केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के 77 साल के इतिहास में वर्ष 2018 में पहली बार ऐसा वाकया देखने को मिला, जब दो शीर्ष अधिकारियों के बीच कड़वाहट और उनके अड़ियल रवैये के कारण आपस में छिड़ी जंग से एजेंसी की प्रतिष्ठा पर आंच आई और केंद्र सरकार को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा. सीबीआई ने गोश्त निर्यातक मोइन कुरैशी के खिलाफ एक मामले को रफा-दफा करने के लिए तीन करोड़ रुपये की रिश्वत लेने के कथित आरोप में अस्थाना के खिलाफ मामला दर्ज किया. इसके बाद अस्थाना ने एक दर्जन से अधिक मामलों में अपने बॉस आलोक कुमार वर्मा के खिलाफ रिश्वत लेने के आरोप लगाए.
हैदराबाद के व्यवसायी साना के बयान के आधार पर अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई.
सीबीआई ने 15 अक्टूबर को साना से दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने के आरोप में अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. आरोप है कि मीट कारोबारी मोईन कुरैशी के केस को रफ-दफा करने के लिए दो बिचौलियों मनोज प्रसाद और सोमेश प्रसाद के जरिये दो करोड़ रुपये की रिश्वत दी गई.
दोनों अधिकारियों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, जिसके बाद सरकार को दोनों अधिकारियों को होकर अवकाश पर भेजना पड़ा. ऐसी घटना सीबीआई के 1941 में अस्तित्व में आने के बाद पहली बार हुई है.
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सीबीआई के संयुक्त निदेशक एम. नागेश्वर राव को एजेंसी का अंतरिम निदेशक बनाया गया. जिसके बाद आलोक वर्मा ने अपने खिलाफ लगे आरोपों और सरकार द्वारा अधिकार वापस लेने और छुट्टी पर भेजने के फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी थी.
सर्वोच्च न्यायालय ने 26 अक्टूबर को सीवीसी को निर्देश दिया कि वह वर्मा पर लगे आरोपों की जांच दो सप्ताह में करे और सीबीआई के एक पूर्व न्यायाधीश एके पटनायक को इस जांच की निगरानी का कार्य सौंपा.
वहीं केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि उसने शीर्ष सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) अधिकारियों - निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच इसलिए दखल दिया कि वे बिल्लियों की तरह लड़ रहे थे. केंद्र ने प्रमुख जांच एजेंसी की विश्वसनीयता और अखंडता को बहाल करने के लिए हस्तक्षेप किया.
Source : News Nation Bureau