरवाही भरे मानवीय हस्तक्षेप की कहानी है, जिसने पूरा संतुलन बिगाड़ दिया है. सामरिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व की जोशीमठ की भूमि को अब केवल इतिहास में ही याद किया जाएगा, क्योंकि इसका भू-धंसाव से अस्तित्व खतरे में आ चुका है. विशेषज्ञों का मानना ​​है कि पूरे शहर के लिए खतरा किसी अचानक प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं है, बल्कि शहरीकरण की वजह से लंबे समय से ऐसी स्थिति तैयार हो रही थी. सिर्फ जोशीमठ ही नहीं आने वाले दिनों में नैनीताल, मसूरी, शिमला और धर्मशाला जैसे पहाड़ी शहरों पर भी ऐसा ही खतरा मंडराएगा. 

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भूकंप के लिहाज से टेक्टोनिक फॉल्ट लाइन पर स्थित है जोशीमठ
बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले पर्यटकों के लिए प्रवेश द्वार का महत्व रखने वाला जोशीमठ हिमालय के गढ़वाल क्षेत्र में समुद्र तल से 1,890 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है, जिसकी आबादी 20,000 से अधिक है. भू-धंसाव की घटना के बाद अधिकारियों ने कम से कम 600 निवासियों को अपने घर खाली करने के लिए कहा है. जोशीमठ चमोली जिले के ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग  पर स्थित है जो भूकंपीय क्षेत्र मानचित्र के जोन 5 में आता है. भूगर्भ विज्ञानियों के अनुसार जोशीमठ टेक्टोनिक फॉल्ट लाइन पर स्थित है. जोशीमठ के खतरे को और बढ़ाने का काम कर रही है वैकृत थ्रस्ट के पास स्थित दो अन्य फॉल्टलाइन. इन्हें मेन सेंट्रल थ्रस्ट और विष्णुप्रयाग क्षेत्र के पांडुकेश्वर थ्रस्ट के नाम से जाना जाता है. अपनी टेक्टोनिक गतिविधियों के कारण ये फॉल्ट लाइन जोशीमठ के डूबने के जोखिम को और बढ़ा रही हैं.

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2021 में मिला जोशीमठ के डूबने का पहला संकेत 
घरों में दिखाई देने वाली दरारें पहली बार 2021 में राष्ट्रीय सुर्खियां तब बनी जब चमोली में आए विनाशकारी भूस्खलन की प्रतिक्रियास्वरूप कई और भूस्खलन हुए. यहां रह रहे लोगों ने अपने घरों को सहारा देने के लिए उनके नीचे लकड़ी के खंभों को लगाना शुरू कर दिया. इसके अगले साल भी अक्सर भूकंप के झटके महसूस किए गए. 2022 में भी उत्तराखंड सरकार ने एक विशेषज्ञ दल का गठन किया था. इस दल ने पाया कि मानव निर्मित और प्राकृतिक कारकों से जोशीमठ के कई इलाके डूब रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार पैनल ने पाया कि सतही भू-धसांव की वजह उसके नीचे की सतह या मिट्टी के हटने से हो रहा है. इसकी वजह से जोशीमठ के लगभग सभी वार्डों की इमारतों में ढांचागत दोष और नुकसान हुआ है. 

50 साल पहले जारी हुई थी जोशीमठ के डूबने की चेतावनी
एक अंग्रेजी अखबार ने पिछले साल 1976 की मिश्रा समिति की रिपोर्ट के आधार पर खुलासा किया था कि लगभग 50 साल पहले ही ऐसी घटना की चेतावनी दे दी गई थी. इसमें कहा गया था कि सड़कों की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्यों के क्रम में यह सलाह दी जाती है कि पहाड़ी के पास पत्थरों को खोदकर या विस्फोट कर न हटाया जाए. इसके साथ ही पेड़ों को बच्चों की तरह पाला जाए. रिपोर्ट के अनुसार कभी मिश्रा पैनल के सदस्यों को उनकी पूर्व चेतावनी के लिए फटकार लगाने वाले कस्बे के पुराने लोग ही अब उलाहना दे रहे हैं कि बाद की सरकारें मिश्रा पैनल के निष्कर्षों पर ध्यान देने में विफल रहीं. 

HIGHLIGHTS

  • गत वर्ष अप्रैल और नवंबर के बीच सात महीनों में भू-धंसाव महज 9 सेमी दर्ज किया गया था
  • आने वाले दिनों में नैनीताल, मसूरी, शिमला और धर्मशाला जैसे शहरों पर भी ऐसा ही खतरा
  • मिश्रा समिति ने 1976 में ही जारी कर दी थी जोशीमठ के धंसने और बर्बाद होने की चेतावनी
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