लोकसभा चुनाव के बाद मंत्रिमंडल का गठन तो हो चुका है. अब जिस महत्वपूर्ण कुर्सी पर लोगों की नजरें लगी हैं वो है नेता प्रतिपक्ष यानी विपक्ष का नेता. विपक्ष के नेता की घोषणा वो विपक्षी दल करता है जो सत्ता पक्ष के बाद सबसे ज्यादा सीटें लाता है और सरकार में शामिल नहीं होता. इस तरह से इस बार कांग्रेस ने राहुल गांधी को बतौर नेता प्रतिपक्ष चुना है. इससे पहले कांग्रेस ने अपनी कमिटी की हाल ही में मीटिंग की थी, जिसमें राहुल गाँधी को नेता प्रतिपक्ष बनाने का प्रस्ताव भी पास कर दिया था. लेकिन राहुल गाँधी ने खुद ये कहा था की वो इस प्रस्ताव पर विचार करेंगे. हालांकि आज यानी मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर हुई बैठक में नेता प्रतिपक्ष के लिए राहुल गांधी के नाम का ऐलान कर दिया गया.
नेता प्रतिपक्ष बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पद
भारतीय लोकतंत्र के हिसाब से नेता प्रतिपक्ष बहुत ही महत्वपूर्ण और शक्तिशाली पद होता है. नेता प्रतिपक्ष के पास कैबिनेट मंत्री का दर्जा होता है. विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी की बात करें तो विपक्षी दल के नेता को सरकार के किसी भी निर्णय की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार होता है. विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी सत्ता दल के नेता से अलग होती है. किसी भी सरकार में विपक्ष की जो मुख्य भूमिका निभानी होती है, वह प्रभावी आलोचना की भूमिका होती है. सरकार को सुचारू कामकाज में विपक्ष की भूमिका अहम होती है. वो सरकार की नीतियों के द्वारपाल के रूप में काम करते हैं. वर्तमान सरकार को अपनी नीतियों के प्रति जिम्मेदार बनाये रखने का काम विपक्ष के नेता का होता है. अगर विपक्ष कमजोर होगा तो सत्तारूढ़ दल का विधायिका पर स्वतंत्र शासन होगा. जो स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं. नेता प्रतिपक्ष के पास कई अधिकार भी होते हैं. सरकार कई अहम पदों पर नियुक्तियां करती है, जैसे लोकायुक्त और सीबीआई चीफ. इस तरह के कई पद हैं. इन सभी पदों के चयन कमिटी में नेता प्रतिपक्ष सदस्य होता है. ऐसे में उसका रोल बहुत ही प्रभावी हो जाता है. यहाँ आपको ये भी बता दें कि भारत के संविधान में कहीं भी विपक्ष के नेता के पद का उल्लेख नहीं है, लेकिन संसदीय कानूनों में इसका उल्लेख है.
कैसे होता है नेता प्रतिपक्ष का चुनाव
विपक्ष का नेता बनने के लिए ऊपरी या निचले सदन में औपचारिक मान्यता प्राप्त किसी पार्टी के पास सदन की कुल ताकत का कम से कम 10% होना चाहिए. यानी सरल भाषा में कहें तो एक पार्टी के पास कम से कम 55 सीटें होनी चाहिए, तभी वह विपक्षी पार्टी की भूमिका ले सकती है. यहाँ ये बात भी ध्यान दी जानी चाहिए की विपक्षी दलों का गठबंधन विपक्ष के नेता को नामित नहीं कर सकता. विपक्ष नेता कोई पद पर बने रहने के लिए सदस्य के अध्यक्ष की ओर से मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता होती है. इसलिए सीधे तौर पर कहा जा सकता है की विपक्षी नेता पद की मान्यता के मामले में लोकसभा स्पीकर अंतिम फैसला करता है.
सदन में विपक्ष का नेता नियुक्त करने के लिए कुल सीटों की जरूरत
यहाँ ये भी बड़ा सवाल है की विपक्ष का नेता बनने के लिए न्यूनतम कितनी सीटें चाहिए? तो आपको बता दे किसी भी पार्टी को सदन में विपक्ष का नेता नियुक्त करने के लिए कुल सीटों का कम से कम 10% जीतना होता है. यानी वर्तमान लोक सभा के हिसाब से बात करे. इस समय लोकसभा में 500 तेरालिस सीटें है, जब की राजस्थान हवा में 200. जिसके पास दूसरी सबसे ज्यादा सीटें है और वह सरकार का हिस्सा नहीं है. अपने नेता को विपक्ष का नेता नामित कर सकती है. लोक सभा के मामले में किसी भी पार्टी के पास विपक्षी नेता नामित करने के लिए कम से कम 55 सीटें होनी चाहिए. राज्यसभा में विपक्ष के नेता नियुक्त करने के लिए कम से कम 25 सीटें होनी चाहिए. अब 24 जून से लोकसभा सत्र शुरू होगा तो लोगों की निगाहें इसी बात पर होंगी की नेता प्रतिपक्ष कौन होगा?
Source : News Nation Bureau