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लता मंगेशकर लगाती थी संगीत के नाम का सिंदूर, जानें क्यों छुए थे शमशाद बेगम और गीता दत्त के पैर

तबस्सुम उनकी बहन उषा मंगेशकर के लगातार संपर्क में रही और उनसे जब बात करने की इच्छा होती थी, वो उषा के ज़रिए लता जी से बातें कर लेती थीं.

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Pradeep Singh
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लता मंगेशकर ( Photo Credit : News nation)

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लता मंगेशकर की एक गायिका के रूप में भारतीय फिल्म जगत की पारी उनके समकक्षों में सबसे लंबी और अव्वल है. लेकिन स्वरकोकिला लता के जीवन के कई ऐसे पहलू भी हैं जिनसे हम में से अधिकतर लोग अनजान हैं. जानी मानी कलाकार तबस्सुम ने लता जी पूछा था कि आप सिंदूर क्यों लगाती हैं. तबस्सुम ने एक दफा लता जी से एक सवाल किया था कि दीदी आप तो कुंवारी लता जी हैं, आपकी शादी तो हुई नहीं हैं..आप श्रीमती लगाती नहीं. तो जवाब में भी उन्होंने कहा कि हां, मैं तो कुंवारी लता मंगेशकर हूं.तो मैंने पूछ लिया कि दीदी जो आपकी मांग में सिंदूर है, वो फिर किसके नाम का है. तो उन्होंने जवाब दिया कि संगीत के नाम का है.  

तबस्सुम लता मंगेशकर से जुड़ी दूसरी बात में कहती हैं कि ये मेरी खुशकिस्मती है कि जब लता जी अपने पहले हिंदी गाने से डेब्यू कर रही थीं, फिल्म का नाम था, बड़ी बहन जिसका म्यूजिक हुस्न लाल भगतराम ने दिया था. गाने के बोल थे चुप-चुप खड़े हो, जरूर कोई बात है, पहली मुलाकात है ये पहली मुलाकात है. मुझे अच्छी तरह याद है कि इस गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान शमशाद बेगम, गीता दत्त और मैं मौजूद थीं.

उस जमाने में भी रिकॉर्डिंग बिलकुल पारिवारिक तौर पर हुआ करती थी. लोग रिकॉर्डिंग के दौरान बातें किया करते थे, किस्से सुनाया करते थे. जब लाता दीदी अपनी रिकॉर्डिंग के लिए आगे गईं, तो उन्होंने गीता दत्त और शमशाद बेगम जी के पैर छुए और उनका आशीर्वाद लेकर वो गाना गाया. इससे अंदाजा होता है कि वे आज कहां पहुंची है, उसमें बड़ों के लिए उनकी कितनी इज्जत रही हैं.

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इसके बाद एक फिल्म आई थी दीदार, जिसके संगीतकार थे नौशाद साहब, इसमें एक गाना था जो तबस्सुम और बलराज साहनी के बेटे पर फिल्माया गया था. तबस्सुम बताती हैं कि इस गाने के लिए लता जी ने अपनी आवाज दी थी. इस गाने को आज 70 से 72 साल हो गए है. आज भी यह गाना लोगों को याद है. इस गाने ने मेरे बचपन को अमर कर दिया था. गाने के बोल थे बचपन का दिन कभी भूला न देना...आज हंसे तो रुला न देना.

तबस्सुम ने आगे चलकर लता जी के साथ कई लाइव शोज भी किए हैं. ऐसे ही एक प्रोग्राम को याद करते हुए वो बताती हैं, मुझे याद है कि कोलकाता के नेताजी सुभाष ऑडिटोरियम में इतनी भीड़ थी कि जहां मैं खुद सहम गई थी. इसी बीच मैंने डर से उनके लिए गलत गाना अनाउंस कर दिया. अगर वहां लता जी की जगह कोई और होता, तो जरूर कहता कि नहीं ये गाना नहीं, मुझे ये गाना गाना था लेकिन यकीन मानें, उन्होंने वो गाना ही गाया, जिसे मैंने अनाउंस किया था. किसी को एहसास नहीं होने दिया कि मैंने गलत गाना अनाउंस किया है.

जैसे जैसे उम्र बढ़ती गई और लता जी की तबीयत नासाज़ रहने लगी, तबस्सुम ने भी उनसे थोड़ी दूरी बना ली लेकिन उनके बीच अक्सर फोन पर बातें हुआ करती थीं. तबस्सुम बताती हैं कि आगे चलकर बातों का यह सिलसिला भी कम सा होता गया. तबस्सुम उनकी बहन उषा मंगेशकर के लगातार संपर्क में रही और उनसे जब बात करने की इच्छा होती थी, वो उषा के ज़रिए लता जी से बातें कर लेती थीं.

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