कर्नाटक की सिद्धारमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने के बाद अब अल्पसंख्यक का दर्जा भी दे दिया है। वहीं सरकार के इस फैसले को चुनावी पैंतरा बताते हुए इसकी काफी आलोचना हो रही है।
लिंगायतों के एक समूह वीरशैव ने कांग्रेस से लिंगायतों और वीरशैव के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश का आरोप लगाते हुए इसे चुनावी पैंतरा बताया।
अखिल भारतीय वीरशैव महासभा की कार्यकारी समिति ने बैठक के बाद मीडिया से बातचीत की।
उन्होंने कहा, 'अगर किसी को इस समुदाय की सच में चिंता हो तो वह कहेगा कि वीरशैव और लिंगायत एक ही हैं। कांग्रेस चुनाव को ध्यान में रखते हुए अलगाववाद की राजनीति कर रही है।'
आपको बता दें कि लिंगायत समुदाय काफी समय से अलग धर्म का दर्जा देने की मांग कर रहे थे।
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दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के इस कदम ने भले ही राजनीतिक विवाद पैदा कर दिया हो लेकिन 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए-II ने लिंगायत को अलग धर्म का दर्जा देने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
वहीं लिंगायत समुदाय को देखते हुए राज्य के कोडवा समुदाय ने अलग धर्म और अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने की मांग को लेकर पीएम को चिट्ठी लिखी है।
समुदाय ने अपनी मांगो को सही ठहराते हुए लिखा, 'हम प्रकृति के पुजारी हैं और हिंदू धर्म के कई रिवाजों का पालन नहीं करते। हमारी किसी भी रस्म में ब्राह्मण पुजारी को शामिल नहीं किया जाता है और हमारे सभी शास्त्र हमारी अपनी भाषा में है। हमारी वेशभूषा भी अलग है और हमारा प्रमुख आहार पोर्क (मांसाहारी) है।'
गौरतलब है कि कर्नाटक में लिंगायत समुदाय बेहद प्रभावशाली माना जाता है और लंबे समय से इनका झुकाव बीजेपी की तरफ रहा है।
ऐसे में राज्य में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए सिद्धरमैया सरकार ने लिंगायत समुदाय को इसके जरिए अपने पाले में करना चाहते हैं ताकि चुनाव में कांग्रेस को इसका फायदा मिल सके।
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Source : News Nation Bureau