पिछले कुछ समय से शांत पड़ा मणिपुर एक बार फिर सुलग उठा. कुकी-मैतेई समुदाय के बीच चली आ रही हिंसा शुक्रवार को फिर से भड़क गई. इसमें तीन कुकी समुदाय के लोगों की हत्या हो गई. हैरानी की बात है कि हिंसा की घटना वहां से आ रही है, जिसे अबतक सबसे शांत जिला माना जाता रहा है. राज्य का उखरुल जिला के थोवई गांव में कुकी-मैतेई समुदायों के बीच हिंसक झड़प में अब नागा समुदाय भी कूद पड़ा है. राज्य में अभी तक हिंसा सिर्फ कुकी मैतेई समुदा के बीच थी, लेकिन पहली बार इस लड़ाई में नागा समुदाय के लोग भी सीधे-सीधे कूद पड़े हैं.
बता दें कि उखरुल जिला नागा बाहुल क्षेत्र है. यहां पर अभी तक किसी के बीच मनमोटव या विवाद भी नहीं होता था, लेकिन पहली बार है जब 19 अगस्त (शुक्रवार) को भारी गोलीबारी की आवाजों से गांव गूंजा उठी. इसी गांव में पुलिस ने तीन कुकी समुदाय के युवकों के शव बरामद किए. युवकों के शवों पर चाकूओं से कई वार के निशान भी थे. फिलहाल पुलिस और बीएसएफ इलाके को सील कर आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है. जातीय संघर्ष के नाम पर अभी तक राज्य में 150 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है. वहीं, सैकड़ों लोग घायल हैं. इसके अलावा हजारों लोग अपना घर-बार छोड़कर शिविर में शरण लिए हैं.
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हत्या करने वाले आरोपियों की तलाश तेज
इधर दो हफ्ते बाद मणिपुर में हिंसक झड़प में तीन युवकों की हत्या से हालात बिगड़ने की आशंका बढ़ गई है. इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन सख्त है. सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत कर दी गई है. वहीं, आरोपियों की तलाश के लिए टीमें गठित की गई है और तलाशी अभियान युद्ध स्तर पर जारी है. कुकी समुदाय के युवकों की हत्या का शक नागाओं पर मंडरा रहा है. हालांकि, अभी इस बारे में खुलासा नहीं हुआ कि कुकी युवकों की हत्या किसने की और क्यों की.
मणिपुर जलने की ये है मुख्य वजह
आइए आपको विस्तार से समझाते हैं कि आखिर पिछले तीन महीनों से मणिपुर जल क्यों रहा है. मणिपुर में हिंसक झड़प के कारण क्या हैं. दरअसल, मणिपुर में मैतई समुदाय बहुसंख्यक है. यह समुदाय अनुसूचित जन जाति (ST)आरक्षण देने की मांग कर रहा है. राज्य के सिर्फ 10 प्रतिशत मैदानी इलाके में मैतई समुदाय की 53 फीसदी आबादी रहती है. यह समुदाय एसटी आरक्षण की मांग पर अड़ा है. वहीं, कुकी पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, इसके अलावा नागा के लोग भी पहाड़ पर रहते हैं. राज्य के करीब 90 फीसदी हिस्से पर कुकी और नागा समुदाय का कब्जा है.
कुकी महिलाओं को पैरेड कराने वाले मैतेई युवकों पर सख्त कार्रवाई
कुकी नहीं चाहते कि मैतेई को आरक्षण का लाभ मिले. नए जमीन सुधार कानून के तहत मैतई समुदाय के लोग पहाड़ों पर जमीन नहीं खरीद सकते, जबकि कुकी और नगा समुदाय कही पर जमीन खरीद बिक्री कर सकते हैं. हिंसा की शुरुआत यही से शुरू हुई. 3 मई को मैतेई और कुकी समुदाय आमने सामने आ गए. इस जातीय झड़प में सैकड़ों लोगों की जान चली गई. हजारों लोग जख्मी हैं और ना जाने कितने लोग अपना घर परिवार छोड़कर शिविर में शरण लिए हुए. इसी दौरान मैतेई समुदाय के लोगों ने दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया था. महिलाओं के इस दृश्य को देखकर पूरा देश रोष में था. मामला बढ़ने के बाद मैतेई आरोपियों को धर दबोचा गया.
1990 में भी कुकी और नागाओं के बीच हिंसक झड़प
हालांकि, कुकी और नागा समुदाय के बीच विवाद का यह कोई पहला मामला नहीं है. 1990 के दशक में कुकी और नागाओं के बीच जोरदार खूनी झड़पें हुई थीं. जमीन को लेकर दोनों समुदाय के बीच हिंसक घटनाएं हुई थी. इसमें कई लोगों की जान चली गई थी.