लोकसभा ने पेमेंट ऑफ ग्रैच्युटी (संशोधन) बिल पारित कर दिया है। जिससे सरकार को मैटरनिटी लीव और कर-मुक्त गैच्युटी तय करने का अधिकार मिलेगा।
इसमें प्राइवेट सेक्टर और सरकार के अधीन सार्वजनिक उपक्रम या स्वायत्त संगठनों के कर्मचारियों के ग्रैच्यूटी की अधिकतम सीमा में वृद्धि होगी, जो केंद्र सरकार के कर्मचारियों के अनुसार सीसीएस (पेंशन) नियमावली के अधीन शामिल नहीं हैं।
राज्य सभा में पारित होने के बाद सरकार कर-मुक्त ग्रैच्युटी की सीमा बढ़ाकर 20 लाख रुपये तक तय कर पाएगी। जो इस समय 10 लाख रुपये तक है।
लोकसभा में पीएनबी घोटाला और आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिये जाने की मांग को लेकर चल रहे हंगामे के बीच इस बिल को ध्वनिमत से पारित करा दिया गया।
अधिनियम की धारा 4 के अधीन ग्रैच्युटी की अधिकतम सीमा साल 2010 में 10 लाख रुपये रखी गई। 7वें वेतन आयोग के कार्यान्वयन के बाद केंद्र सरकार के कर्मचारियों के लिए ग्रैच्यूटी की अधिकतम सीमा को 10 लाख रुपये से बढ़ाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया था। कर्मचारी यूनियन कानून में बदलाव की मांग कर रही थीं।
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संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने कहा था कि पेमेंट ऑफ ग्रैच्युटी (संशोधन) बिल, 2017 मह्तवपूर्ण बिल है और इसे पारित कराने के लिये विपक्ष से आग्रह भी किया था।
संशोधित कानून लगातार सेवा के तहत मैटरनिटी लीव की अवधि को अधिसूचित करता है, साथ ही समय-समय पर ग्रैच्युटी की सीमा को बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार को अधिकार देने को भी अधिसूचित करता है।
इस समय 10 या इससे अधिक लोगों को नियोजित करने वाले निकायों के लिए पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी बिल 1972 लागू है, जिसके तहत कारखानों, खानों, तेल क्षेत्रों, बागानों, पत्तनों, रेल कंपनियों, दुकानों या अन्य प्रतिष्ठानों में लगे कर्मचारी शामिल हैं जिन्होंने 5 वर्ष की नियमित सेवा प्रदान की है।
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Source : News Nation Bureau