जानिए कौन है गोपाल सिंह चावला और क्या था 'खालिस्तान आंदोलन'

पाकिस्तान में रहने वाले गोपाल चावला को उसके खालिस्तान समर्थक गतिविधियों की वजह से जाना जाता है.

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Vineeta Mandal
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जानिए कौन है गोपाल सिंह चावला और क्या था 'खालिस्तान आंदोलन'

नवजोत सिंह सिद्धू और गोपाल सिंह चावला

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करतारपुर कॅारिडोर शिलान्यास समारोह के मौके पर पाकिस्तान शिरकत करने गए पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भारत लौट आए है. लेकिन सिद्धू की पाक यात्रा इस बार भी विवादों में आ गई है. दरअसल पाकिस्तान के तीन दिन के दौरे पर गए सिद्धू की खालिस्तान समर्थक गोपाल सिंह चावला के साथ फोटो वायरल हुई है. जिसके बाद विपक्ष ने उनपर जमकर हमला बोला है. मोदी सरकार के मंत्री हरसिमरत कौर ने नवजोत सिंह सिद्धू पर हमला बोलते हुए कहा कि लोगों को मारने वाले जनरल से सिद्धू गले मिल रहे थे. सिद्धू पाकिस्तान में तीन दिनों तक उनके साथ रहे. यहां तक कि एक आतंकवादी के साथ उनकी तस्वीर भी सामने आई है. सिद्धू वहां जाने के बाद पाकिस्तान के एजेंट बन गए हैं.

वहीं नवजोत सिंह सिद्धू का कहना है कि खालिस्तान समर्थक के साथ अपने फोटो को तवज्जो नहीं दी.

सिद्धू ने कहा,  'वहां 5 से 10 हजार तस्वीरें मेरे साथ ली गई. अब मुझे क्या पता कि मेरे साथ कौन खड़ा है, मैं नहीं जानता की गोपाल चावला कौन है.'

आखिर कौन है गोपाल चावला?

पाकिस्तान में रहने वाले गोपाल चावला को उसके खालिस्तान समर्थक गतिविधियों की वजह से जाना जाता है. चावला का जैश ए मोहम्मद और लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी संगठनों से गहरा नाता है. साथ ही उसे भारत विरोधी रुख के लिए जाना जाता है. इससे पहले आतंकवादी हाफिज सईद के साथ उसकी फोटो सामने आ चुकी है.

और पढ़ें: करतारपुर कॅारिडोर : क्‍या पाक की नापाक हरकत का शिकार हुए नवजोत सिंह सिद्धू?

क्या है 'खालिस्तान' ?

भारत और पाकिस्तान बंटबारे के बाद सिख समुदाय ने भी एक अलग देश खालिस्तान की मांग उठाई थी. पंजाबी भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग की शुरुआत पंजाबी सूबा आंदोलन से हुई थी. कहा जा सकते हैं कि ये पहला मौका था जब पंजाब को भाषा के आधार पर अलग दिखाने की कोशिश हुई थी. अलग देश पंजाब के लिए जबरदस्त प्रदर्शन किया गया और आखिरकार 1966 में उनकी मांग मान ली गई. भाषा के आधार पर पंजाब, हरियाणा और केंद्र शाषित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना की गई है.

खालिस्तान' के तौर पर स्वायत्त राज्य की मांग ने 1980 के दशक में जोर पकड़ा. धीरे-धीरे ये मांग बढ़ने लगी और इसे खालिस्तान आंदोलन का नाम दिया गया. 'दमदमी टकसाल' के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता बढ़ने के साथ ही ये आंदोलन हिंसक होता चला गया. 

जरनैल सिंह भिंडरावाला के बारे में कहा जाता है कि वो सिख धर्म में कट्टरता का समर्थक था. साल 1980-1984 के बीच पंजाब में आतंकी हिंसाओं ने जबरदस्त उछाल ली थी 1983 में डीआईजी अटवाल की स्वर्णमंदिर परिसर में ही हत्या कर दी गई.

इसी साल से भिंडरावाला ने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया. सैकड़ों हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों से वो हमेशा घिरा रहता था, साथ ही हथियारों का जखीरा भी वहां जुटाया जाने लगा. कह सकते हैं कि मंदिर को किले में तब्दील करने की तैयारी शुरू हो गई थी.

इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' को अंजाम दिया. जिसके तहत स्वर्ण मंदिर में पानी और बिजली की सप्लाई काट दी गई. स्वर्ण मंदिर के अंदर 6 जून 1984 को व्यापक अभियान चलाया गया, भारी गोलीबारी के बाद जरनैल सिंह भिंडरवाला का शव बरामद कर लिया गया. सात जून 1984 को स्वर्ण मंदिर पर आर्मी का कंट्रोल हो गया. हालांकि इससे सिख समुदाय में इंदिरा सरकार के खिलाफ जबरदस्त गुस्सा बरसा. महज 4 महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही 2 सिख सुरक्षाकर्मियों ने कर दी. 

23 जून 1985 को एक सिख राष्ट्रवादी ने एयर इंडिया के विमान में विस्फोट किया, जिसमें कई लोगों की मौत हुई थी. दोषी ने इसे भिंडरवाला की मौत का बदला बताया था.

खालिस्तान आंदोलन यहीं खत्म नहीं हुआ, इसके बाद से कई छोटे-बड़े संगठन बने.

Source : News Nation Bureau

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