केंद्र में एनडीए सरकार का गठन हो चुका है. अब लोकसभा स्पीकर के चुनाव होने वाले हैं. 26 जून को चुनाव होंगे. सत्ता पक्ष सहित विपक्षी नेताओं की नजरें अब इसी पद पर केंद्रित हैं. 18वीं लोकसभा का पहला सत्र 24 जून से शुरू होगा. यह सत्र तीन जुलाई तक चलेगा. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अहम मंत्रालयों की तरह ही लोकसभा स्पीकर का पद भी भाजपा ही अपने पास रखेगी. हालांकि, पहले चर्चाएं थीं कि यह पद टीडीपी या जदयू के खाते में जा सकती हैं. आखिर, लोकसभा स्पीकर के चुनाव कैसे होते हैं. क्यों यह पद इतना अहम है, आइये जानते हैं…
लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव के बारे में संविधान के अनुच्छेद 93 में उल्लेख किया गया है. नियम के अनुसार, अध्यक्ष पद के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति अनुमोदित करती हैं. लोकसभा सचिवालय इसके बाद चुनाव की अधिसूचना जारी करता है. इधर, राष्ट्रपति एक कार्यवाहक स्पीकर को नियुक्त करेंगी, यही नए सांसदों को शपथ दिलाएंगे. कार्यवाहक स्पीकर को प्रोटेम स्पीकर भी कहा जाता है. चुनाव के एक दिन पहले, लोकसभा सदस्य लिखित रूप से अध्यक्ष का नाम प्रस्तावित कर सकता है. इसके बाद चुनाव होता है. बता दें, अध्यक्ष पद के लिए खास योग्यता का कोई जिक्र नहीं है. संसद का कोई भी सदस्य अध्यक्ष बन सकता है. चुनाव का नतीजा घोषित होने के बाद प्रधानमंत्री और नेता प्रतिपक्ष नवनिर्वाचित अध्यक्ष को आसन तक लेकर जाते हैं फिर सभी सदस्य अध्यक्ष को बधाई देते हैं. अध्यक्ष इसके जवाब में धन्यवाद भाषण देता है. इन सभी कार्यवाही के बाद अध्यक्ष अपना कार्यभार ग्रहण कर लेता है.
लोकसभा अध्यक्ष का पद क्यों है अहम?
लोकसभा अध्यक्ष भारत में निचले सदन का संवैधानिक और औपचारिक प्रमुख होता है. लोकसभा कार्यवाही के संचालन का जिम्मा इन्हीं के पास होता है. यह पद हर सरकार में अहम रहा है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के इस कार्यकाल में पद की अहमियत थोड़ी और बढ़ गई है. पिछले एक दशक से भाजपा पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी पर इस बार भाजपा बहुमत के जादुई आंकड़े को पार नहीं कर पाई है. जोड़तोड़ की राजनीति में लोकसभा अध्यक्ष का पद अहम होता है. सभी पार्टियां यह तथ्य जानती हैं इसलिए इस बार चुनाव को लेकर राजनीति गरमा गई है.
लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियां क्या हैं?
लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों की बात करें तो किसी भी संसदीय बैठकों में लोकसभ का एजेंडा यहीं तय करते हैं. किस प्रस्ताव को स्वीकार करना है और किस प्रस्ताव को अस्वीकार करना है, इसका फैसला भी लोकसभा अध्यक्ष ही करता है. अविश्वास प्रस्ताव सहित अन्य मसलों पर भी लोकसभा अध्यक्ष का फैसला ही माना जाता है. सदन में किसी नियम पर बहस होती है तो लोकसभा अध्यक्ष ही उस नियम के बारे में सदन को बताता है. खास बात यह है कि इसे चुनौती भी नहीं दी जा सकती है. लोकसभा अध्यक्ष का पद निष्पक्ष माना जाता है. बता दें, कांग्रेस नेता एन संजीव रेड्डी मार्च 1967 में जब लोकसभा अध्यक्ष के रूप में नियुक्त हुए थे को उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था.
अध्यक्ष पद के लिए इन नामों की चर्चा
कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, ओम बिरला फिर से लोकसभा अध्यक्ष पद के लिए भाजपा के उम्मीदवार हो सकते हैं. भाजपा सांसद डी पुरंदेश्वरी भी भाजपा उम्मीदवार हो सकती हैं. खास बात है कि पुरंदेश्वरी आंध्रप्रदेश भाजपा की अध्यक्ष होने के साथ-साथ टीडीपी चीफ चंद्रबाबू नायडू की साली भी हैं. पुरंदेश्वरी के नाम पर इस वजह से एनडीए में आम सहमति बन सकती है.
Source : News Nation Bureau