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जिनकी मूर्ति टूटने पर पश्चिम बंगाल में आया 'भूचाल', जानिए कौन थे 'ईश्वरचंद विद्यासागर'

विद्यासागर ने महिलाओं की हालत सुधारने के लिए, उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए उस समय सामाजिक कार्यकर्ता की भी भूमिका भी निभाई.

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Ravindra Singh
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जिनकी मूर्ति टूटने पर पश्चिम बंगाल में आया 'भूचाल', जानिए कौन थे 'ईश्वरचंद विद्यासागर'

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सहज बुद्धि, तर्क और विवेक पर लगातार जोर देने वाले, यूरोपीय और पारंपरिक दोनों तरह के ज्ञान में महारथ रखने वाले, अपने ज्ञान को समाज-हित में बांटने वाले, निंदा-प्रशंसा की परवाह के बिना समाज को अधिक से अधिक मानवीय बनाने की आजीवन कठिन तपस्या करने वाले इंसान थे ईश्वरचंद विद्यासागर. गुरू रबीन्द्र नाथ टैगोर के मुताबिक वो करोड़ों में से एक ऐसे इंसान थे जो देशवासियों से सच्चा प्रेम करते थे.

ईश्वरचंद्र विद्यासागर के लिए यह मुहावरा एकदम सटीक बैठता है 'पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं', यह बात उन्होंने महज आठ साल की उम्र में ही कर दिखाया जब वो अपने पिता ठाकुरदास जी के साथ अपने गांव बीरसिंह से कोलकाता पहुंचे रास्ते में सियालखा से सलकिया तक 19 मील की दूरी में मील के पत्थरों को पढ़ते-पढ़ते ही उन्होंने अंग्रेजी के अंक सीख लिए थे.

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पारंपरिक ब्राम्हणों की निंदा करते थे ईश्वरचंद
ईश्वरचंद विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर, 1819 एक गरीब ब्राम्हण परिवार में हुआ था. वे ऐसे संस्कृत पंडित थे, जो इस बात के लिए पारंपरिक पंडितों की निंदा कर सकते थे कि वे आधुनिक वैज्ञानिक सत्यों का अनुसंधान करने की बजाय इस झूठे अभिमान में डूबे रहते हैं कि सारा ज्ञान-विज्ञान तो हमारे शास्त्रों में से पहले से ही मौजूद है. उन्होंने यह बात उन्होंने बनारस संस्कृत कॉलेज के प्रिंसिपल जेआर बैलेंटाइन द्वारा संस्कृत पांडित्य-परंपरा की अंधाधुंध प्रशंसा से चिढ़ कर कही थी.

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एक बार, जब उन्हें सलाह दी गयी कि काशी-विश्वनाथ की तीर्थयात्रा कर लें, तो उनका जबाव सुनकर सब लोग दंग रह गए उन्होंने कहा था, 'कि मेरे लिए मेरे पिता ही विश्वनाथ हैं और मां साक्षात देवी अन्नपूर्णा. विद्यासागर ने अपना अंत समय किसी तीर्थ-नगरी में नहीं, करमातर के संथालों की सेवा में बिताया.'

सादा जीवन और उच्च विचार
उनकी सादगी की तमाम कहानियां है जिनमें से एक कहानी आपके साथ साझा करना चाहूंगा. एक बार एक सज्जन व्यक्ति विद्यासागर से मिलने उनके गांव पहुंचे, जहां विद्यासागर बहुत समय बिताते थे. छोटा सा स्टेशन था, सज्जन व्यक्ति को कुली की जरूरत थी, थोड़ी ही दूर पर एक व्यक्ति साधारण से कपड़े पहने हुए खड़ा था उन्होंने उसे आदेश देते हुए कहा, 'सामान उठाकर विद्यासागरजी के घर ले चल.' अगले ने सामान उठाया, चल पड़ा, पीछे पीछे साहब, देहाती दुनिया का नजारा लेते हुए. घर के सामने पहुंच कर कुली ने कहा, यह रहा घर और मैं हूं विद्यासागर, बताइए क्या सेवा करूं?'

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इस घटना के बाद वो सज्जन व्यक्ति हैरत में पड़ गया और उनकी सादगी देखकर उनके चरणों में गिर पड़ा. वो गरीब परिवार में जरूर जन्में थे लेकिन वो बहुत ही सम्मानित घर से थे. अपनी कड़ी मेहनत के बल पर उन्होंने आधुनिक और पारंपरिक दोनों तरह की शिक्षा हासिल की और संस्कृत कालेज कोलकाता के प्रधानाध्यापक बनें. अपनी विद्वता और प्रशासन-क्षमता का, साथ ही स्वतंत्र सोच-विचार का लोहा मनवाया. रिटायरमेंट के बाद हाईकोर्ट के जज ने उनके ज्ञान को देखते हुए उनसे अनुरोध किया कि अब वो कमजोरों के लिए वकालत करें, क्योंकि उनके जैसा हिन्दू धर्मशास्त्र (कानून) का जानकार मिलना मुश्किल है.

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महिलाओं के उत्थान के लिए बने सामाजिक कार्यकर्ता 
विद्यासागर ने महिलाओं की हालत सुधारने के लिए, उन्हें बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए उस समय सामाजिक कार्यकर्ता की भी भूमिका भी निभाई. ‘बाल-विवाह के दोष’ के 5 ही साल बाद ही विधवा-विवाह और लड़कियों की शिक्षा के पक्ष में जनमत बनाने के लिए विद्यासागर ने शास्त्रों का सहारा लिया, जरूरी कानून बनें, उन पर अमल हो, इसके लिए काम किया. सामाजिक विरोधों से लड़ते हुए उन्होंने अपनी पहलकदमी पर विधवा-विवाह कराए, कई विधवाओं के मां-बाप दोनों की भूमिका निभाई.

समाजिक नेता थे ईश्वरचंद विद्यासागर
विद्यासागर सही मायने में समाज के नेता थे. सामाजिक सुधारों के साथ ही, सामाजिक विपदाओं के समय भी वो कभी पीछे नहीं रहे थे साल 1865 के अकाल के दौरान जो लंगर उन्होंने अपने गांव में चलाया, वह साल भर तक चलता ही रहा. बर्दवान में फैली महामारी के दौरान सरकार से पहले ही विद्यासागरजी ने वॉलंटियर दल खड़ा करके महामारी की चपेट से लोगों को बचाया. उनका कर्ज केवल बंगाल पर नहीं, सारे भारत पर है. 29 जुलाई 1891 में उनका निधन हो गया.

HIGHLIGHTS

  • पश्चिम बंगाल में उपद्रियों ने तोड़ी ईश्वरचंद विद्यासागर की मूर्ति
  • महिलाओं और बच्चों के उत्थान के लिए किए काम
  • 1865 के अकाल में लगाता साल भर चलाया था लंगर

Source : News Nation Bureau

West Bengal Social Reformer Ishwarchand Vidyasagar Ishwar Chand Vidyasagar Guru Rabindra Nath Taigore Break Statue of Ishwarchand Vidyasagar
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