शराब कारोबारी विजय माल्या के प्रत्यर्पण मामले की सुनवाई सोमवार को फिर शुरू हुई। इस दौरान माल्या के वकीलों ने भारत की न्याय व्यवस्था (जस्टिस सिस्टम) की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए।
61 वर्षीय माल्या सुनवाई के चौथे दिन लंदन के वेस्टमिंस्टर मैजिस्ट्रेट की अदालत में मौजूद रहे।
उनकी वकील क्लेयर मोंटगोमरी ने सुनवाई के दौरान केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर अपनी राय देने के लिए डॉ. मार्टिन लाउ को पेश किया।
डॉ. लाउ दक्षिण एशियाई मामलों के विशेषज्ञ हैं। डॉ. लाउ ने सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग के तीन अकादमिकों की एक स्टडी का हवाला देते हुए रिटायरटमेंट के करीब पहुंचे सुप्रीम कोर्ट जजों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए।
लाउ ने कहा, 'मैं भारत के उच्चतम न्यायालय का काफी सम्मान करता हूं, लेकिन कभी कभार खास पैटर्न्स को लेकर कुछ दुविधाएं भी हैं। इसका यह कतई मतलब नहीं है कि यह (सुप्रीम कोर्ट) एक भ्रष्ट संस्था है। कभी-कभी यह सरकार के पक्ष में फैसला देती है, खासकर जब जज रिटायर होने की कगार पर होते हैं और (रिटायरमेंट के बाद) किसी सरकारी पद की चाहत रखते हैं। यह न्यायिक फैसलों पर सरकार को प्रभाव की ओर इशारा करता है जो न्यायिक स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन है।'
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बता दें कि विजय माल्या के प्रत्यर्पण मुद्दे पर लंदन की अदालत में सुनवाई के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की एक संयुक्त टीम 4 दिसम्बर को लंदन गई थी।
इससे पहले माल्या को ब्रिटेन में 13 अक्टूबर को प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दर्ज धोखाधड़ी और धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया गया था और उसके तुरंत बाद ही लंदन अदालत से उसे जमानत दे दी गई थी।
माल्या किंगफिशर एयरलाइंस के 9000 करोड़ रुपये के कर्ज न चुका पाने के मामले में भारत में वांछित है। वह पिछले वर्ष मार्च में ब्रिटेन भाग गया था।
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अपने खर्चीली जीवनशैली के लिए पहचाना जाने वाले माल्या को 18 अप्रैल को भी स्कॉटलैंड यार्ड ने प्रत्यर्पण वारंट पर गिरफ्तार किया था। लेकिन 650000 पाउंड का जमानत बांड भरने के बाद उसे तत्काल सर्शत जमानत दे दी गई थी।
भारत सरकार ने इस वर्ष जून में भगोड़े व्यापारी को प्रत्यर्पित करने के लिए ब्रिटेन को अतिरिक्त दस्तावेज सौंपे थे। ब्रिटेन सरकार ने जून में यह पाया था कि भारतीय जांच एजेंसी माल्या के खिलाफ सबूत जुटाने में देरी कर रही है।
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Source : News Nation Bureau