भारत रत्न, सरस्वती पुत्र और देश की राजनीति के युगवाहक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संपूर्ण जीवन राष्ट्रसेवा और जनसेवा को समर्पित रहा। वे सच्चे अर्थों में नवीन भारत के सारथी और सूत्रधार थे। वे एक ऐसे युग मनीषी थे, जिनके हाथों में काल के कपाल पर लिखने व मिटाने का अमरत्व था।
अटल बिहारी जनसंघ के संस्थापक सदस्य थे
ओजस्वी वक्ता विराट व्यक्तित्व और बहुआयामी प्रतिभा के धनी वाजपेयी की जीवन यात्रा आजाद भारत के अभ्युदय के साथ शुरू होती है और विश्व पटल पर भारत को विश्वगुरु के पद पर पुन: प्रतिष्ठित करने की आकांक्षा के साथ कई पड़ावों को जीते हुए आगे बढ़ती है। वे भारतीय जनसंघ (RSS) के संस्थापक सदस्य थे। वे 1968 से 1973 तक भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे।
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वाजपेयी 10 बार सांसद रहे
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने अटल बिहारी वाजपेयी में भारत का भविष्य देखा था। वाजपेयी 10 बार लोकसभा सांसद रहे। वहीं वे दो बार 1962 और 1986 में राज्यसभा सांसद भी रहे। वाजपेयी जी देश के एक मात्र सांसद थे, जिन्होंने देश की छह अलग-अलग सीटों से चुनाव जीता था। साल 1957 से 1977 तक वे लगातार 20 सालों तक जन संघ के संसदीय दल के नेता रहे। आपातकाल के बाद देश की जनता द्वारा चुने गए मोरार जी देसाई जी की सरकार में वे विदेश मंत्री बने और विश्व में भारत की एक अलग छवि का निर्माण किया।
विश्व में अटल जी ने मातृभाषा को पहचान दिलाई
इस दौरान संयुक्त राष्ट्र संघ में पहली बार हिंदी में ओजस्वी उद्बोधन देकर वाजपेयी ने विश्व में मातृभाषा को पहचान दिलाई और भारत की एक अलग छाप छोड़ी। आपातकाल के दौरान उन्हें भी लोकतंत्र की हत्यारी सरकार की प्रताड़ना झेलनी पड़ी। उन्हें जेल में डाल दिया गया लेकिन उन्होंने जेल से ही कलम के सहारे अनुशासन के नाम पर अनुशासन का खून लिख कर राष्ट्र को एकजुट रखने की कवायद जारी रखी।
बीजेपी के बनने के बाद पहले अध्यक्ष बने थे अटल जी
सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए विचारधारा की राजनीति करने वाले वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी की स्थापना के बाद पहले अध्यक्ष बने। उन्होंने तीन बार 1996, 1998-99 और 1999-2004 में प्रधानमंत्री के रूप में देश का प्रतिनिधित्व किया। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर देश को नई ऊंचाइयों पर प्रतिष्ठित करने वाले वाजपेयी के कार्यकाल में देश ने प्रगति के अनेक आयाम छुए।
पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए
अजातशत्रु अटल बिहारी वाजपेयी ने पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे को आगे बढ़ाते हुए 'जय जवान-जय किसान- जय विज्ञान' का नारा दिया। देश की सामरिक सुरक्षा पर उन्हें समझौता बिलकुल भी गंवारा नहीं था। वैश्विक चुनौतियों के बावजूद उन्होंने 1998 में पोखरण में पांच भूमिगत परमाणु परीक्षण किए। इस परीक्षण के बाद कई अंतरराष्ट्रीय शक्तियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद वाजपेयी की दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति ने इन परिस्थितियों में भी उन्हें अटल स्तंभ के रूप में अडिग रखा। कारगिल युद्ध की भयावहता का उन्होंने डट कर मुकाबला किया और पाकिस्तान को राजनीतिक, कूटनीतिक, रणनीतिक और सामरिक सभी स्तरों पर धूल चटाई।
वाजपेयी सरकार की विदेश नीति विश्व में भारत को प्रतिष्ठित किया
वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में देश में विकास के स्वर्णिम अध्याय की शुरूआत हुई। वे देश के चारों कोनों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज जैसी अविस्मरणीय योजना के शिल्पी थे। नदियों के एकीकरण जैसे कालजयी स्वप्न के दृष्टा थे। मानव के रूप में वे महामानव थे। सर्व शिक्षा अभियान, संरचनात्मक ढांचे के सुधार की योजना, सॉफ्टवेयर विकास के लिए सूचना एवं प्रौद्योगिकी कार्यदल का निर्माण और विद्युतीकरण में गति लाने के लिए केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग आदि योजनाओं की शुरुआत कर देश को प्रगति के पथ पर अग्रसर करने में उनकी भूमिका काफी अनुकरणीय रही। वाजपेयी सरकार की विदेश नीति ने दुनिया में भारत को एक नेतृत्वकर्ता के रूप में प्रतिष्ठित रहा।
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वाजपेयी को कई पुरस्कारों से नवाजा गया
अपनी ओजस्वी भाषण शैली, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात वाजपेयी को कई पुरस्कारों से नवाजा गया। उन्हें 1992 में पद्म विभूषण 1994 में लोकमान्य तिलक पुरस्कार, 1994 में ही श्रेष्ठ सांसद पुरस्कार, भारत रत्न पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार और 2015 में उन्हें बांग्लादेश के सर्वोच्च अवार्ड फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश लिबरेशन वार अवॉर्ड से उन्हें सम्मानित किया गया। देश के विकास में अमूल्य योगदान देने एवं अंतर्राष्ट्रीय फलक पर देश को सम्मान दिलाने के लिए वाजपेयी को 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से अलंकृत किया गया।
Source : IANS