उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर में भी पहले चरण के चुनाव के लिए आज प्रचार का अंतिम दिन है। प्रचार के आखिरी दिन सभी पार्टियों ने मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। मणिपुर की 60 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में वोटिंग होनी है।
लेकिन यहां सवाल उठता है कि मणिपुर में चुनाव तो हो रहे हैं। लेकिन क्या ये चुनाव उस राज्य को हिंसा से बाहर निकाल पाएगा। क्या ऐसी सरकार बनेगी जो उसे जातीय वर्चस्व की लड़ाई से बाहर निकाल कर विकास की सड़क पड़ लाकर खड़ा कर दे।
मणिपुर की मुख्य समस्या क्या है
भारत का हिस्सा रहते हुए भी बाकी राज्य के मुकाबले मणिपुर विकास से महरूम ही रहा है। इसका सबसे बड़ा कारण है वहां स्थानीय वर्चस्व को लेकर अलग-अलग जातियों के बीच लड़ाई।
मैतेई, नगा और कुकी जातियों के बीच वहां खतरनाक शत्रुता है। मणिपुर की 70 फीसदी आबादी मैतेई लोगों की ही है जिनकी अपनी हितों के लिए सरकार से टकराव होती रहती है।इसके पीछे ऐतिहासिक और भौगोलिक दोनों कारण हैं।
आर्थिक पिछड़ापन और म्यांमार सीमा से सटे होने की वजह से भी वहां समस्याएं ज्यादा हैं। केंद्र में किसी भी की सरकार रही हो लेकिन आरोप लगता रहा है कि केंद्र सरकार ने हमेशा पूर्वोत्तर के इस राज्य की उपेक्षा ही की है।
सत्ता पर उग्रवादियों का प्रभाव
भारतीय भू भाग का हिस्सा होने की वजह से लोग मानते तो है कि वहां भी लोकतंत्र है लेकिन राज्य पर 18 से ज्यादा उग्रवादी संगठनों का परोक्ष रूप से कब्जा है। जोअलगाव जैसे संगठन वहां वर्चस्व की लड़ाई के बाद ही पैदा हुए हैं।
मणिपुर में उग्रवादियों के प्रभाव का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि हाल ही पीएम मोदी की रैली का उन्होंने विरोध किया था और लोगों से उसमें शामिल नहीं होने की अपील की थी। उग्रवादियों के डर से ज्यादातर लोग अपने घर से बाहर नहीं निकले थे।
आए दिन वहां सुरक्षाकर्मियों और उग्रवादियों में मुठभेड़ होती रहती है जिसमें दोनों तरफ के लोग मारे जाते हैं।
आर्म्ड फोर्सेज पावर्स से भी उग्रवादियों पर नहीं लगी लगाम
मणिपुर में लगातार खराब होते हालात को देखते हुए और उग्रवाद पर लगाम लगाने के लिए साल 1980 में वहां आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल) पावर्स एक्ट के तहत सुरक्षाबलों को विशेष अधिकार दिया गए। लेकिन इससे भी राज्य को कुछ खास फायदा नहीं हुआ। वहीं दूसरी तरफ सुरक्षाकर्मियों पर ही भी वहां सुरक्षा के नाम पर ज्यादती करने के आरोप लगते रहते हैं।350 रु लीटर तक बिके थे पेट्रोल
बीते साल मणिपुर में उग्रवादी संगठनों के हिंसा के बाद वहां हालात इतने बदतर हो गए थे कि पेट्रोल की कीमत 350 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गए थे और आलू 100 रुपये प्रति किलो तक बिका था।
इसका सबसे बड़ा कारण था वहां लगातार कर्फ्यू लगे रहना और बाकी भारत से संपर्क टूट जाना। नागा लोगों की आर्थिक नाकबंदी की वजह से राजधानी इंफाल सहित पूरे राज्य के लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।
4 मार्च को होने वाले पहले चरण की वोटिंग में 38 सीटों पर कुल 168 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला वहां की जनता करेगी। राज्य में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस ने पहले चरण में 37 सीटों पर उपने उम्मीदवार उतारे हैं जबकि बीजेपी ने सभी 38 सीटों पर उम्मीदवार चुनाव लड़े रहे हैं। इसके अलावा 14 निर्दलीय प्रत्याशी भी इस चुनाव में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
बीते दिनों मणिपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैली कर बीजेपी को एक बार मौका देने की अपील की थी। बीजेपी मणिपुर में कभी सत्ता में नहीं रही है। कांग्रेस शासनकाल पर निशाना साधते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि कांग्रेस जो 15 साल में नहीं कर पाई वो बीजेपी 15 महीनों में करके दिखाएगी।
दूसरी तरफ कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी चुनावी रैली कर ईबोबी सरकार के काम की तारीफ करते हुए एक बार उन्हें फिर से सरकार में लाने की लोगों से अपील की थी।
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इस बार मणिपुर में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। हालांकि बीजेपी ने मणिपुर में चुनाव में सीएम का कोई चेहरा तय नहीं किया है। बीजेपी इस चुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है। नेशनल पीपुल्स पार्टी, नगा पीपुल्स फ्रंट और लोक जनशक्ति पार्टी जैसे उसके पूर्व सहयोगी भी इस चुनाव में बीजेपी के साथ नहीं हैं।
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हालांकि मणिपुर में जैसे जैसे चुनाव की तारीफ नजदीक आ रही है राज्य में हिंसक गतिविधि बढ़ती जा रही है। आर्थिक तौर पर मणिपुर पहले से ही कमजोर राज्य रहा है।
Source : Kunal Kaushal