केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने सोमवार को कहा कि सबरीमाला के अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति संबंधी उच्चतम न्यायालय के फैसले को पलटने के लिए कोई कानून लाना राज्य सरकार के लिए संभव नहीं है. विजयन ने विधानसभा में विपक्षी यूडीएफ के एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि शीर्ष अदालत का 28 सितंबर, 2018 का फैसला जल्लीकट्टू या बैलगाड़ी दौड़ से संबंधित फैसले जैसा नहीं है.
उन्होंने कहा, ‘सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश से संबंधित उच्चतम न्यायालय का फैसला मौलिक अधिकारों से जुड़ा फैसला है. राज्य सरकार शीर्ष अदालत का फैसला लागू करने के लिए बाध्य है.’ उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल सितंबर में सबरीमला के अयप्पा मंदिर में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं द्वारा पूजा करने पर लगी रोक हटा ली थी और इस तरह उसने इस मंदिर में उनके प्रवेश का मार्ग प्रशस्त कर दिया था.
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इसके पहले फरवरी में मुख्यमंत्री पिन्नराई विजयन ने कहा था कि रजस्वला आयुवर्ग की महिलाओं को (मंदिर में) प्रवेश करने से रोकना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा और संविधान के विरूद्ध होगा. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने कानूनी राय ली है और उसके हिसाब से इस फैसले को दरगुजर करने के लिए कोई कानून लाना संभव नहीं है. उन्होंने कहा कि जो लोग सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर कानून लाने की बात करते हैं, वे श्रद्धालुओं को ठग रहे हैं. माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार पिछले वार्षिक तीर्थाटन सत्र के दौरान रजस्वला आयुवर्ग की दो महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर आलोचना से घिर गयी थी.
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सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सबरीमाला मंदिर के संरक्षक त्रावणकोर देवासम बोर्ड (टीडीबी) ने पहली बार अपना रुख बदलते हुए कहा था कि वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करेगा, जिसमें सभी उम्र के महिलाओं के प्रवेश की इजाजत दी गई थी. देवासम बोर्ड की तरफ से पेश हुए वकील राकेश द्विवेदी ने कोर्ट में कहा कि संविधान का अनुच्छेद-25(1) के तहत हर व्यक्ति को धार्मिक आजादी देता है. सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर सुनवाई के बाद फैसले को सुरक्षित रख लिया. कोर्ट ने सभी पक्षों को लिखित जवाब दाखिल करने की इजाजत दी.