मध्यप्रदेश में जारी सियासी घमासान पर सुप्रीम कोर्ट में आज (गुरुवार को) भी सुनवाई जारी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट में इससे पहले इस मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा कि बेंगलुरू से जारी विधायकों के वीडियो देखकर यह तय नहीं किया जा सकता कि वे दबाव में हैं या फिर स्वेच्छा से निर्णय ले रहे हैं. इस मामले को विस्तार से समझने के लिए आईएएनएस ने सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान व कानून के विशेषज्ञ विराग गुप्ता से बात की. कानूनविद विराग गुप्ता ने कहा कि पांच सवालों के साथ लाई डिटेक्टर टेस्ट होने पर आसानी से पता चल सकता है कि विधायक स्वतंत्र होकर फैसले ले रहे हैं या फिर किसी के दबाव में. सुप्रीम कोर्ट लाई डिटेक्टर टेस्ट के विकल्प पर भी विचार कर सकता है.
विराग गुप्ता के अनुसार, "दोनों पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिनके अनुसार इस मामले में तीन महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. पहला विधायकों के त्यागपत्र या अयोग्यता पर विधानसभा अध्यक्ष द्वारा लिया गया फैसला. दूसरा राज्यसभा की सीटों के लिए अगले हफ्ते होने वाले चुनावों में वोटिंग और प्रत्याशी दिग्विजय सिंह द्वारा विधायकों से मिलने की मांग. तीसरा कमलनाथ सरकार के बहुमत पर फैसला या फ्लोर टेस्ट. इन सभी मुद्दों पर पूर्ववर्ती फैसलों से कानून स्पष्ट है लेकिन सुप्रीम कोर्ट को फैसला लेने में इस बात पर दिक्कत आ रही है कि विधायकों ने स्वेच्छा से त्यागपत्र दिए हैं या नहीं."
विराग गुप्ता के मुताबिक, कांग्रेस के वकीलों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा है कि विधायक वयस्क हैं और बच्चों के मामलों की तरह उनकी कस्टडी की मांग को स्वीकार नहीं किया जा सकता. भाजपा नेताओं के वकीलों ने सुझाव दिया कि बागी विधायक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के चेंबर में आकर अपने स्वतंत्र निर्णय को साबित कर सकते हैं या फिर सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश से कर्नाटक हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को विधायकों से मिलने का निर्देश देकर उनके स्वतंत्र निर्णय को सत्यापित करा सकते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इन सुझावों को मानने से इनकार कर दिया.
राज्यसभा चुनाव में भी कोई विधायक खरीद-फरोख्त के आधार पर मतदान करने या नहीं करने का फैसला यदि ले तो वह अवैध माना जाएगा. इसी तरीके से विधानसभा में फ्लोर टेस्ट के दौरान भी विधायकों का स्वतंत्र निर्णयन जरूरी है. कांग्रेसी नेताओं ने आरोप लगाए हैं कि विधायकों के त्यागपत्र एक जैसे फॉर्मेट में टाइप किए गए थे, जिन्हें भाजपा नेताओं के माध्यम से विधानसभा अध्यक्ष तक पहुंचाया गया.
गौरतलब है कि बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है जिसके साथ सुप्रीम कोर्ट रूल्स के अनुसार शपथ पत्र या हलफनामा दायर करना जरूरी होता है. सुप्रीम कोर्ट रूल्स के तहत निर्धारित शपथ पत्र के अनुसार, याचिकाकर्ता को पूरी याचिका की जानकारी और सत्यता का हलफनामा देना होता है, जिसे नोटरी और फिर वकील द्वारा सत्यापित किया जाता है. इन याचिकाओं पर आगे सुनवाई और फैसला करने से पहले सुप्रीम कोर्ट की यह संवैधानिक जिम्मेदारी है कि याचिकाओं की सत्यता और याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार ही चुनाव लड़ने के दौरान सभी प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति का सार्वजनिक हलफनामा देना होता है.
विराग गुप्ता का मानना है कि विधायकों के स्वतंत्र निर्णयन को सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सभी विधायकों के लाई डिटेक्टर टेस्ट का निर्देश दे सकता है, जिसके तहत उनसे 5 सवालों के जवाब मांगे जा सकते हैं. पहला क्या विधायकों ने स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया है. दूसरा क्या वे बंधक हैं या स्वतंत्र हैं. तीसरा क्या उन्होंने याचिकाओं को पूरी तरह से पढ़ने और समझने के बाद ही हस्ताक्षर किए हैं. चौथा क्या वे किसी दबाव की वजह से अपने ही पार्टी के नेताओं से नहीं मिलना चाहते. पांचवा क्या उनके फैसले किसी पद, पैसे या प्रलोभन से प्रभावित तो नहीं हैं? इन परिस्थितियों में लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने से निजता के अधिकार का कोई उल्लंघन नहीं होगा. जब देश में नागरिकों की सुरक्षा के लिए कोरोना टेस्ट हो रहे हैं, तब लोकतंत्र की सुरक्षा के लिए जनप्रतिनिधि विधायकों और अन्य नेताओं के लाई डिटेक्टर टेस्ट कराने से मध्य प्रदेश की सियासत के समाधान के साथ लोकतंत्र की सेहत भी मजबूत होगी.
Source : News Nation Bureau