संसद को शुक्रवार को सूचित किया गया कि केंद्र में पिछली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार के दौरान भगोड़े उद्योगपति विजय माल्या को 8,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज दिया गया था।
इस मुद्दे पर प्रश्नकाल के दौरान पूछे गए एक पूरक प्रश्न के जबाव में वित्त राज्यमंत्री संतोष गंगवार ने 'माल्या का नाम लिए बिना' लोकसभा को बताया कि उद्योगपति को 8,040 करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया था, जो 2009 में डूब गया और उसे गैरनिष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) घोषित कर दिया गया। इस कर्ज का 2010 में पुर्नगठन किया गया।
मंत्री ने कहा कि यह कर्ज साल 2004 में दिया गया था, जिसकी फरवरी 2008 में समीक्षा की गई।
उन्होंने कहा, 'हमारी सरकार ने उसके (माल्या) खिलाफ कार्रवाई की है। वह फिलहाल ब्रिटेन में रह रहा है, कई सारी एजेंसियों ने उसे सम्मन भेजा है। हमारे अनुरोध के बाद विदेश मंत्रालय ने उसका पासपोर्ट रद्द कर दिया है और हम उसे न्याय के कटघरे में लाने के लिए कदम उठा रहे हैं।'
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उन्होंने यह भी कहा कि 31 दिसंबर, 2016 तक सरकारी बैंकों के कुल 9,150 बड़े कर्जदार थे, जो जानबूझकर कर्ज नहीं चुका रहे हैं। इनमें से 8,364 के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है, जिन्होंने बैंकों से 85,258 करोड़ से अधिक का कर्ज लिया हुआ है।
इन जानबूझकर कर्ज नहीं चुकानेवालों में से 2,024 के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है, जिन्होंने कुल 29,557 करोड़ रुपये का कर्ज नहीं चुकाया है।
गंगवार ने कहा कि वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण और सुरक्षा अधिकार अधिनियम के प्रवर्तन के तहत जानबूझकर कर्ज नहीं चुकानेवाले 6,207 बड़े कर्जदारों पर कार्रवाई की गई है।
इस दौरान पिछले हफ्ते ट्वीट की एक श्रृंखला में माल्या ने बैंकों को बकाए कर्ज का मामला एक बार में सुलझाने के लिए बातचीत का न्योता दिया और इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग की।
माल्या ने ट्वीट में कहा, 'सरकारी बैंकों की फंसे हुए कर्जो को लेकर एक बार में मामला सुलझाने की नीति है। सैंकड़ों कर्जदारों ने इसका लाभ लेकर मामला सुलझाया है। मुझे क्यों इससे वंचित किया जा रहा है? हमारे न्योते को बैंकों ने बिना विचार किए सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अस्वीकार कर दिया।'
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Source : IANS