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कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पंचतत्व में विलीन

तमिलनाडु के कांचीपुरम में कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के बुधवार को निधन के बाद हजारों श्रद्धालु उन्हें अंतिम विदाई देने मठ पर पहुंचे हैं।

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Narendra Hazari
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कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती पंचतत्व में विलीन

कांची मठ शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती (फोटो ANI)

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तमिलनाडु के कांचीपुरम में कांची मठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के बुधवार को निधन के बाद हजारों श्रद्धालु उन्हें अंतिम विदाई देने मठ पर पहुंचे हैं। उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए आज सुबह 7.30 तक रखा गया था।

मठ के व्यवस्थापक सुंदरेशन ने बताया कि पब्लिक दर्शन के बाद अब उनके समाधि की तैयारियां करीब 8 बजे शुरू की जाएंगी।

उन्होंने कहा, 'एक लाख से ज्यादा लोग अब तक उनके अंतिम दर्शन कर चुके हैं। हम अंतिम संस्कार की तैयारियां शुरू कर चुके हैं। उन्हें उनके गुरू चंद्रशेखरा सरस्वती स्वामीगल के बाजू में उन्हें समाधी दी जाएगी।'

बता दें कि 82 साल के जयेंद्र सरस्वती डायबिटीज से ग्रसित थे, और लंबे समय से उनका स्वास्थ्य खराब चल रहा था। वे मठ में गिर गए थे जिसकी वजह से उनकी तबियत बिगड़ी और चेन्नई के रामचंद्र हॉस्पिटल में भर्ती किया गया था जहां उनका निधन हो गया।

उनकी अंतिम यात्रा 'बृदांवन प्रवेश कार्यक्रम' वैदिक रीति रिवाज के अनुसार होगी। यह आज दोपहर तक निकाली जाएगी।

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# शंकराचार्य की अंतिम यात्रा के बाद उन्हें समाधि दी गई।

# शंकराचार्य की अंतिम यात्रा हुई शुरू, मठ में ही दी जाएगी समाधि।

तमिलनाडु गवर्नर बनवारीलाल पुरोहित ने किए शंकराचार्य के अंतिम दर्शन।

शंकराचार्य की अंतिम संस्कार समारोह शुरू हुआ, इस दौरान उनके उत्तराधिकारी विजयेंद्र सरस्वती स्वामीगल मौके पर मौजूद।

नंदवनम में ही चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती स्वामी के पास उनको महासमाधि प्रदान की जाएगी। इस बीच विजयेंद्र सरस्वती को शंकराचार्य के रूप में मठ प्रमुख बनाया गया है।

जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को पुराने तंजावुर जिले के इरुलनीक्की में हुआ था। चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती स्वामी ने उनको अपने वारिश के तौर पर उनका अभिषेक किया था। उनको 22 मार्च 1954 को जयेंद्र सरस्वती का पदनाम प्रदान किया गया था। 

दक्षिण भारत में जयेंद्र सरस्वती के काफी अनुयायी हैं। उन्होंने केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में 1998 से 2004 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय रामजन्म भूमि विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की बात कही थी। 

पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सरकार के दौरान 2004 में वह विवादों में आए और कांचीपुरम के वरदराज पेरुमल मंदिर के अधिकारी शंकर रमण की हत्या के आरोप में उनको गिरफ्तार किया गया। 

इस मामले की सुनवाई तमिलनाडु से बाहर पुडुचेरी में हुई जहां अदालत ने 2013 में मठ के कनिष्ठ संत विजयेंद्र और 21 अन्य समेत उनको बरी कर दिया। 

जयेंद्र सरस्वती का जन्म 18 जुलाई 1935 को पुराने तंजावुर जिले के इरुलनीक्की में हुआ था। चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती स्वामी ने उनको अपने वारिश के तौर पर उनका अभिषेक किया था। उनको 22 मार्च 1954 को जयेंद्र सरस्वती का पदनाम प्रदान किया गया था।

दक्षिण भारत में जयेंद्र सरस्वती के काफी अनुयायी हैं। उन्होंने केंद्र में अटल बिहारी बाजपेयी की अगुवाई में 1998 से 2004 के दौरान भारतीय जनता पार्टी की सरकार के समय रामजन्म भूमि विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाने की बात कही थी।

पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की सरकार के दौरान 2004 में वह विवादों में आए और कांचीपुरम के वरदराज पेरुमल मंदिर के अधिकारी शंकर रमण की हत्या के आरोप में उनको गिरफ्तार किया गया।

इस मामले की सुनवाई तमिलनाडु से बाहर पुडुचेरी में हुई जहां अदालत ने 2013 में मठ के कनिष्ठ संत विजयेंद्र और 21 अन्य समेत उनको बरी कर दिया था।

HIGHLIGHTS

  • शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती के बुधवार को निधन के बाद हजारों श्रद्धालु उन्हें अंतिम विदाई देने मठ पर पहुंचे हैं
  • शंकराचार्य के पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए आज सुबह 7.30 तक रखा गया था
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