कश्मीर (Kashmir) घाटी में 32 साल पहले कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म की यादें अभी भी ताजा हैं. ऐसे कश्मीरी पंडित, जिन्होंने घाटी में जातीय सफाई के हिस्से के तौर पर हुए नरसंहार में अपने परिजनों को खोया है, उनके जख्म अभी भी हरे हैं और वह सालों से न्याय के लिए बाट जोह रहे हैं. कश्मीर पंडितों ने नरसंहार की जांच के लिए अगले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का दरवाजा खटखटाने की योजना बनाई है. समुदाय के लिए न्याय की तलाश में विस्थापित पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन रूट्स इन कश्मीर ने मामले की जांच के लिए अगले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट का रुख करने का फैसला किया है.
CJI खेहर ने याचिका पर वितार करने से किया इनकार
तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे. एस. खेहर ने 24 जुलाई, 2017 को कश्मीरी पंडितों की ओर से दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था. उस समय पीठ ने कहा था कि करीब 27 साल बीत गए हैं और हत्या, आगजनी एवं लूटपाट के उन मामलों में सबूत एकत्र करना बहुत मुश्किल होगा, जिनके कारण घाटी से कश्मीरी पंडितों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था.
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फिर दाखिल करेंगे क्यूरेटिव पिटीशन
रूट्स ऑफ कश्मीर के सदस्य अमित रैना ने कहा, 'हम इस उम्मीद के साथ क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल कर रहे हैं कि अदालत इस बार इस बात का मूल्यांकन करेंगी कि उसने 2017 में गलती की थी. इसने सिख दंगा मामला भी खोला, जो कि कश्मीरी पंडित नरसंहार की तुलना में काफी पुराना है.' संगठन ने तर्क दिया है कि 21 अगस्त, 2017 को शीर्ष अदालत ने मामले को फिर से खोलते हुए विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा सिख विरोधी दंगा मामले में बंद किए गए 241 मामलों में आगे की जांच का आदेश दिया था.
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नेताजी बोस की जांच भी अर्से बाद हुई
रैना ने कहा कि शीर्ष अदालत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत की जांच के लिए भी तो मुखर्जी आयोग का गठन किया है, फिर आखिर कश्मीरी पंडितों के नरसंहार में जांच का आदेश क्यों नहीं दिया जा सकता. उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समुदाय के सदस्यों के लिए न्याय की लड़ाई में महत्वपूर्ण कदम होगा, जो अपराधियों को जेल भेजने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं. 19 जनवरी को समुदाय हर साल नरसंहार स्मरण दिवस मनाता है. हर वर्ष 19 जनवरी को कश्मीर पंडित हिंसा, रंगभेद और अन्य तरह के अत्याचारों से पीड़ित अपने प्रियजनों की शहादत और मृतकों को याद करते हैं.
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19 जनवरी 90 में कश्मीर छोड़ने का फरमान
उल्लेखनीय है कि 1989-90 के समय कश्मीर घाटी में कट्टरपंथियों की ओर से कश्मीर पंडितों का नरसंहार हुआ था. खासकर 19 जनवरी 1990 को कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार की हदें ही पार हो गई थीं. बताया जाता है कि इसी तारीख को कश्मीरी पंडितों के घर में फरमान चिपका दिया गया था कि कश्मीर छोड़ दो, वरना मारे जाओगे. इसी तारीख को सबसे ज्यादा लोगों को कश्मीर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. तब से अब तक कश्मीरी पंडित देश के अलग-अलग शहरों में रह रहे हैं और वह इसी उम्मीद में हैं कि वो दिन आएगा, जब दोषियों को सजा मिलेगी और वह अपने गृह नगर कश्मीर घाटी लौट पाएंगे.