Advertisment

जानिए किन परिस्थितियों में बनी थी लोक जनशक्ति पार्टी? ये है पार्टी के गठन से अब तक की कहानी

लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना साल 2000 में राम विलास पासवान ने की थी. राम विलास पहले जनता पार्टी से होते हुए जनता दल और उसके बाद जनता दूल यूनाइटेड का हिस्सा रहे

author-image
Mohit Sharma
New Update
lok janshakti party

lok janshakti party ( Photo Credit : Google)

Advertisment

लोक जनशक्ति पार्टी में बिखराव की खबरों ने सियासी गलियारों में घमासान मचा रखा है. लोजपा के 5 सांसदों की बगावत के बाद पशुपति पारस पार्टी के संसदीय दल के नेता बने हैं। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पशुपति पारस को संसदीय दल के नेता की मान्यता भी दे दी है। इसके साथ ही पार्टी में कलह और टूट ​का सिलसिला जारी है. दिवंगत राम विलास पासवान द्वारा खड़ी की गई पार्टी का हश्र ऐसा होगा, शायद ही किसी ने सोचा था. ऐसे में हम आपको बताते हैं 2000 में गठन से लेकर लोजपा को अब तक किन-किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा. लोक जनशक्ति पार्टी की स्थापना साल 2000 में राम विलास पासवान ने की थी. राम विलास पहले जनता पार्टी से होते हुए जनता दल और उसके बाद जनता दूल यूनाइटेड का हिस्सा रहे, लेकिन जब बिहार की सियासत के हालात बदल गए तो उन्होंने अपनी पार्टी बना ली. दलितों की राजनीति करने वाले पासवान ने 1981 में दलित सेना संगठन की भी स्थापना की थी.

यह भी पढ़ें : कृषि मंत्री तोमर से मिले उत्तराखंड के CM रावत, राज्य के विकास के लिए उठाई ये मांग


•        एलजेपी का गठन सामाजिक न्याय और दलितों पीड़ितों की आवाज उठाने के मकसद से किया गया था. बिहार में दलित समुदाय की आबादी तो करीब 17 फीसदी है, लेकिन पासवान जाति का वोट करीब छह फीसदी है, जो एलजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है और इस जाति के सर्वमान्य नेता राम विलास पासवान माने जाते हैं.


•        1969 में पहली बार अलौली सीट से विधानसभा चुनाव जीतने वाले पासवान ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और खुद को कभी अप्रासंगिक नहीं होने दिया. यही वजह है कि 1977 में पहली बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले पासवान 9 बार लोकसभा सांसद रहे. वो बीजेपी और नीतीश कुमार के सहयोग से राज्यसभा सांसद थे. जब उन्होंने एलजेपी की स्थापना की थी, तब वो यूपीए और लालू यादव के साथ थे. एलजेपी ने 2004 के लोकसभा चुनाव में चार सीटें जीतीं. चार सीटों के साथ ही वो यूपीए का हिस्सा बने. आरजेडी भी उस वक्त कांग्रेस के साथ यूपीए सरकार का हिस्सा थी. राम विलास पासवान को केंद्र में मंत्री भी बनाया गया.


•        फरवरी 2005 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए. पासवान ने एक बड़ा दांव चला. केंद्र में वो कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा रहे और बिहार में भी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा. लेकिन दूसरी तरफ यूपीए सरकार के ही सहयोगी लालू यादव की पार्टी आरजेडी के खिलाफ उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतार दिए.

यह भी पढ़ें : सुप्रीम कोर्ट में पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद हिंसा मामले में टली सुनवाई, जानिए पूरा प्रकरण

•        पासवान की पार्टी ने इस चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया और 29 सीटों पर जीत दर्ज की. दूसरी तरफ किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया. नीतीश कुमार और लालू यादव दोनों ही पासवान से समर्थन की कोशिश करते रहे लेकिन पासवान ने मुस्लिम मुख्यमंत्री की ऐसी मांग रखी कि दोनों नेताओं में से कोई भी राजी नहीं हुआ. लिहाजा, सरकार नहीं बन पाई और राष्ट्रपति शासन लागू हो गया.


•        अक्टूबर-नवंबर 2005 में फिर से चुनाव कराए गए. इस चुनाव में बाजी पलट गई और पासवान की पार्टी महज 10 सीटों पर सिमट कर रह गई. दूसरी तरफ लालू यादव को भी भारी नुकसान पहुंचा और नीतीश कुमार व बीजेपी ने मिलकर सरकार बना ली.


•        नीतीश कुमार सत्ता में आए तो उन्होंने दलित समुदाय को साधने के लिए दलित कैटेगरी की 22 जातियों में से 21 को महादलित घोषित कर अपनी तरफ से कोशिशें शुरू की जिसमें वो कामयाब भी रहे. इसके बाद 2018 में पासवान जाति को भी शामिल कर सभी को महादलित बना दिया. इस तरह से बिहार में अब कोई दलित समुदाय नहीं रह गया है.  


•        2010 में जब बिहार विधानसभा चुनाव का नंबर आया तो एलजेपी ने आरजेडी के साथ मिलकर ही चुनाव लड़ा. मगर, एलजेपी के लिए ये चुनाव बेहद खराब रहा. पार्टी महज 3 सीटों पर ही जीत सकी. दूसरी तरफ नीतीश कुमार बीजेपी के साथ मिलकर एक बार फिर बिहार के सीएम बन गए. एलजेपी को 2011 में एक और बड़ा झटका तब लगा जब उसके तीन में से 2 विधायक जेडीयू के साथ चले गए. ये भी कहा जाने लगा कि एलजेपी का जेडीयू में विलय हो गया है, मगर पार्टी ने इससे इनकार कर दिया.


•        ये वो वक्त था जब एलजेपी सत्ता से बाहर थी. मगर, एनडीए में ऐसे समीकरण बदले कि एलजेपी को फिर से सहारा मिल गया. 2013 में बीजेपी ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया. नीतीश कुमार को मोदी की उम्मीदवार रास नहीं आई और उन्होंने बीजेपी से गठबंधन तोड़ लिया. हालांकि, बिहार में वो अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहे. लेकिन राम विलास पासवान ने इस मौके को लपक लिया.


•        2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एलजेपी बीजेपी के साथ चली गई. पार्टी ने बिहार में 7 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिनमें से 6 पर जीत दर्ज की. मोदी लहर में एलजेपी की चांदी हो गई. राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान भी जमुई सीट से पहली बार चुनाव लड़े और जीत गए. दूसरी तरफ राम विलास पासवान को केंद्र में मंत्री बनाया गया.


•        जब 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव का मौका आया तो नीतीश कुमार, लालू यादव और कांग्रेस ने हाथ मिला लिया. इस महागठबंधन की ऐसी लहर चली कि बीजेपी समेत तमाम दूसरे विरोधी दल हवा हो गए. पासवान की एलजेपी महज 2 सीटें जीत पाई. मगर, केंद्र में वो एनडीए की सत्ता का स्वाद लेते रहे. वहीं, 2017 में नीतीश कुमार भी महागठबंधन से अलग हो गए और फिर से उन्होंने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली. इस सरकार में भी एलजेपी को हिस्सेदारी मिली और राम विलास पासवान के भाई पशुपति पासवान को नीतीश कैबिनेट में मंत्री बनाया गया.

यह भी पढ़ें : अयोध्या: राम मंदिर जमीन खरीद सौदे पर उठे सवाल को लेकर ट्रस्ट का जवाब, केंद्र और संघ को भेजी रिपोर्ट

•        2019 के लोकसभा चुनाव में राम विलास पासवान और बीजेपी के बीच सीटों को लेकर काफी गहमागहमी देखी गई. लंबे मंथन के बाद 40 में से बीजेपी और जेडीयू को 17-17 और एलजेपी को 6 सीटों पर लड़ने का मौका मिला. जबकि राम विलास पासवान को राज्यसभा भेजने का फैसला किया गया. पार्टी सभी 6 सीटों पर जीत गई. इसके साथ ही राम विलास पासवान ने अपने बेटे चिराग पासवान को आगे कर दिया. 5 नवंबर 2019 को चिराग पासवान को लोक जनशक्ति पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया. अध्यक्ष पद की कमान मिलते ही चिराग ने 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' के नाम से बिहार में यात्रा निकाली


•        2020  के विधानसभा चुनाव में एलजेपी ने बीजेपी -जेडीयू गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ा , ये चुनाव चिराग पासवान की सबसे बड़ी परीक्षा थी , क्योंकि चुनाव से पहले ही राम विलास पासवान की मौत हो चुकी थी , पार्टी की ज़िम्मेदारी चिराग पर ही थी , चिराग ने खुद को मोदी का हनुमान बताया , अलग चुनाव लड़ने के बावजूद वो बीजेपी का समर्थन करते रहे , लेकिन नितीश पर खुल कर बोलते रहे , नितीश को जेल भेजने तक की बात कही , नतीजे आये तो एलजेपी सिर्फ एक सीट जीती , लेकिन जेडीयू को काफी नुकसान पहुंचा गयी , जेडीयू 43  सीटों पर जीत पायी , कहा गया की 35  सीटों पर एलजेपी की वजह से उसे नुकसान उठाना पड़ा.

HIGHLIGHTS

  • लोक जनशक्ति पार्टी में बिखराव की खबरों ने सियासी गलियारों में घमासान मचा रखा है
  • लोजपा के 5 सांसदों की बगावत के बाद पशुपति पारस पार्टी के संसदीय दल के नेता बने हैं
  • लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पशुपति पारस को संसदीय दल के नेता की मान्यता भी दी 
ljp leader chirag paswan Lok Janshakti Party Lok Janshakti Party Crisis
Advertisment
Advertisment