पूर्व वित्तमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली (Arun Jaitely) नहीं रहे. आज शनिवार को उन्होंने दिल्ली के एम्स (AIMS) अंतिम सांस ली. वह पिछले एक हफ्ते से वहां भर्ती थे. 6 अगस्त 2019 को उन्होंने आखिरी ब्लॉग (Last Blog Of Arun Jaitley)लिखा. उनका यह ब्लॉग (Last Blog Of Arun Jaitley)कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने को लेकर था. इसके अलावा उन्होंने अंतिम ट्वीट (Last Tweet) 7 अगस्त को किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि महान संत तुलसीदास जी की जयंती पर उनको कोटि कोटि नमन. इससे ठीक पहले उन्होंने सुषमा स्वराज के निधन पर लिखा कि सुषमाजी के निधन पर दुख, दर्द और टूट गया। वह वर्तमान युग में सबसे उत्कृष्ट राजनीतिज्ञों में से एक था. वह सभी पदों पर प्रतिष्ठित थीं। उन्होंने पार्टी, एनडीए सरकार के साथ वरिष्ठ पदों पर रहे। & विरोध में रहते हुए वह एक शून्य के पीछे छोड़ देती है जिसे भरना मुश्किल है।
Saddened, pained & broken on demise of Sushmaji. She was one of the most outstanding politicians in the Present Era. She distinguished in all positions. She held Senior Positions with the Party, NDA Govt. & while in opposition. She leaves behind a void which is difficult to fill.
— Arun Jaitley (@arunjaitley) August 6, 2019
वहीं अरुण जेटली (Arun Jaitely) ने अपने अंतिम ब्लॉग (Last Blog Of Arun Jaitley)में लिखा था..
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्पष्ट दृष्टिकोण से इतिहास रचा है. अनुच्छेद 370 पर फैसले के लिए ऐसे राजनीतिक साहस की ही जरूरत थी. साथ ही गृह मंत्री शाह की भी प्रशंसा की. उन्होंने आगे लिखा कि यह धारणा पूरी तरह गलत साबित हुई है कि भाजपा का वादा सिर्फ नारा था. जेटली के ब्लॉग (Last Blog Of Arun Jaitley)के चुनिंदा अंश...
विफल प्रयासों का इतिहास
कश्मीर पर पंडित नेहरू ने हालात का आकलन करने में भारी भूल की थी. उन्होंने शेख मोहम्मद अब्दुल्ला पर भरोसा करके उन्हें इस राज्य की बागडोर सौंपने का निर्णय लिया. लेकिन 1953 में उनका विश्वास शेख साहब से उठ गया और उन्हें जेल में बंद कर दिया. इंदिरा गांधी ने इसके बाद शेख साहब को रिहा करने और बाहर से कांग्रेस का समर्थन सुनिश्चित कर एक बार फिर उनकी सरकार बनाने का एक प्रयोग किया.
हालांकि, कुछ ही महीनों के भीतर शेख साहब के सुर बदल गए और गांधी को यह स्पष्ट रूप से अहसास हो गया कि उन्हें नीचा दिखाया गया है. 1987 में राजीव गांधी ने एक बार फिर से नीतियों को बदल दिया और फारूख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. चुनाव में भी धांधली हुई. कुछ उम्मीदवार जिन्हें जोड़-तोड़ करके हराया गया था, वे बाद में अलगाववादी और तो और आतंकवादी तक बन गए.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का नजरिया सही साबित हुआ
विशेष दर्जा प्रदान करने की ऐतिहासिक भूल से देश को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ी. आज, जबकि इतिहास को नए सिरे से लिखा जा रहा है, उसने ये फैसला सुनाया है कि कश्मीर के बारे में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दृष्टि सही थी और पंडित नेहरू जी के सपनों का समाधान विफल साबित हुआ है.
विपक्षी पार्टियां भी साथ आईं
सरकार की नई कश्मीर नीति पर आम जनता की ओर से जो जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है, उसे देखते हुए कई विपक्षी दलों ने आम जनता के सुर में सुर मिलाना ही उचित समझा है. यही नहीं, राज्यसभा में इस निर्णय का दो तिहाई बहुमत से पारित होना निश्चित तौर पर कल्पना से परे है. मैंने इस निर्णय के असर के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को सुलझाने के अनगिनत विफल प्रयासों के इतिहास का विश्लेषण किया.
कांग्रेस पर तंज कसा
यह एक पछतावा है कि कांग्रेस पार्टी की विरासत ने पहले तो समस्या का सृजन किया और उसे बढ़ाया, अब वह कारण ढूंढने में विफल है. यह सरकार के इस फैसले के लिए लागू होता है. कांग्रेस के लोग व्यापक तौर पर विधेयक का समर्थन करते हैं. नया भारत बदला हुआ भारत है. केवल कांग्रेस इसे महसूस नहीं करती है. कांग्रेस नेतृत्व पतन की ओर अग्रसर है.
1989-90 तक हालात काबू से बाहर हो गए
1989-90 तक, हालात काबू से बाहर हो गए तथा अलगाववाद के साथ आतंकवाद की भावना जोर पकड़ने लगी. कश्मीरी पंडित को इस तरह के अत्याचार बर्दाश्त करने पड़े, जिस तरह के अत्याचार केवल नाजियों ने ही किये थे. कश्मीरी पंडितों को घाटी से बाहर खदेड़ दिया गया.
तीन नए प्रयास भी नाकाम
जब अलगाववाद जोर पकड़ रहे थे, विभिन्न राजनीतिक दलों की अगुवाई वाली केन्द्र सरकार ने तीन नए प्रयास किए. उन्होंने अलगाववादियों के साथ बातचीत की कोशिश की, जो व्यर्थ साबित हुई. द्विपक्षीय मामले के रूप में पाक के साथ बातचीत की कोशिश की गई. प्रयोग विफल होने के बाद केन्द्र की बहुत सी सरकारों ने राष्ट्रीय हित में मुख्यधारा वाली पार्टियों के साथ समायोजन का फैसला किया. दो राष्ट्रीय दलों ने एक अवस्था पर दो क्षेत्रीय पार्टियों पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस पर भरोसा करने का प्रयोग किया. उन्हें सत्ता पर आसीन कराया. लेकिन यह भी विफल रहा.
Source : दृगराज मद्धेशिया