AYODHYAVERDICT : देश के सबसे पुराने मामले अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट (Ayodhya case) अब से कुछ ही देर में फैसला सुनाएगा. पांच जजों की संवैधानिक पीठ फैसला पढ़ेगी. जजों की पीठ सुबह 10.30 बजे कोर्ट में बैठेगी और इसके बाद कुछ ही देर बाद निर्णय आ जाएगा. 40 दिन तक चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले को सुना और अब यही पीठ ऐतिहासिक फैसला सुनाने के करीब है.
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इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के 5 सदस्यीय बेंच ने अयोध्या विवाद का हल आपसी पक्षों की मध्यस्थता के जरिए निकालने के लिए भी का था. तब यही सवाल उठा था कि क्या इस विवाद का हल मध्यस्थों के जरिए निकल पाना संभव होगा. हम आपको बता दें कि इससे पहले भी इस मामले में समझौते की कोशिश हुई थी, लेकिन तब भी हल नहीं निकल पाया था. आइए हम आपके बताते हैं कि अयोध्या मामले का हल निकालने के लिए कब कब समझौते की कोशिश हुई थी.
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राम मंदिर निर्माण पर विवाद देश की आजादी से भी पहले का चला आ रहा है. जंग ए आजादी के भी पहले से यानी साल 1853 में पहली बार राम मंदिर निर्माण को लेकर दो पक्षों के बीच हिंसा हुई. इसके बाद ही अंग्रेजों ने इसका हल निकालना चाहा. इसकी कोशिश कई साल तक चली, आखिर में 1859 में हिंदू और मुसलमान में एक सहमति बनी. रिपोर्ट के मुताबिक इसका कोई दस्तावेज तो मिलता है, लेकिन बताया जाता है कि विवादित परिसर के एक हिस्से में राम मंदिर और दूसरे में मस्जिद की बात तय हो गई थी. लेकिन तभी अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हो गई. देश की आजादी के लिए शुरू हुए इस आंदोलन के बाद अंग्रेज नहीं चाहते थे कि इस मामले का अंत हो और हिंदू मुसलमान एक हो पाएं. इसके बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया. बाद में इस मामले को भुलाकर हिंदू और मुसलमान दोनों ने देश की आजादी के लिए मिलकर काम करना शुरू कर दिया.
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जब साल 1947 में देश को अंग्रेजों से आजादी मिली तो उसके बाद 1987 में फिर अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश की गई. तब फॉर्मूले के अनुसार हिन्दुओं की ओर से समिति में पांच नाम रखे जाने थे और मुस्लिम समुदाय की ओर से भी पांच स्थानीय लोगों का नाम तय होना था. लेकिन मुस्लिम समुदाय सिर्फ स्थानीय लोगों को समिति में रखना चाहता था. इसके लिए विश्व हिन्दू परिषद के लोग तैयार नहीं हुए और मामला अटक गया.
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इसके करीब दो साल बाद साल 1989 में फिर कवायद शुरू हुई. केंद्र में वीपी सिंह की सरकार हुआ करती थी. प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस सरकार की पहल को आगे बढ़ाते हुए इसे सुलझाने की कोशिश की. लेकिन सरकार में शामिल भारतीय जनता पार्टी इसके लिए तैयार नहीं थी. लालकृष्ण आडवाणी राम मंदिर निर्माण के लिए रथ यात्रा पर निकल पड़े और फिर उनकी गिरफ्तारी हुई और वीपी सिंह की सरकार को जाना पड़ा.
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तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने भी राम मंदिर निर्माण पर समझौते की कोशिश की थी. कई साल बाद एनसीपी के वरिष्ठ नेता शरद पवार की आत्मकथा सामने आई, इसमें पता चलता है कि शरद पवार और भाजपा के वरिष्ठ नेता भैरो सिंह शेखावत ने समझौते की कोशिश की थी. हालांकि चन्द्रशेखर को इतना समय नहीं मिला कि कवायद को अंजाम तक पहुंचाया जा सके. चंद्रशेखर भी चाहते थे कि वे अपने कार्यकाल में ही इस मामले को सुलझा दें, लेकिन उससे पहले ही उन्हें जाना पड़ा. इसके बाद केंद्र में पहली बार भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी का गठन हुआ. इस सरकार में भी मामले को लेकर कई बार कोशिश की गई. अटल विहारी वाजपेयी के कार्यकाल में हल निकालने के लिए कई बैठकें हुईं लेकिन मामला जहां था, वहीं पड़ा रहा.
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इसके कई साल बाद ही ही में आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने भी समझौते की कोशिश की, लेकिन वे भी इसको हल निकालने में पूरी तरह नाकाम ही रहे. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में समझौते की कोशिश की गई. अयोध्या भूमि विवाद का हल निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का रास्ता अपनाने का फैसला किया था. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था कि मामले का हल मध्यस्थता के जरिए निकाला जाना चाहिए. अब आखिरकार इतने लंबे इंतजार के बाद सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने वाला है. अब से कुछ ही देर बाद कोर्ट अपना निर्णय सुनाएगी.
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अयोध्या पर न्यूज स्टेट की अपील
अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाने वाला है, एक जिम्मेदार वेबसाइट होने के नाते हमारी आपसे अपील है कि अयोध्या पर किसी भी तरह की अफवाहों से आप बचें और दूसरों को भी बचाएं. न्यायपालिका के फैसले का सम्मान करें, और देश में भाई-चारे के माहौल को और मजबूत करें.
Source : News Nation Bureau