जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी गठबंधन की सरकार गिरने के बाद बीते 16 जून से राज्यपाल शासन लगा हुआ है. कल यानि की बुधवार को जैसे ही महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी, कांग्रेस और उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस ने राजभवन में सरकार बनाने का दावा ठोंका ठीक उसके बाद राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने जम्मू-कश्मीर विधानसभा को ही भंग कर दिया. एक तरफ पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर 56 विधायकों के समर्थन से राज्यपाल को सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया तो वहीं दूसरी तरफ पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सज्जाद लोन ने भी राज्यपाल को सरकार बनाने का दावा करते हुए चिट्ठी भेज दी और कहा कि बीजेपी विधायकों का समर्थन उनके पास है. इसके बाज जम्मू-कश्मीर की राजनीति में तेजी से घटना क्रम बदला और राज्यपाल ने विधायकों की खरीद फरोक्त की आशंका का हवाला देते हुए विधानसभा भंग करने का आदेश जारी कर दिया. यहां हम सिर्फ 10 प्वाइंट में आपको बता रहे है वो पूरा घटना क्रम जिससे जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस, पीडीपी, एनसी समेच राजनीतिक दलों का सरकार बनाने का सपना टूट गया.
1. जम्मू-कश्मीर में सहमति बनने के बाद पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने मिलकर फैक्स के जरिए राज्यपाल मलिक को सरकार बनाने का दावा भेजा. राजभवन ने ऐसा कोई फैक्स मिलने से इन्कार कर दिया जिसके बाद पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कहा संपर्क नहीं हो पाने की वजह से वो दावे के लिए ट्वीट का सहारा ले रही हैं. महबूबा मुफ्ती ने राजभवन को भेजे पत्र में लिखा था कि पीडीपी राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है और 29 विधायक उनके पास हैं. कांग्रेस के 12, नेशनल कॉन्फ्रेंस के 15 विधायकों का भी उन्हें समर्थन मिला है इसलिए सरकार बनाने का मौका दिया जाए.
2. महबूबा मुफ्ती के सरकार बनाने का दावा पेश करने के तुरंत बाद पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता सज्जाद लोन ने भी बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया और कहा कि उनके बास बीजेपी के 26 विधायकों समते दूसरे दलों के 18 अन्य विधायकों का भी समर्थन प्राप्त है और यह बहुमत के आंकड़े से ज्यादा है और वो सरकार बनाने में सक्षम है.
3. दोनों तरफ से सरकार बनाने का दावा आने के बाद विधायकों की खरीद फरोक्त का हवाला देते हुए जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 87 सदस्यीय विधानसभा को ही भंग कर दिया जिसके बाद किसी भी राजनीतिक दल के सरकार बनाने के सभी संभावनाओं पर विराम लग गया.
4. विधानसभा भंग होने के बाद विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर बड़ा हमला किया. इस मसले पर जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती, उमर अब्दुल्ला, कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद समेत अन्य विपक्षी दलों ने केंद्र पर निशाना साधा. उमर अब्दुल्ला ने चुटकी लेते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर राज भवन में फैक्स मशीन की जरूरत है. एक और ट्वीट की श्रृंखला में राज्य के पूर्व सीएम ने केंद्र पर निशाना साधा और साजिश की संभावना जताई.
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5. महबूबा मुफ़्ती ने ट्वीट के जरिए ये भी बताया कि राजभवन की फैक्स मशीन नहीं चल रही है. महबूबा ने कई ट्वीट करके कहा कि पिछले पांच महीनों से राजनीतिक संबद्धताओं की परवाह किये बगैर, ‘‘हमने इस विचार को साझा किया था कि विधायकों की खरीद फरोख्त और दलबदल को रोकने के लिए राज्य विधानसभा को भंग किया जाना चाहिए.’ उन्होंने कहा, ‘लेकिन हमारे विचारों को नजरअंदाज किया गया. लेकिन किसने सोचा होगा कि एक महागठबंधन का विचार इस तरह की बैचेनी देगा.’
6. पीडीपी के बागी विधायक इमरान अंसारी ने कहा, 'अगर राजयपाल ने हमें फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाया होता, तो हम अपने सदस्य दिखाते. अब हालात अलग है. चुनाव ही अब विकल्प है. अगर महबूबाजी को लगता है कि यह असंवैधानिक है तो इस लोकतान्त्रिक देश में उनके पास बहुत सारे विकल्प है.'
7. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि एक लोकप्रिय सरकार का गठन करने के लिए वार्ता प्रारंभिक चरण में थी और केन्द्र की बीजेपी सरकार इतनी चिंतित थी कि उन्होंने विधानसभा भंग कर दी. आजाद ने कहा, ‘स्पष्ट है कि बीजेपी की नीति यही है कि या तो हम हों या कोई नहीं.’
8. पीडीपी और एनसी के बीच राजनीतिक गठजोड़ की खिचड़ी पकने की खबर सामने आते ही बीजेपी ने भी तैयारी शुरू कर दी थी और सज्जाद लोन को समर्थन देकर सरकार की गठन की योजना बनाई गई. लेकिन सूत्रों के मुताबिक बैठक के बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने यह तय किया न तो जोड़ तोड़ कर बीजेपी सरकार बनाएगी और न ही किसी दूसरे दल को वहां जोड़ तोड़ की सरकार बनाने देगी.
9. इसके बाद बीजेपी ने राज्य की राजनीतिक हालातों का हवाला देते हुए वहां विधानसभा को भंग कर चुनाव कराने पर ही जोर दिया और इसे ही सबसे बेहतर विकल्प बताया. बीजेपी पीडीपी और एनसी के गठजोड़ को आतंक अनुकूल पार्टियों का गठबंधन तक करार दे दिया.
10. पीडीपी-बीजेपी के अलग होने के बाद से जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लगा हुआ है और इसकी अधिकतम समय सीमा 6 महीने ही है. 19 दिसंबर को राज्यपाल शासन की मियाद पूरी हो रही है और इसे बढ़ाया नहीं जा सकता है. ऐसे में अब जम्मू-कश्मीर में फिर से विधानसभा चुनाव होना लगभग तय है.
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जम्मू-कश्मीर में 8 बार लग चुका है राज्यपाल शासन
जम्मू-कश्मीर में यह पहली बार नहीं है जब राज्यपाल शासन लगाया गया है. इससे पहले राज्य में 8 बार ऐसा हो चुका है. जम्मू कश्मीर में पहली बार 26 मार्च 1977 से 9 जुलाई 1977 तक, दूसरी बार 6 मार्च 1986 से 7 नवंबर 1986 तक, तीसरी बार 19 जनवरी 1990 से 9 अक्तूबर 1996 तक, चौथी बार 18 अक्तूबर 2002 से 2 नवंबर 2002 तक, पांचवीं बार 11 जुलाई 2008 से 5 जनवरी 2009 तक, छठी बार 9 जनवरी 2015 से 1 मार्च 2015 तक, सातवीं बार 8 जनवरी 2016 से 4 अप्रैल 2016 तक और आठवीं बार 19 जून 2018 से अब तक राज्यपाल शासन लग चुका है.
Source : News Nation Bureau