कांग्रेस ने तीन राज्यों में चुनाव जीतकर और बिना देर किए किसानों का कर्जा माफ करके यह जता दिया है कि लोकसभा चुनाव में वो बीजेपी का मुकाबला किसानों के दम पर करने वाली है. पहली बार ऐसा हुआ है कि हमेशा हाशिए पर रहने वाले किसान इस बार केंद्र की राजनीति में आ गए हैं. अब अगर सत्ता की कुर्सी तक पहुंचना है तो इनके दिल से होकर गुजरना होगा और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बात को समझ चुके हैं इसलिए अब वो जहां भी जा रहे हैं किसानों की बात कर रहे हैं. सवाल यह है लोकसभा चुनाव में उतरने के लिए कांग्रेस के पास किसान नाम का हथियार है तो बीजेपी के पास क्या है? 'सबका साथ, सबका विकास' करने की बात करने वाली बीजेपी किसानों के मुद्दे पर फेल होती नजर आ रही है. ऐसे में सवाल है कि क्या उसके लिए राम का नाम जीत का सहारा बनेगा ?
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देश में आज भी रोजाना 30 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर लेते हैं. यानी साल में करीब 12000 किसान अपनी जिंदगी को खत्म कर लेते हैं, तो क्या बेहाल किसानों के हालात पर भगवान राम भारी पड़ेंगे. बीजेपी के सहयोगी आरएसएस, वीएचपी, शिवसेना राम मंदिर बनाने की मांग कर रहे हैं. यहां तक की बीजेपी के कई नेता भी राम मंदिर निर्माण की बात कर रहे हैं. इनका कहना है कि अगर अयोध्या में इस बार राम मंदिर का विवाद नहीं सुलझता है और इसे लेकर कोई ठोस निर्णय नहीं आता है तो बीजेपी के लिए लोकसभा चुनाव में राहें मुश्किल होगी. यानी विकास का दावा करने वाली बीजेपी के पास अब सिर्फ राम नाम का सहारा है.
कांग्रेस जिस मुद्दे को उठाकर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में सत्ता की कुर्सी तक पहुंची है ऐसा ही कुछ बीजेपी ने 2014 में किया था. उस वक्त नरेंद्र मोदी ने भी किसानों की आय दोगुनी करने का वादा किया था, एक साल के भीतर स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का वादा किया था. लेकिन मोदी सरकार ने ही साल 2015 में सूचना के अधिकार के तहत बताया और अदालत में शपथपत्र देकर कहा कि ऐसा करना संभव नहीं है. साल 2016 में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कह दिया कि सरकार ने कभी ऐसा कोई वादा किया ही नहीं था.
कांग्रेस ने 70 साल में सबसे ज्यादा सत्ता का सुख भोगा और किसानों की अनदेखी कर उसे अस्पताल में पहुंचा दिया, लेकिन बीजेपी के शासनकाल में वो किसान अब आईसीयू में पहुंच गए हैं.
देश की 58 प्रतिशत आबादी खेती पर निर्भर हैं. इनकी स्थिति लगातार बदतर होती जा रही है. एक अनुमान के मुताबिक हर साल 2000 किसान खेती छोड़ देते हैं. एक आर्थिक सर्वे बताता है कि 17 राज्यों में किसान परिवारों की सालाना आय 20 हजार रुपए है. अब आप सोच सकते हैं के ऐसे में किसान कैसे जिंदगी जीता होगा.
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अब कांग्रेस इनकी स्थिति सुधारने की बात करते हुए एक के बाद एक जीत दर्ज कर रही है. लेकिन सवाल यह है कि क्या कर्जमाफी से किसानों की समस्या सुलझ जाएगी? मजदूरी की लागत बढ़ना, खेत की जोत का छोटा हो जाना, प्राइवेट कंपनियों से ऊंचे दाम में बीज और पेस्टिसाइड्स खरीदना, मौसम की मार से बचाने में निष्प्रभावी राहत और फसल बीमा, फसल के दाम में भारी अनिश्चितता जैसी समस्याएं किसानों के सामने मुंह बाए खड़ी होती हैं. कांग्रेस जहां-जहां सत्ता में आ रही है किसानों के कर्ज तो माफ कर रही है, लेकिन बाकि समस्याओं का क्या ? राज्यों में कांग्रेस सरकारें अगले 5 महीनों में किसानों के लिए क्या करती है ये इस पर निर्भर रहेगा और तब किसान राहुल गांधी पर अपना भरोसा जताएंगे.
बीजेपी की बात करें तो विकास की बात करके सत्ता पर पहुंचने वाली बीजेपी के पास इस बार राम नाम का सहारा है. ये बातें इसलिए हो रही है क्योंकि साढ़े चार साल तक बीजेपी सरकार राम मंदिर मुद्दे पर निर्जीव मुद्रा में थी, लेकिन लोकसभा चुनाव के नजदीक आते ही यह मुद्दा फिर से जिंदा हो उठा है.
ये सभी लोग समझ गए हैं कि पिछला चुनाव बीजेपी मोदी की वजह से जीती थी लेकिन इस बार मोदी का मैजिक कम होता दिख रहा है. इतना ही नहीं अब बीजेपी किसी भी समस्या के लिए सीधे कांग्रेस को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती है, कांग्रेस कम ही जगहों पर सत्ता में है. ऐसे में बीजेपी जनता के सामने कांग्रेस को मुजरिम की तरह नहीं रख सकती. ऐसे हालात में बीजेपी ने ये चुनावी गणित लगाया होगा कि भावनाओं का सहारा लेकर एक और चुनाव जीता जा सकता है. अब लोकसभा चुनाव 2019 के बाद ही पता चलेगा कि कांग्रेस के किसान बीजेपी के भगवान पर भारी पड़ते हैं या फिर बीजेपी के भगवान कांग्रेस के किसान को मात देंगे.
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Source : Nitu Kumari