गुजरात के सियासी इतिहास की अगर बात की जाए तो इनमें तीन नाम सबसे अहम होंगे. केशुभाई पटेल, शंकर सिंह वाघेला और नरेंद्र मोदी. इन तीनों ने ही गुजरात में बीजेपी को एक मजबूत जगह पहुंचाने का काम किया और तीनों ही गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं. कभी गुजरात की राजनीति और बीजेपी में अहम स्थान पर रहे केशुभाई पटले का आज जन्मदिन है. आज वह 92वें साल के हो गए हैं. जितना संघर्ष उनके निजी जीवन में रहा, उतना ही संघर्ष उन्हें राजनीतिक तौर पर करना पड़ा. वह दो बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए, लेकिन दोनों बार ही तख्तापलट के चलते वह कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए. साल 2001 में उनकी जगह नरेंद्र मोदी ने सीएम पद की शपथ ली. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उनका अपना गुरु मानते हैं. जिन्होंने सीएम बनने के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा था कि 'सूबे की असल कमान केशुभाई के हाथ में ही है. वो ही बीजेपी का रथ हांकने वाले सारथी हैं. मुझे उनकी सहायता के लिए गियर की तरह उनके पास लगा दिया गया है.'
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पढ़ाई से ज्यादा निजी अनुभवों से ली सीख
केशुभाई पटेल का जन्म 24 जुलाई 1928 को जूनागढ़ के विस्वादर तालुके में हुआ. शिक्षा उन्होंने केवल 7वीं कक्षा तक हांसिल की थी. हालांकि जिंदगी से मिले अनुभवों से उन्होंने बहुत कुछ सीखा. वह 1945 में आरएसएस से जुड़े और उसके प्रचारक बन गए.
1960 में जनसंघ की स्थापना के साथ उनकी राजनीतिक पारी की शुरुआत हुई. बताया जाता है कि कभी केशुभाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला जनसंघ के संगठन को मजबूत बनाने के लिए गांव-गांव भटका करते है. इस दौरान भी उन्होंने बहुत कुछ सीखा और यही सीख जीवनभर उनके साथ रही. 1995 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस को करारी हार दी और केशुभाई पटेल मुख्यमंत्री बने.
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जब शंकर सिंह वाघेला बगावत पर उतर आए
ये बात किसी से नहीं छिपि थी कि विधानसभा चुनावों में बीजेपी को जीत दिलाने में शंकर सिंह वाघेला की अहम भूमिका था. वह शकंर सिंह वाघेला ही थे जिन्होंने विधानसभा चुनाव में कड़ी मेहनत की और बीजेपी को एक मजबूत पार्टी के तौर पर उभारा. हालांकि एक वक्त ऐसा आया जब शंकर सिंह वाघेला को ही हाशिए पर पहुंचा दिया गया, वो भी इसलिए क्यों उन्हे नरेंद्र मोदी से दिक्कत थी. दरअसल कहा जाता है कि जब केशुभाई पटेल सीएम बने तो मोदी को उनकी मदद के लिए भेजा गया. हालांकि शंकर सिंह वाघेला इससे नाखुश थे. उन्हें मोदी के दूसरों पर हावी होने की प्रवर्ति से दिक्कत थी. केशुभाई पटेल ने मोदी और शंकर सिंह वाघेला में से मोदी को चुना और वाघेला को हाशिए पर पहुंचा दिया गया. इतनी मेहनत के बावजूद इस तरह नकार दिया जाना शंकर सिंह वाघेला को मंजूर नहीं हुआ और उन्होंने बगावती तेवर अपना लिए. बतौर अंजाम केशुभाई पटेल को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी और मोदी सूबे की सियासत से हटाकर केंद्र भेज दिया गया. सुरेश मेहता के नेतृत्व में नई सरकार बनी. हालांकि ये सरकार भी ज्यादा दिन नहीं चल पाई. इसके बाद शंकर सिंह वाघेला और दिलीप पोखर का भी हाल यही रहा.
एक बार फिर मुख्यमंत्री गद्दी पर केशुभाई पटेल लेकिन.....
इसके बाद याना 1998. एक बार फिर कांग्रेस को शिकस्त देकर केशुभाई पटेल सीएम की कुर्सी पर बैठे. लेकिन इस बार एक और बड़ी परेशानी उनका इंतजार कर रही है. व्यापारिक बंदरगाह, में तूफान आना, सौराष्ट्र और कच्छ में भयंकर सूखा पड़ना और फिर आखिर में भुज में आए 7.7 तीव्रता के भूकंप ने केशुभाई पटेल की सीएम की कुर्सी हिला कर रख दी. नतीजन उन्हें इस्तीफा देने को कहा गया. काफी कोशिशों के बावजूद वह अपना इस्तीफा नहीं रोक पाए. आलाकमान के समझाने के बाद 2001 में उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से अपना इस्तीफा दिया और फिर उनकी जगह आए नरेंद्र मोदी. नरेंद्र मोदी ने केशुभाई पटेल को अपना गुरु बताते हुए गुजरात की राजनीति का सारथी बताया और खुद को केवल एक गेयर, लेकिन कहा जाता है कि वो भी केवल लोक मर्यादा के लिए कहा गया.
2007 से केशुभाई पटेल मोदी के खिलाफ खुलकर सामने आ गए थे और 2012 में बीजेपी से इस्तीफा देकर गुजरात परिवर्तन पार्टी बनाई. हालांकि बाद में इस पार्टी का बीजेपी में विलय हो गया. साल 2019 में एक वीडियो सामने आया था जब नरेंद्र मोदी बतौर प्रधानमंत्री गुजरात दौरे पर गए थे. उस समय मंच पर केशुभाई पटेल भी मौजूद थे. पीएम मोदी ने उनको देखकर तुरंत उनके पैर छू लिए थे. उस वक्त ये वीडियो चर्चा का विषय बना हुआ था. इससे पहले गुजरात के सीएम विजय रूपाणी के शपथग्रहण समारोह में भी दोनों साथ में दिखे थे. साल 2017 में ही केशुभाई पटेल के बेटे प्रवीण के निधन पर पीएम मोदी उनसे मुलाकात करने उनके आवास पहुंचे थे.