महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम का फैसला अब सुप्रीम कोर्ट में लिया जाएगा। मुख्यमंत्री शिंदे तत्काल दिल्ली पहुंच गए हैं। दिल्ली की मुलाकात में मोदी-शाह के चरणों में शिवसेना सांसदों का नजराना भी चढ़ाया व एहसानों के बोझ से और थोड़ा मुक्त हुए। खुद को शिवसेना का मुख्यमंत्री कहलवाने वाले शिंदे बार-बार दिल्ली दरबार में क्यों जा रहे हैं? यह सवाल ही है। कहा जाता है शिंदे मंत्रिमंडल के बारे में चर्चा करने के लिए दिल्ली गए। ये हद है। इससे पहले शिवसेना के तीन मुख्यमंत्री हुए।
उनमें से दो भारतीय जनता पार्टी के साथ ‘गठबंधन’ में थे लेकिन एक भी मुख्यमंत्री मंत्रिमंडल क्या और वैâसे किया जाए, इसके बारे में चर्चा करने के लिए कभी दिल्ली नहीं गए। लेकिन अब स्थिति अलग है। दिल्ली के आगे झुकने से, गिरने से ही टूटनेवाले गुट को मुख्यमंत्री पद मिला है, अब यह स्पष्ट हो गया है। दिल्ली के आगे महाराष्ट्र झुका नहीं और न झुकेगा, इस स्वाभिमानी मंत्र को इस बार तो दिल्ली ने तोड़कर दिखा दिया है। मुख्यमंत्री शिंदे दिल्ली आए और शिवसेना के बारह सांसदों के साथ उन्होंने शक्ति प्रदर्शन किया और उससे पहले कहा इन सभी शक्तिमान सांसदों को केंद्र सरकार ने ‘वाई प्लस’ दर्जे की सुरक्षा प्रदान की। सांसदों के चुनाव क्षेत्र में उनके घरों और उनके कार्यालय पुलिस ने घेर रखा है। इन शक्तिमान, स्वाभिमानी सांसदों को इतना डर किससे लग रहा है? जनता और शिवसैनिक उनके साथ होने का दावा ये लोग कर रहे हैं और बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना यानी हम हैं, बोल रहे हैं तो केंद्रीय सुरक्षा रक्षकों के घेरे में घूमने की जरूरत नहीं लेकिन चोर की दाढ़ी में तिनका जैसा यह मामला है। हम शिवसेना, जनता और महाराष्ट्र को धोखा दे रहे हैं।
यह तिलमिलाहट उन्हें बेचैन कर रही है। जिन बारह सांसदों ने अब एक स्वतंत्र गुट बनाया है, वे शिवसेना के चुनाव चिह्न पर चुनकर आए और लोकसभा में पहुंचे। हिंदुत्व के मुद्दे पर हम अलग गुट स्थापित कर रहे हैं, उनके इस दावे में कोई अर्थ नहीं है। प्रत्येक का एक स्वतंत्र, व्यक्तिगत व केंद्रीय जांच एजेंसियों के दबाव का मामला है। उसी से यह पलायन हुआ। हेमंत गोडसे, कृपाल तुमाने, सदाशिव लोखंडे, श्रीरंग बारणे, राजेंद्र गावित, संजय मंडलिक, धैर्यशील माने जैसे सांसद हिंदुत्व जैसे मुद्दों पर बोलते हैं, जो आश्चर्यजनक है। उनका मूल और कुल शिवसेना या हिंदुत्व का नहीं था। शिवसेना से जीत का अवसर होने के कारण, वे भगवा के अस्थायी शिलेदार बने, नहीं तो उनका गोत्र कांग्रेस या राष्ट्रवादी है यह क्या किसी को पता नहीं है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी अब मूल हिंदुत्ववादियों की तुलना में ऐसे जाति-गोत्र-धर्म वालों से भर गई है। भाजपा के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जगदीप धनकड़ कई पार्टियों से यात्रा करके भाजपा में पहुंचे। केंद्रीय मंत्रिमंडल के आधे सदस्य मूल हिंदुत्ववादी गोत्र से नहीं, बल्कि कांग्रेस या अन्य जाति-कुल से हैं। आज कई राज्यों के मुख्यमंत्री मूल रूप से भाजपा के नहीं हैं। लेकिन किसी राज्य को कब्जे में रखने, जीतने के लिए कांग्रेस पार्टी से आए लोगों को भी भाजपा ने मुख्यमंत्री पद दिया। केंद्र में तो पद दिए। महाराष्ट्र में भी इससे क्या अलग हुआ?
शिवसेना को मुख्यमंत्री पद तो छोड़िए, उपमुख्यमंत्री पद भी उन्होंने नहीं दिया लेकिन शिवसेना तोड़कर बाहर आनेवालों को उन्होंने मुख्यमंत्री पद का गलीचा ही बिछा दिया है। अब कहा जा रहा है कि ‘१२’ सांसदों के गुट को भी मंत्री पद का पुरस्कार दिया जाएगा। अब ये पुरस्कार यानी शिवसेना के हिस्से में हमेशा से आ रहा भारी उद्योग का विभाग होगा या और कुछ होगा, ये तो पता चलेगा ही। अब इस अलग हुए गुट के मंत्रिमंडल भर्ती के लिए महाराष्ट्र के किस निष्ठावान की बलि जाती है, वही देखना है। कुल मिलाकर, देश में कानून और संविधान का राज नहीं रहा। महाराष्ट्र में बाढ़ और प्रलय का कहर जारी है। लोग, मवेशी, घर-द्वार बह गए हैं। पहाड़ और घाटियां ढह रही हैं। लेकिन अलग हुए गुट के मुख्यमंत्री दिल्ली में सत्ता के राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन में मदमस्त हैं। बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना को तोड़ने के काम में उन्होंने खुद को बहा लिया है। महाराष्ट्र में भूस्खलन से यातायात और जनजीवन ठप हो गया है, लेकिन राज्य में सरकार का अस्तित्व नहीं है। सरकार मतलब केवल मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री नहीं, ये उन्हें कौन बताए? इंदौर-अमलनेर एसटी के भीषण हादसे में कई लोगों की जान चली गई, लेकिन राज्य में पंद्रह दिन बाद भी परिवहन मंत्री नहीं है।
इसलिए मृतकों के परिजन और घायलों के आंसू बेसहारा ही हैं। उपमुख्यमंत्री फडणवीस बाढ़ की स्थितियों का जायजा लेते दिख रहे हैं। लेकिन उनका भी मन दिल्ली में ही लगा हुआ है। महाराष्ट्र की बागडोर आज पूरी तरह से दिल्ली के हाथ में है। शिवराय के महाराष्ट्र की कभी इतनी विकट स्थिति नहीं हुई थी। शिवसेना को तोड़ने और उस टूट का नजराना दिल्ली वालों के चरणों में अर्पण करने में ही मुख्यमंत्री शिंदे मशगूल हैं। राज्य डूब रहा है। वह डूब जाए तो भी परवाह नहीं, ऐसी मौजूदा सत्ताधारियों की धारणा है। हालांकि इस प्रलय में महाराष्ट्र का स्वाभिमान और मराठी अस्मिता गोते खाते दिखाई दे रही है। यह गंभीर है। महाराष्ट्र पर इस समय आसमानी संकट है लेकिन सुल्तानी संकट से राज्य ज्यादा बेजार है। पहले के सुल्तान मंदिरों को तोड़ते थे, आज के सुल्तान शिवसेना को तोड़ रहे हैं। नाथांनी ने उस संकटकाल में ‘देवी मां दरवाजा खोलो’ का नारा लगाकर महाराष्ट्र का मन जागृत किया था। आज का महाराष्ट्र उसी स्थिति में है। वह जल्द ही आक्रामक होकर उठेगा।
Source : Abhishek Pandey