बेंगलुरू में गौरी लंकेश की हत्या के 15 दिन के बाद ही त्रिपुरा में एक टीवी के पत्रकार शांतनु भौमिक की हत्या कर दी गई। इस हत्या में आईपीएफटी का हाथ माना जा रहा है। आईपीएफटी और सीपीएम के आदिवासी विंग त्रिपुरा राजेर उपजाति गनमुक्ति परिषद (टीआरयूजीपी) के बीच अक्सर टकराव हो जाता है।
बुधवार को इन दोनों संगठनों के बीच हिंसक प्रदर्श हो रहा था और उसी दौरान भौमिक को अगवा कर लिया गया और हत्या कर दी गई। वो दिनरात टीवी न्यूज़ के लिये काम कर रहे थे।
आइये जानते हैं इस संगठन के बारे में:
- इंडीजिनस पीपल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (आईपीएफटी) ने एक आदिवासी पार्टी के तौर पर काम करना शुरू किया। साथ ही ये नॉर्थ-ईस्ट रीजनल फ्रंट का सदस्य भी रहा।
- ये पार्टी 1997 से 2001 तक रही लेकिन बाद में इंडीजिनस नेशनलिस्ट पार्टी (आईएनपीटी) में इसका विलय हो गया। 2000 में ये राजनीति में आ गई और त्रिपुरा ट्राइबल एरियाज़ ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनाव में 28 में से 17 सीटों पर जीत दर्ज की।
- 2000 के चुनावों में त्रिपुरा नेशनल वॉलंटियर्स (टीएनवी) ने आईपीएफटी को समर्थन दिया। इसने 2009 के लोकसभा चुनावों में हिस्सा भी लिया।
- राज्य विधानसभा के 2013 के चुनावों में इसे बहुमत नहीं मिला। दिसंबर 2016 में इसके दो बड़े नेताओं डेविड मुरासिंग और पबित्रा जमातिया बीजेपी में शामिल हो गए।
- आईपीएफटी आदिवासियों के लिये अलग राज्य त्रिपुरालैंड की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन भी करती है।
- इस समय आईपीएफटी एनडीए का समर्थन कर रही है। इसके अध्यक्ष एनसी देबबर्मा हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से भी अलग राज्य को लेकर मुलाकात भी की थी।
Source : News Nation Bureau