Karpoori Thakur: बिहार की राजनीति का जब भी जिक्र किया जाता है तो कर्पूरी ठाकुर का नाम लिए बिना उसे पूरा नहीं किया जा सकता. कर्पूरी ठाकुर को गरीबों की आवाज और जननायक के रूप में जाना जाता है. गरीबों के लिए किए गए उनके कामों को आज भी याद किया जाता है. केंद्र सरकार ने 23 जनवरी को कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया. बिहार के जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती 24 जनवरी को मनाई जाती है. कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति में गरीबों और दबे-कुचले लोगों की आवाज बनकर उभरे थे. वह दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और एक बार उन्होंने राज्य के उपमुख्यमंत्री का भी पद संभाला
यही नहीं वह दशकों तक विपक्ष के नेता की भूमिका में भी रहे. वह साल 1952 में पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. जननायक कर्पूरी ठाकुर बिहार के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे. वह 1967 में बिहार के उप मुख्यमंत्री बने और राज्य में मैट्रिक की परीक्षा में पास होने के लिए अंग्रेजी की अनिवार्यता को खत्म कर दिया. इसके चलते उन्हें आलोचना भी झेलनी पड़ी. यही नहीं बिहार में शराबबंदी कानून लागू करने वाले भी वह पहले मुख्यमंत्री थे.
पहली बार 1970 में बने मुख्यमंत्री
कर्परी ठाकुर पहली बार साल 1970 में बिहार के मुख्यमंत्री बने. उसके बाद साल 1971 में उन्होंने किसानों को बड़ी राहत देते हुए गैर- लाभकारी जमीन पर मालगुजारी टैक्स को खत्म करने का ऐलान कर दिया. साल 1977 में मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने नौकरियों में मुंगेरीलाल कमीशन लागू किया जिससे गरीबों और पिछड़ों को आरक्षण का लाभ मिला. ऐसे कर वह सवर्णों के दुश्मन बन गए. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और जननायक कर्पूरी ठाकुर का जन्म समस्तीपुर जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. इनके पिता गोकुल ठाकुर गांव के सीमांत किसान थे. जो अपने पारंपरिक पेशा, नाई का काम किया करते थे. कर्पूरी ठाकुर भारत छोड़ो आंदोलन में जेल भी गए और ढाई साल की सजा काटी. ऐसा कहा जाता है कि बिहार की राजनीति में जननायक कर्पूरी ठाकुर को कभी नहीं भुलाया जा सकता.
छात्र संघ से शुरू की राजनीति
जननायक कर्पूरी ठाकुर 22 दिसंबर 1970 को पहली बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन वह इस कुर्सी पर 2 जून 1971 तक ही रह पाए. उसके बाद 24 जून 1977 को वह दूसरी बार मुख्यमंत्री बने. इस बार वह 21 अप्रैल 1979 तक राज्य के सीएम रहे. वह बिहार के नाई परिवार से आते थे. उन्होंने अखिल भारतीय छात्र संघ से राजनीति में कदम रखा. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे.
आखिरी समय तक नहीं रहा अपना मकान
कर्पूरी ठाकुर बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री थे जिनके पास आखिरी समय में अपना मकान तक नहीं था. उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की भलाई और उनके कल्याण के काम में लगा दिया. इसीलिए जब वह दुनिया से विदा हुए तब उनके पास अपने परिवार को विरासत में देने के लिए एक घर तक नहीं था.
खुद अपने कपड़े धोते थे कर्पूरी ठाकु
कर्पूरी ठाकुर जब एक बार बिहार विधानसभा का चुनाव जीते तो उसके बाद वह कभी विधानसभा चुनाव नहीं हारे. उनकी सादगी ऐसी थी कि वो कभी अपने सामने दूसरे को हैंडपंप नहीं चलाने देते थे. वह खुद ही अपने हाथों से पानी निकालते और अपने कपड़े खुद ही धोते थे. कर्पूरी ठाकुर की समस्तीपुर की एक यात्रा काफी चर्चा में रही. वह 1969 में चुनावी दौरे से लौटकर रात में समस्तीपुर आए. वह अधिवक्ता शिवचंद्र प्रसाद राजगृहार के आवास पर रुके.
कर्पूरी ने बाल्टी और मग मांगा और रात में ही अपनी धोती और कुर्ते को खुद साफ कर सूखने के लिए डाल दिया. इसके बाद उन्होंने खाना खाया और सो गए. जब वह सुबह उठे तो उनकी धोती और कुर्ता सूखे नहीं थे. उन्होंने धोती सुखाने के लिए खुद एक छोर पकड़ा और दूसरा छोर एक साथी को पकड़ा दिया. उसके बाद वह धोती और गंजी को कुछ देर तक झटकते रहे. जब कपड़े पहनने लायक हो गए तो बिना आयरन किए ही उन्होंने धोती और कुर्ता पहना और आगे निकल गए.
Source : News Nation Bureau