कारगिल युद्ध के प्रारंभ में देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले कैप्टन सौरभ कालिया के माता-पिता आज भी उनके हस्ताक्षर वाला एक ‘चेक’ अपने बेटे की याद में सहेज कर रखे हुए हैं. सौरभ ने कारगिल के लिए रवाना होने के दिन ही इस पर हस्ताक्षर किए थे. दुनिया के लिये नायक रहे और परिवार के लिए ‘शरारती’ कैप्टन सौरभ 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान शुरूआत में शहीद हुए सैनिकों में एक थे. वह भारतीय थल सेना के उन छह कर्मियों में एक थे, जिनका क्षत विक्षत शव पाकिस्तान द्वारा सौंपा गया था. सौरभ के पिता नरेंद्र कुमार और मां विजय कालिया को आज भी वह क्षण अच्छी तरह से याद है, जब 20 साल पहले उन्होंने अपने बड़े बेटे (सौरभ) को आखिरी बार देखा था. वह (सौरभ) 23 साल के भी नहीं हुए थे और अपनी ड्यूटी पर जा रहे थे लेकिन यह नहीं जानते थे कि कहां जाना है.
हिमाचल प्रदेश के पालमपुर स्थित अपने घर से उनकी मां विजय ने फोन पर बताया, ‘वह (सौरभ) रसोई में आया और हस्ताक्षर किया हुआ लेकिन बिना रकम भरे एक चेक मुझे सौंपा और मुझे उसके बैंक खाते से रूपये निकालने को कहा क्योंकि वह फील्ड में जा रहा था.’ सौरभ के हस्ताक्षर वाला यह चेक, उसके द्वारा लिखी हुई आखिरी निशानी है, जिसे कभी भुनाया नहीं गया. उनकी मां ने कहा, ‘...यह चेक मेरे शरारती बेटे की एक प्यारी सी याद है.’ उनके पिता ने कहा, ‘ 30 मई 1999 को उनकी उससे आखिरी बार बात हुई थी, जब उसके छोटे भाई वैभव का जन्मदिन था. उसने 29 जून को पड़ने वाले अपने जन्मदिन पर आने का वादा किया था. लेकिन 23वें जन्मदिन पर आने का अपना वादा वह पूरा नहीं कर सका और देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया.’
विजय ने कहा, ‘वह समय से पहला आ गया था लेकिन तिरंगे में लिपटा हुआ. हजारों लोग शोक में थे और मेरे बेटे के नाम के नारे लगा रहे थे. मैं गौरवान्वित मां थी लेकिन मैंने कुछ बेशकीमती चीज खो दी थी.’ पालमपुर स्थित उनका पूरा कमरा एक संग्रहालय सा दिखता है जो सौरभ को समर्पित है. राष्ट्र के लिए दिए बलिदान को लेकर लेफ्टिनेंट को मरणोपरांत कैप्टन के रूप में पदोन्नति दी गई. उनके पिता ने कहा, ‘भारतीय सैन्य अकादमी में रहने के दौरान वह कहता था कि एक कमरा उसके लिए अलग से रहना चाहिए क्योंकि उसमें उसे अपनी चीजें रखनी हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम उसकी यह मांग पूरी करने वाले ही थे कि वह अपनी पहली तैनाती पर चला गया. और उसके शीघ्र बाद उसके शहीद होने की खबर आई.’ उनकी मां ने सौरभ के जन्म के समय को याद करते हुए कहा, ‘हम उसे शरारती कहा करते थे क्योंकि जब उसका जन्म हुआ था जब उसे मेरी गोद में सौंपने वाले डॉक्टर ने कहा था कि आपका बेटा नटखट है.’ आगे चल कर उनके बेटे की शहादत अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बनी थी. दरअसल, पाकिस्तान के सैनिकों ने उनके साथ बर्बर व्यवहार किया था. सौरभ ‘4- जाट रेजीमेंट’ से थे. वह पांच सैनिकों के साथ जून 1999 के प्रथम सप्ताह में कारगिल के कोकसर में एक टोही मिशन पर गए थे. लेकिन यह टीम लापता हो गई और उनकी गुमशुदगी की पहली खबर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में अस्कार्दू रेडियो पर प्रसारित हुई.
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सौरभ और उसकी टीम (सिपाही अर्जुन राम, बंवर लाल, भीखाराम, मूला राम और नरेश सिंह) के लोगों के क्षत विक्षत शव नौ जून को भारत को सौंपे गए थे. इसके अगले ही दिन पीटीआई ने पाकिस्तान के बर्बरता की खबर चलाई. शवों में शरीर के महत्वपूर्ण अंग नहीं थे, उनकी आंखें फोड़ दी गई थी और उनके नाक, कान तथा जननांग काट दिये गए थे. दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष के इतिहास में इतनी बर्बरता कभी नहीं देखी गई थी. भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय समझौते का उल्लंघन करार देते हुए अपनी नाराजगी जाहिर की थी. सौरभ के पिता ने रूंधे गले से कहा, ‘वह एक बहादुर बेटा था. बेशक उसने बड़ी पीड़ा सही होगी.’
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सौरभ के भाई वैभव उस वक्त महज 20 साल के थे जब उन्होंने अपने शहीद भाई को मुखाग्नि दी थी. अब 40 साल के हो चुके और हिप्र कृषि विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक वैभव ने कहा, ‘वह (सौरभ) मां पापा की डांट से मुझे बचाया करता था. हम अपने घर के अंदर क्रिकेट खेला करते थे और कई बार उसने मेरे द्वारा खिड़कियों की कांच तोड़े जाने की जिम्मेदारी अपने सिर ले ली.’ उन्होंने ही अपने भाई की चिता को मुखाग्नि दी थी. वह कहते हैं, ‘मेरा बचपन तो मेरे भाई के साथ ही चला गया.’ दो बच्चों के पिता वैभव ने बताया कि उनके बच्चे अपने अंकल की शौर्य गाथा से काफी प्रेरित हैं. पार्थ (13) वैज्ञानिक बनना चाहता है और थल सेना के लिए कुछ करना चाहता है जबकि व्योमेश (11) सेना में जाने को इच्छुक है.
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HIGHLIGHTS
- 20 साल पहले माता-पिता ने आखिरी बार सौरभ को देखा था
- सौरभ का आखिर चेक आज तक नहीं भुनाया
- सौरभ का क्षत-विक्षत शव पाकिस्तान ने सौंपा था