पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के बीच अब तनाव कम होता नजर आ रहा है. भारत और चीन की सेनाओं ने अग्रिम मोर्चे पर और अधिक सैनिक न भेजने का निर्णय किया है. भारत और चीन के सैन्य कमांडरों के बीच हुई छठे दौर की वार्ता के संबंध में भारतीय सेना और चीनी सेना ने एक संयुक्त बयान में कहा कि दोनों पक्ष आपस में संपर्क मजबूत करने और गलतफहमी तथा गलत निर्णय से बचने पर सहमत होने के साथ ही अग्रिम मोर्चे पर और अधिक सैनिक न भेजने, जमीनी स्थिति को एकतरफा ढंग से न बदलने पर सहमत हुए. हम आज आपको बताने जा रहे हैं कि भारत-चीन के बीच टकराव की असली वजह क्या है.
विवाद का पहला कारण
पहला और मुख्य वजह यह है कि दोनों देशों के बीच लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा तो है लेकिन यह एक लाइन मात्र नहीं है. लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी की लंबाई में देखें तो लगभग 886 किलोमीटर लंबी है. लेकिन, इस एलएसी की कई सौ मीटर चौड़ाई है. कहीं-कहीं ये 4 से 5 किलोमीटर चौड़ी है. सन् 1962 के युद्ध के बाद जहां-जहां भारत-चीन की सेना सेनाओं की तैनाती थी उसे ही आखिरी प्वाइंट मान लिया गया था.
लेकिन, इस इलाके में चीन की बेहद कम पोस्ट यानी चौकियां हैं. चीन की पीएलए सेना की तैनाती एलएसी से काफी पीछे है. क्योंकि, 1962 के युद्ध के बाद चीनी सेना का 3488 किमी लंबी पूरी एलएसी पर दबदबा था. चीनी सेना सालभर में कुछ समय के लिए खासतौर से गर्मियों में पेट्रेलिंग के लिए यहां आती थी और भारतीय सेना की तैनाती को देखकर लौट जाती थी.
लेकिन, भारत-चीन के बीच तनातनी की शुरुआत तब शुरू हुई जब इंडियन आर्मी ने लद्दाख के दुर्गम इलाकों में सड़क और दूसरी मूलभूत सुविधाओं का जाल बिछाना शुरू कर दिया. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर दौलत बेग ओल्डी (DBO) तक सड़क बनाने का काम पूरा कर लिया. सड़क के साथ ही लद्दाख की बड़े-छोटे नदी-नालों पर पुल बनने शुरू हो गए. श्योक नदी पर असंभव माने जाना वाला कर्नल चेवांग रिनछेन सेतु का निर्माण कर लिया गया.
सड़क और पुल बनने की वजह से सेना की छावनियां, बंकर और डिफेंस-फोर्टिफिकेशन का काम शुरू हो गया. दुनिया के दूसरे सबसे ऊंचे दर्रे चांगला-पास से टैंकों को पार कर पैंगोंग लेक के करीब एक पूरी आर्मर्ड ब्रिगेड तैनात कर दी गई. इसके साथ ही उत्तरी सिक्किम में दुनिया की सबसे ऊंचे स्थान (16 हजार फीट) पर दूसरी आर्मर्ड ब्रिगेड तैनात कर दी गई. यहां तक की चीन के द्वार पर बोफोर्स तोप तक को लाकर तैनात कर दिया.
भारतीय सेना की इन डिफेंस-फैसेलिटी से चीन सेना हड़बड़ा गई, क्योंकि 1962 की युद्ध में हार के बाद भारत ने चीन सीमा पर सड़कें इसलिए नहीं बनाई थी कि भारत को लगता था कि सड़कें अगर बनाई और चीन से फिर युद्ध हुआ तो चीनी सेना 1962 की तरह ही देश के अंदर तक घुस आएगी.
लेकिन, जब करगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना पाकिस्तानी सैनिकों को भगाने में व्यस्त थी, तब ऐसा कहा जाता है कि कि चीनी सेना ने लद्दाख की कई पहाड़ियों पर धीरे-धीरे आकर अपना डेरा जमा लिया था. इसके बाद से ही इंडियन आर्मी ने एलएसी पर अपनी तैनाती मजबूत करनी शुरू कर दी.
गलवान घाटी में मौजूदा विवाद भी गलवान नदी पर भारतीय सेना की ओर से पुल बनाने से ही हुआ. इस पर चीनी सेना ने ऐतराज जताया था, जिसको लेकर दोनों देशों के सैनिकों में झगड़ा हुआ और फिर चीनी सैनिक टैंट गाड़कर यहां बैठ गए. इसके बाद भारतीय सेना भी चीनी कैंप से 500 मीटर दूर तंबू गाड़कर जम गई.
आपको हम यह भी बता दें कि इस दौरान चीन ने अक्साई-चीन और लद्दाख से सटे तिब्बत में विकास किया. यहीं से ही फोर-लेन वेस्टर्न-हाईवे होकर गुजरता है, लेकिन चीन को मंजूर नहीं कि भारत अपने अधिकार क्षेत्र में कोई निर्माण करे.
विवाद का दूसरा कारण
वहीं, दूसरी बड़ी वजह जो दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनातनी की है वो है एलएसी के 'परसेप्सन' यानी नजरिए को लेकर. क्योंकि, एलएसी 'मार्कड' नहीं है जैसा कि पाकिस्तान से एलओसी (लाइन ऑफ कंट्रोल) है. ऐसे में दोनों देशों की सेना के जवान सैनिक अपने-अपने तरीके से पेट्रोलिंग करते आए हैं.
लेकिन, भारतीय सेना ने अब उन इलाकों में बंकर आदि बनाने शुरू कर दिए, जहां तक सेना या फिर आईटीबीपी के जवान गश्त करते हैं. क्योंकि, भारतीय सेना को 26 घंटे और साल के 12 महीने एलएसी की रखवाली करनी होती है. चीनी सेना को भारतीय सेना की यह बात अच्छी नहीं लगी. क्योंकि, गाड़ियों में ही चीनी सैनिक पेट्रोलिंग करते आए थे और एलएसी पर नजर मारकर चले जाते थे. लेकिन, रोड बन जाने से भारतीय सेना और आईटीबीपी अब गाड़ियों से पेट्रोलिंग करती है और इससे टकराव की स्थिति ज्यादा बन रही है.
विवाद का तीसरा कारण
तीसरा विवाद की बड़ी वजह है 'मार्किंग' की. इंडियन आर्मी ने पाया कि जहां तक चीनी सेना गश्त करने आती है, वहां 'मार्क' यानी निशान लगाकर चली जाती थी. इसके बाद सैन्य कमांडर्स या फिर राजनयिक स्तर पर जो बॉर्डर को लेकर बैठक होती थी उसमें वहां की तस्वीर सामने लाकर उस इलाकों को अपना बता देती थी. ऐसे में कुछ साल पहले भारतीय सेना ने भी ऐसी मार्किंग करनी शुरू कर दी. इससे चीन को मिर्च लगनी शुरू हो गई.
यही वजह है कि अब जब गलवान घाटी और फिंगर क्षेत्र में चीन की सेना तंबे गाड़कर बैठ गई है. इसे लेकर इंडियन आर्मी ने प्रस्ताव रखा कि दोनों सैनिकों की जहां-जहां तैनाती है उसी के बीच में कहीं एलएसी को मान लिया जाए. लेकिन इसके लिए चीनी सेना तैयार नहीं है. क्योंकि, अगर ऐसा हुआ तो फिर चीनी सेना को भारतीय सेना की तरह बैरक से निकलकर एलएसी पर ही तैनात होना होगा.
फिर चीन की पीएलए सैनिकों को एलएसी पर 12 महीने ही तैनात होना होगा. भारत का भी यह मानना है कि अगर ऐसा हुआ तो फिर घुसपैठ, फेसऑफ और टकराव की स्थिति नहीं आएगी. लेकिन चीनी सेना प्रस्ताव मानने के बजाये भारतीय सेना को सड़क और डिफेंस-फोर्टिफिकेशन बंद कराने पर उतारू है. लेकिन, इंडियन आर्मी ने साफ-साफ कर दिया है कि न तो सीमावर्ती इलाकों में निर्माण कार्य बंद करेगा और न ही भारतीय सेना जहां तैनात है उससे एक इंच पीछे होगी.
Source : News Nation Bureau