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जानिए क्या होता है डेथ वारंट, जिसके 15 दिनों के भीतर फांसी दे दी जाती है

‘वारंट ऑफ एक्जेक्यूशन ऑफ अ सेंटेंस ऑफ डेथ’. इसे ब्लैक वारंट भी कहा जाता है. ये जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को 15 दिनों के भीतर ही फांसी दी जाती है.

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Ravindra Singh
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सांकेतिक चित्र( Photo Credit : फाइल)

निर्भया गैंगरेप (Nirbhaya Gangrape) मामले में दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट (Delhi Patiala House Court) ने चारों दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट (Death Warrant) जारी कर दिया है. इसके बाद निर्भया को चारो दोषियों को फांसी देनी तय हो गई है, अब निर्भया के इन चारो दोषियों को 22 जनवरी को फांसी दी जाएगी. क्या आप जानते हैं कि डेथ वारंट क्या होता है. आइए हम आपको बताते हैं कि क्या होता है डेथ वारंट क्या होता है और इसके जारी होने के बाद क्या होता है. कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर-1973 यानी दंड प्रक्रिया संहिता- 1973 (CrPC) के तहत 56 फॉर्म्स होते हैं. इनमें से फॉर्म नंबर- 42 को डेथ वारंट कहा जाता है. इसके ऊपर लिखा होता है, ‘वारंट ऑफ एक्जेक्यूशन ऑफ अ सेंटेंस ऑफ डेथ’. इसे ब्लैक वारंट भी कहा जाता है. ये जारी होने के बाद ही किसी व्यक्ति को 15 दिनों के भीतर ही फांसी दी जाती है.

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जानिए क्या होता है डेथ वारंट में

फॉर्म नंबर- 42 में जेल का नंबर, फांसी पर चढ़ाए जाने वाले सभी कैदियों के नाम और उनकी संख्या, केस नंबर, डेथ वारंट जारी होने की तारीख, फांसी देने की तारीख, फांसी देने का समय और फांसी देने की जगह सभी कुछ के बारे में लिखा होता है.

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मौत होने तक लटकाया रखा जाता है

डेथ वारंट में ये भी लिखा है कि कैदी को फांसी पर कितनी देर तक लटकाया जाएगा. इसके मुताबिक कैदी को तबतक फांसी पर लटकाए रखना है जब तक की उसकी मौत न हो जाए. कोर्ट के द्वारा जारी किया हुआ डेथ वारंट सीधा जेल प्रशासन पहुंचता है. फांसी होने के बाद कैदी की मौत से जुड़े सर्टिफिकेट वापस कोर्ट में दिए जाते हैं. इन डॉक्यूमेंट्स के साथ कैदी का डेथ वारंट भी वापस किया जाता है.

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डेथ वारंट जेल में पहुंचते ही जेल प्रशासन अपनी तैयारियां शुरू कर देता है. साथ ही फांसी देने वाले अपराधियों के परिजनों को भी सूचना दे दी जाती है. सूचना इसलिए दी जाती है कि परिजन फांसी से पहले उससे मुलाकात कर लें. अलग जेल प्रशासन चाहे तो फांसी के बाद परिजनों को फांसी के बाद शव सुपुर्द कर दिए जाएं.इसे ब्लैक वारंट भी कहते हैं डेथ वारंट को ब्लैक वारंट भी कहते हैं. अदालत इसे वारंट को जेल प्रभारी को संबोधित करते हुए भेजती है. जहां दोषी को कैद करके रखा गया होता है. ब्लैक वारंट में ट्रायल कोर्ट के उस जज का सिग्नेचर भी होता है, जिसने मौत की सजा सुनाई होती है.

Source : Ravindra Singh

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